ऊटपटांग कपडे पहनना फैशन नहीं

                                              शांतनु अगस्ती                                        माधव अगस्ती                                          राहुल अगस्ती

 

राजनीतिक नेताओं और फिल्मी सितारों के लिए परिधान डिजाइन करने वालेे फिल्म उद्योग के मशहूर डिजाइनर पिता-पुत्र
माधव एवं राहुल अगस्ती ने एक विशेष साक्षात्कार में भारतीय फैशन की दुनिया की एक से एक खासियतें उजागर की हैं। दोनों ने माना है कि फैशन ऊटपटांग नहीं होनी चाहिए, स्थान, माहौल, क्षेत्र और समय के अनुरूप होनी चाहिए।

फैशन क्या है और लाइफ स्टाइल के अंतर्गत क्या-क्या आता है?

राहुल- फैशन एक लाइफ स्टाइल का जरूरी हिस्सा बन चुका है। घर, हेयर स्टाइल, कपड़ों, गा़डियों हर चीज में फैशन का रंग रंगा हुआ है। हर कल्पना भी फैशन है।

फैशन डिजाइनिंग की शुरूआत कब से हुई?

राहुल- प्राचीन मानव सभ्यता के उदय को ही मैं फैशन का जनक मानता हूं। 5000 से 10000 वर्ष पूर्व के अतीत को हम जब देखते हैं, जैसे रामायण-महाभारत काल को ही देख लीजिए तो ध्यान में आता है कि फैशन उनके जीवन का एक अभिन्न अंग था। हां, पर वह फैशन शालिनता की परंपरा के अनुरूप था। सबसे पहले जब कपड़ा बना और उसे पहना गया तब से ही मैं फैशन डिजाइनिंग की शुरूआत मानता हूं। पहले राजा-महाराजाओ के काल में भी फैशन पूरे ठाट-बाट के साथ विद्यमान  था।

अभी जो फैशन मार्केट में ट्रेंड चल रहा है, यह ट्रेंड कैसे आता है?

माधव- डिजाइनर जब फिल्मी सितारों के लिए विशेष रूप से कपड़े डिजाइन करता है, तो वे काफी महंगे होते हैं। उस डिजाइन में थोड़े बदलाव के साथ बाजार में उन्हें सस्ते दामों पर पेश किया जाता है। वह बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है, इसलिए वह सस्ता होता है। उसे लोग हाथों-हाथों लेना शुरू करते हैं, जिससे कुछ समय में ही वह ट्रेंड बन जाता है। कोई व्यक्ति जब लोकप्रिय होता है तो लोग उसका अनुकरण करने लगते हैं। उसकी देखादेखी उनकी नकल करते सभी लोग दिखाई  देते हैं, वही ट्रेंड हो जाता है जैसे कि आज ‘मोदी जैंकेट’ लोकप्रिय है। बाजार में उसकी बहुत मांग है। परिणामत: मोदी जैकेट आज ट्रेंड बना हुआ है।

आप ड्रेस डिजाइन करते समय किन-किन बातों पर विशेष ध्यान देते हैं?

राहुल- ग्राहक के मनपसंद डिजाइन के अनुरूप ही उसके व्यक्तित्व से मेल करते हुए ड्रेस डिजाइन की जाती है। इसमें कम्फर्ट, फिटिंग एवं सिलाई के साथ फिनिशिंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है। रंगों के प्रति संवेदनशीलता के साथ कल्पनाशक्ति ड्रेस डिजाइनर में होनी चाहिए। त्वचा-रंग, कद-काठी के अनुसार जो उसे अनुकूल होगा उसे ध्यान में रखकर व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुरूप ड्रेस डिजाइनिंग की जाती है।

फिल्मों के लिए ड्रेस डिजाइन करते समय किन मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जाता है?

माधव- फिल्मों के लिए ड्रेस डिजाइन करते समय हमें दो पहलुओं पर ध्यान देना होता है। पहला, फिल्म के किरदार की भूमिका के अनुसार ड्रेस डिजाइन की जाती है। दूसरा, उस किरदार को निभाने वाला कलाकार कौन है इसको भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। उदाहरण के तौर पर अगर किरदार धनी व्यक्ति का है परंतु उसे जो कलाकार निभा रहा है वह गठीला नहीं है, तो हमें ऐसे ड्रेस बनाने पडते हैं, जिससे उसके कपड़ों से ही उसका व्यक्तित्व रौबदार दिखने लगे।

                                        माधव अगस्ती द्वारा डिज़ाइन की गई मोगम्बो की ड्रेस

अमूमन लोग नायकों के कपड़े डिजाइन करने में रुचि लेते हैं, परंतु आपने खलनायकों को सजाया, ऐसा क्यों?

माधव- पहले के नायकों को फिल्मों में ज्यादातर गरीब, संघर्षरत दिखाया जाता था। वहीं दूसरी ओर खलनायक करोड़पति जमींदार, ज्यादातर अमीर होते थे, इसलिए उनके कपड़े डिजाइन करने में बहुत काम होता था। इसमें पैसे ज्यादा मिलते थे, उस वक्त मुझे पैसों की भी जरूरत होती थी। इसलिए खलनायक का काम करना मुझे अच्छा लगता था।

खलनायक की पहचान उसके कपड़ों से होती है, जिसे देख कर सभी डर जाए। खलनायक का चरित्र कपड़ों व गेटअप से दिखता है। नायक की तुलना में खलनायक के कपड़ों में बहुत ज्यादा डिजाइनिंग करनी होती थी, जिससे खलनायक के कपड़ों की डिजाइनिंग में मैं रूचि लेने लगा।

लेडिज फैशन डिजाइनिंग के बड़े बाजार को छोड़कर आपने जेन्ट्स फैशन डिजाइनिंग में कदम क्यों रखा?

माधव- मैं पहले से ही जेन्ट्स का काम करता था, जबसे मैंने टेलरिंग की शुरूआत की तब से जेन्टस का ही काम किया करता था, इसलिए लेडिज फैशन के बारे में न सोच कर सीधे जेन्टस फैशन डिजाइनिंग पर ही मैंने पूरा ध्यान लगाया।

आपके कार्य की शुरूआत कब हुई?

माधव- कॉलेज के दिनों से ही शौकिया तौर पर टेलरिंग कार्य की मैंने शुरूआत की थी। शौक और कॉलेज जीवन दोनों में सामंजस्य था। बाद में मैंने शौक को ही अपना पेशा बना लिया।

मुंबई में आने के बाद आपने अपना कामकाज कैसे बढ़ाया?

माधव- फिल्म इंडस्ट्री में सुपर्स टेलर्स के पास असिस्टेंट के रूप में काम किया। उनका इंडस्ट्री में बड़ा नाम था। कुछ समय उनके साथ काम करने के उपरांत मैंने स्वयं अपना काम शुरू किया। फिल्म ‘अपने- पराए’ में मुझे पहला ब्रेक मिला। उसके बाद निर्देशकों ने पूरी फिल्म ही देना शुरू किया। यही मेरी पहली उपलब्धि थी।

फैशन की दुनिया में किस तरह का बदलाव आ रहा है?

राहुल- आज के समय में डिसेंट, प्रेजेंटिबल और रियलस्टिक लगे ऐसी ही फैशन को पसंद किया जा रहा है। परिवर्तन तो संसार का नियम है ही किंतु फैशन की दुनिया में बड़े ही तेजी से बदलाव आ रहा है। कुछ समय पहले चटक रंगों से भरे कपड़े, तड़क-भड़क वाले कपड़े लोगों को भाते थे, तब फैशन के रूप में इसी की मांग थी, किंतु अब सादगी भरे परिधानों पर विशेष जोर दिया जा रहा है। वर्तमान समय में कुछ ही महीनों में फैशन की दुनिया में बड़े-छोटे बदलाव दिखाई देने लगते हैं।

फिल्मों की फैशन इंडस्ट्री में महिलाओं के आने से क्या बदलाव आए हैं?

माधव- जब से मैंने फिल्म इंडस्ट्री के फैशन डिजाइनिंग में कदम रखा तब से अब तक बहुत तेजी से बदलाव आए हैं। उस समय फैशन डिजाइनिंग में बेहद कम संख्या में महिलाओं की सहभागिता थी। वही आज फैशन डिजाइनिंग के हर क्षेत्र में महिलाओं की संख्या में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। फैशन डिजाइनिंग में अब महिलाओं का वर्चस्व बढ़ गया है। जेन्टस के डिजाइन का काम भी आजकल ब़ड़ी संख्या में महिलाएं कर रही हैं। इस क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भूमिका बड़े बदलाव की ओर संकेत करती है।

भारतीय फैशन इंडस्ट्री पेरिस की फैशन इंडस्ट्री से कितनी प्रभावित है?

माधव- भारतीय फैशन इंडस्ट्री व पेरिस फैशन इंडस्ट्री में पूरब व पश्चिम का अंतर है। इसलिए भारतीय फैशन पेरिस के फैशन से प्रभावित नहीं है। हां, लेकिन कम-अधिक मात्रा में दोनों ओर के लोग फैशन की नकल करते रहते हैं। पर वहां की जो फैशन है वह हमारे भारत में प्रचलित नहीं है।

राहुल- मूल मुद्दा यह है कि पेरिस में बहुत ज्यादा ठंडा मौसम है। इसके चलते वहां पर गर्म कपड़े पहनने का चलन है। वहां पर उसी मौसम के अनुकूल ही कपड़े पहने जाते हैं। वहीं दूसरी ओर हमारे भारत की बात करें तो यहां हर तरह के मौसम, भाषा, पंथ-मजहब, आदि अनगिनत विभिन्नताओं के चलते नाना प्रकार के फैशन दिखाई देते हैं। भारत के हर राज्य व शहरों में विविध शैलियों व पारंपरिक फैशनेबल से लबरेज फैशन की खूबसूरती चारों ओर आकर्षक रंग में रंगी हुई दिखाई देती है।

विदेशों में फैशन को लेकर जितने प्रयोग होते हैं क्या वैसे यहां भी हो सकता है?

राहुल- वहां बहुत प्रयोग होते हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं; क्योंकि वे बहुत ज्यादा आधुनिक हैं। वैसा यहां पूरी तरह से मुमकिन नहीं है। कुछ हद तक यहां भी हो रहा है किंतु हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते।

फैशन इंडस्ट्री में कितनी संभावनाएं हैं और इसका क्या भविष्य है?

राहुल- जैसे लोग खाना खाते हैं और खाए बिना रह नहीं सकते, ठीक उसी प्रकार फैशन भी हमारे जीवन में इस कदर रच बस गया है कि उससे हम दूर नहीं हो सकते हैं। इसलिए फैशन इंडस्ट्री में युवा पीढ़ी के लिए बहुत संभावनाएं हैं और रोजगार की दृष्टि से भी भविष्य सुरक्षित है। फैशन का भविष्य उज्ज्वल है। फैशन कभी भी रूक नहीं सकता।

पुराना फैशन ही थोड़े बदलावों के साथ नए फैशन के रूप में आता है, इस पर आपकी क्या राय है?

माधव- यह सही बात है कि पुराना फैशन ही थोड़े से बदलावों के साथ फैशन के रूप में आगेपीछे होकर हमारे सामने आता है, जिसमें हमें नयापन दिखाई देता है। जेन्ट्स फैशन की तो हर 10 साल में पुनरावृत्ति होती रहती है।

आपने अब तक किन-किन प्रमुख कलाकारों, हस्तियों या राजनेताओ के कपड़े डिजाइन किए हैं?

माधव- राजनेताओं की बात करें तो गोपीनाथ मुंडे, विलासराव देशमुख, मनोहर जोशी और कलाकारों की बात करें तो खलनायकों में अमरीश पुरी, परेश रावल, अमजद खान, प्राण साहब, अजित साहब… आदि अनेक हस्तियों के कपड़े मैंने डिजाइन किए हैं। राहुल- नाना पाटेकर, अभिषेक बच्चन, मिलिंद सोमण, राजीव खंडेलवाल, सुबोध भावे आदि अनेक हस्तियों के कपड़े भी हमने डिजाइन किए हैं।

आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे?

माधव- मेरे जीवन में आई सारी सफलताओं का श्रेय मैं अपनी पत्नी को देता हूं। उसके सहयोग-समर्पण, त्याग-योगदान से ही यहां तक का सफर मैं तय कर पाया हूं। यदि आपकी पत्नी आपका साथ न दे तो आप किसी भी हालत में सफल नहीं हो सकते। क्योंकि बच्चों को संभालना, उन्हें शिक्षा देना, खाना बनाना, घर की पूरी व्यवस्था संभालना आदि कार्य सब उन पर ही निर्भर होता है।

आप हमारे पाठकों को फैशन के बारे में क्या टिप्स देना चाहेंगे?

राहुल- मैं ‘हिंदी विवेक’ के पाठकों को यह टिप्स दूंगा कि फैशन की चकाचौंध से भरी दुनिया को देखकर स्वयं पर ऊटपटांग ‘एक्सपेरिमेंट’ मत कीजिए। स्थान, वातावरण, क्षेत्र एवं समयानुसार फैशन में हो रहे बदलावों को ध्यान में रखकर सुविधापूर्ण मनपसंद, जिसमें आप स्वयं आरामदेह महसूस करें ऐसे कपड़ों का चुनाव करें, जिसमें आपको सहजता प्रतीत हो और आपका चित्त प्रसन्न हो। इसके साथ ही आपके हावभाव व व्यक्त्त्वि से मेल खाते फैशनेबल कपड़े परिधान करें तथा स्वयं को तनावरहित रखें और खुश रहें। इससे आपकी सुंदरता में चार चांद लग जाएंगे।

फैशन की आड़ में कटे-फटे कपड़े पहनने से अभद्रता बढ़ती जा रही है, इस पर आपकी क्या राय है?

राहुल- फैशन के नाम पर मनमानी करने का अधिकार किसी को नहीं है। भारत जैसे महान संस्कृति-सभ्यता, परंपरा वाले देश में, जहां आज भी लगभग सभी लोग कटे-फटे कपड़ों को सुई-धागा से सिलकर पहनना पसंद करते हो, उस महान तपोभूमि में फैशन के नाम पर कटे-फटे, तंग वस्त्र को पहन कर अंग प्रदर्शित करना, अश्लिलता बढ़ाना, लोगों में उत्तेजना बढ़ाना जैसी घटिया मानसिकता वाली हरकत को मैं कतई उचित नहीं मानता। फिल्म इंडस्ट्री व माडलिंग की दुनिया तथा स्वयंघोषित बुद्धिजीवी हाई क्लास सोसायटी जैसे कुछ अपवादों को छोड़ कर आज भी भारतीय लोग बड़े ही मान-सम्मान के साथ अपनी संस्कृति, परंपरा का पालन कर रहे हैं, जिस पर हमें गर्व है। हम कपड़े पहनते हैं अपने अंगों को छुपाने के लिए, ना कि अंग प्रदर्शन करने के लिए! आज भी युवा पीढ़ी को यह ध्यान रखना होगा कि भोग- विलास के लिए कटे-फटे परिधान पहन कर अंग प्रदर्शन करने वालों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। फैशन की आड़ में मनमानी करने वाले ऐसे लोगों के मैं खिलाफ हूं।

 

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