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फैशन की शुरुआत गांवों से…

फैशन की शुरुआत गांवों से…

by निहारिका पोल
in ग्रामोदय दीपावली विशेषांक २०१६, फ़ैशन, सामाजिक
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गांव की मिट्टी की खुशबू कौन भूल सकता है भला? गांवों की बात ही निराली होती है। चाहे वह मिट्टी की सौंधी खुशबू हो, या फिर गांव की बोली, या वहां का पहनावा। वैसे भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गांवों की संख्या भी अधिक है। हर गांव का रंग एक दूसरे से अलग और निराला है। हर गांव का पहनावा, गहने, रहन-सहन सभी कुछ एक दूसरे से बहुत भिन्न है। आज हम नए-नए फैशन वीक्स में रैम्प पर जो एथनिक फैशन देखते हैं, वह अधिकतर गांवों से आई है। हर गांव, फैशन की एक नई कहानी सुनाता है। आइये आज सैर करते हैं भारत के इन्ही गांवों में, और जानते है फैशन की एक नई कहानी..

देखा जाए तो भारत के उत्तरी भाग में गांवों में पहनावा, बोली, गहने आदि के प्रकार और दक्षिण भारत के गांवों में इन सबके प्रकारों में जमीन आसमान का अंतर है। विविधता में एकता के सूत्र में बंधे ग्रामीण भारत की फैशन में भी विविधता है। जहां उत्तरी भारत में सिक्कों की माला का महत्व है, वहीं आज भी दक्षिण भारत में गांवों में सोने या सोने जैसे दिखने वाले गहनें प्रचलित हैं। देखते हैं भारत के विभिन्न गावों की खास फैशन।

१.कश्मीर की वादियों से: आपको पुराने जमाने के वह फोटोज याद हैं जिसमें नवविवाहित दंपति कश्मीरी पोशाकों में दिखाई देते थे? कश्मीर हमेशा से ही धरती का स्वर्ग रहा है, चाहे वह प्राकृतिक सुंदरता हो या वहां के लोगों की सुंदरता। कश्मीर पर देखा जाए तो शुरू से ही हिंदू और मुस्लिम दोनों संस्कृतियों का प्रभाव रहा है, इसीलिए यहां के मर्दों के पहनावे पर मुस्लिम छाप तो औरतों के पहनावे पर हिंदू छाप होती है। कश्मीर ठंडा प्रदेश होने के कारण यहां पर ऊनी कपड़ों के बहुत से प्रकार मिलते हैं। यहां की महिलाएं पहरान पहनती है। पहरान एक तरह की कुरते जैसा लंबी पोशाक होती है। जरी और ब्रोकेड का बना यह पहरान अनेक रंगों का होता है। इसमें अनेक जेबें भी होती है। इस पर तारंगा पहना जाता है। कश्मीर की पहचान तारंगा याने महिलाओं के सिर विशेष तरीके से बंधा हुआ कपडा। यह एक तरह का स्कार्फ होता है। हिंदू विवाह में यह तारंगा जरूर पहना जाता है। इसमें एक टोपी भी जुड़ी हुई होती है। इस पूरे पोशाक की खूबसूरती बढ़ाने के लिए ब्लैक मेटल और चांदी के झुमके होते हैं, ये पोशाक के साथ जुड़े होते हैं, साथ ही गले का नेकलेस, सर पर विशेष बेंदी जैसा गहना (हेडगिअर) भी काफी प्रचलित है। सर पर बांधा जाने वाला तारंगा कई प्रकार का होता है। यह पश्मीना शॉल का बना होता है। लाल रंग कश्मीर में काफी पवित्र माना जाता है। इसके साथ ही यहां पैर में गुराबी पहनी जाती है। यह एक प्रकार की मोजड़ी होती है। कश्मीर में यह काफी प्रचलित है। पहले यह मोजड़ी पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग होती थी, लेकिन अब बिना लेस की बनी यह गुराबी पुरुष व महिलाएं दोनों पहन सकते हैं। कश्मीर के गांवों में पुरुष मुख्यत: पठानी पजामा कुर्ते में देखे जाते हैं। ठंडा होने के कारण मुख्यत: इस पर जॅकेट, कोटी, स्वेटर पहना ही जाता है। धरती के स्वर्ग कश्मीर की यह ग्रामीण सुंदरता कश्मीर को सबसे अलग करती है।

२. पंजाब के गांवों से: पंजाब अपने लहलहाते खेतों और यहां की दिलखुलास संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। पंजाब के खेतों में काम करते गबरु जवान पठानी पोशाकों में दिखाई देते हैं, यहां की ग्रामीण संस्कृति में विशेष पहनावे का बहुत महत्व है, पंजाबी महिलाएं अक्सर ही पटियाला सलवार कुरता और चुनरी पहने देखी जाती हैं, यहां परांदे को सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। शादियों में दुल्हन और उसकी सहेलियों के सभी कपड़ों पर उन्ही रंग के परांदे पहनना आज की फैशन हो गई है। साथ ही सुनहरे और बड़े-बड़े झुमके और गले से चिपके हुए नेकलेस यहां बहुत प्रचलित हैं। पंजाबियों में कड़ा बहुत पवित्र माना जाता है। यहां के गावों में लगभग सभी आपको कड़ा पहने मिलेंगे। चटकीले रंगों वाले, सलमा सितारे जड़े सलवार कुरते और चुनरियां पंजाब की शान है। यहां के जवान अक्सर पठानी सूट या पंजाबियों के खास तांबा (लुंगी) और कुरते में देखे जाते हैं। पगड़ी तो पंजाबियों की शान है। मोना पंजाबी लोग पगड़ी नहीं पहनते लेकिन सरदारों में पगड़ी का बहुत महत्व है। पंजाबी गावों में फुलकारी कुरता भी बहुत पहना जाता है। यहां पर चोला भी काफी हद तक पहना जाता है। यह गाऊन जैसा लंबा वस्त्र होता है। गुरुद्वारे में चोला पहने बहुत से लोग देखे जाते हैं। पैरों में पंजाबी जूती, कलीरे, जामा, सलूका यह पंजाब की फैशन के कुछ प्रसिद्ध आयाम हैं।

३. गुजरात के गांवों से : नवरात्रि का नाम लिया जाए तो बस गुजरात ही आंखों के सामने आता है। गुजरात एक रंगीला प्रदेश है। गुजरात के गांवों ने आज भी परंपरा संजोई हुई है, इसका अहसास यहां के ग्रामीण लोगों को देख के ही हो जाता है। गुजरात के ग्रामीण भाग में आज भी बांधणी का कपड़ा बहुत प्रसिद्ध है, बांधणी की ओढणियां यहां के महिलाओं की पहली पसंद होती हैं, अनेक रंगों में और अनेक प्रकारों में आती ये बांधणी की ओढणियां और साडियां देखने में भी बहुत ही सुंदर लगती हैं। यहां की महिलाओं का साड़ी पहनने का तरीका भी भिन्न होता है। सीधे पल्ले की साडियां यहां की महिलाओं पर खूब जचती हैं। साथ ही घाघरा ओढणी यहां बहुत प्रचलित है। नवरात्रों में मां के गरबे में पहनी जाने वाली घाघरा ओढणी इन गांवों की ही देन है। इस पर सिक्कों की माला, हाथों में मोटे और चौड़े चांदी के कड़े, साथ ही सर पर भी एक छोर से दूसरे छोर तक सरधानी पहनी जाती है। और कमर में करधन, बाजुओं में बाजूबंद के स्थान पर मोटे सफेद कड़े पहनने की प्रथा यहां हैं। गुजरातियों में बिंदी का विशेष महत्व है। यहां पर गांवों के चौपाल पर बड़े बुजुर्ग धोती कुरता और बड़ी सी पगड़ी में नजर आते हैं। लहंगा ओढणी और सीधे पल्ले के अलावा यहां की महिलाओं में पायजेब और बिछिया पहनने की भी प्रथा है।

४. महाराष्ट्र की ग्रामीण फैशन: महाराष्ट्र का ग्रामीण भाग भी प्रचलित रहा है। यहां जितने मुंबई पुणे प्रसिद्ध हैं, उतने ही नासिक सोलापुर, कोल्हापुर विदर्भ और मराठवाडा के गांव भी प्रसिद्ध हैं। यहां की महिलाएं पारंपारिक नौ गज की साड़ी याने कि नौवारी पहनती हैं, ग्रामीण भाषा में इसे ‘लुगडं’ भी कहा जाता है। साथ ही गले में मंगलसूत्र के साथ-साथ त्यौहारों पर पोहेहार, लफ्फा, ठुशी, चपलाहार, एकदाणी, चिंचपेटी, लक्ष्मीहार आदि पहना जाता है। इसके साथ कान में कुडी और नाक में मोतियों की नथ यह मराठियों की पहचान है। महाराष्ट्र के गावों में माथे पर बड़ी बिंदी लगाना शुभ माना जाता है। ग्रामीण पुरुष धोती कुरते और सिर पर बड़ी सी पगडी पहने नजर आते हैं। सफेद धोती सफेद कुरता यहां की पहचान है। कोल्हापुर की कोल्हापुरी चप्पल और मोजड़ी यह फैशन की दुनिया को महाराष्ट्र से मिला वरदान है। महाराष्ट्रियन लोगों में मोती के गहने काफी प्रचलित हैं।

५. असम की भूमि से: असम की धरती बहुत ही सुंदर है। यह प्रदेश प्राकृतिक सुंदरता से भरापूरा प्रदेश है। यहां की महिलाओं का साड़ी पहनने का तरीका अलग है। यहां पल्ला नहीं लिया जाता बल्कि साड़ी को बिना प्लेट्स के केवल लपेटा जाता है। ऑफ व्हाईट और लाल रंग की साड़ियां यहां बहुत प्रचलित हैं, इनके साथ सिर पर बालों का जूड़ा बनाया जाता है और इसमें छोटी-छोटी लकड़ियां फसाईं जाती हैं। लाल बिंदी यहां बहुत शुभ मानी जाती है। बिहु के त्यौहार पर अक्सर ग्रामीण पुरुष और महिलाएं इस पोशाक में नजर आते हैं। पुरुष सफेद कुरता, धोती और पगड़ी धारण करते हैं, साथ ही वे गमछा भी पहनते हैं। यहां की महिलाओं की साड़ी भी खास होती है। इसे मेखलाचादोर कहा जाता है। यह तीन पीस वाली साड़ी होती है, इसमें ब्लाऊज, लहंगे जैसा वस्त्र और पल्ले के स्थान पर लंबी ओढणी होती है। महिलाओं की कमर पर शॉल जैसा वस्त्र भी बांधा जाता है जिसे पॉन कहते हैं। इस वर्ष के लॅकमे फैशन वीक में अभिनेत्री बिपाशा बासु ने भी असम के ग्रामीण भाग की फैशन याने की मेखलाचादोर को परिधान किया था।

६. मध्यप्रदेश की बुंदेला फैशन: मध्यप्रदेश याने भारत का हृदय। मध्यप्रदेश शुरू से ही यहां की बुंदेलखंडी फैशन को लिए प्रसिद्ध रहा है। यहां महिलाओं के साड़ी पहनने का तरीका भी बहुत भिन्न होता है। साथ ही जिस तरह यहां के शहरी भागों में माहेश्वरी और चंदेरी साडियां प्रसिद्ध हैं उसी तरह यहां के ग्रामीण भागों में हथकरघे पर बनी लुगरा ओढणी भी प्रसिद्ध है। लाल और काले रंग का यह परिधान बहुत सुंदर लगता है। काथिर और चांदी के जेवर भी प्रसिद्ध हैं। गले में बड़ी और मोटी चांदी और ब्लैक मेटल की माला, बड़ा नेकलेस, नाक में नथ फुल्ली, हाथ में कंगन और चांदी के कड़े, आदि बड़ा पवित्र माना जाता है, यहां की विवाहित महिलाओं के लिए सिंदूर का बड़ा महत्व है। बड़े पेंडंट के मंगलसूत्र और कान में कर्णफुली यहां की महिलाओं को बहुत प्रिय है। पुरुषों में आज भी धोती कमीज ही पहनी जाती है। साथ ही साथ झुलरी भी यहां के पुरुषों का खास पहनावा है। धोती कमीज पर जैकेट जेसा यह कपड़ा यहां के ग्रामीण पुरुषों को खूब भाता है। पैरों में पायजेब के साथ-साथ चांदी के मोटे कड़े भी पहने जाते हैं। बुंदेली नृत्यों में यह पहनावा देखा जा सकता है। इसके साथ ही महिलाएं सर पर जूड़ा बनाती हैं और उसमें फूल और पत्तियों का विशेष, गहना पहना जाता है।

७. छत्तीसगढ़ का ग्रामीण फैशन: छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के गांवों के पहनावे-गहने और रहन-सहन में काफी समानता है। इसका एक कारण यह भी है कि, छत्तीसगढ़ पहले मध्यप्रदेश का ही एक हिस्सा हुआ करता था। लेकिन समय के साथ छत्तीसगढ़ के ग्रामीण भागों ने भी खुद की एक पहचान बनाई है। छत्तीसगढ़ में साड़ी पहनने का तरीका बुंदेलखण्ड जैसा ही होता है, लेकिन यहां के जेवर मध्यप्रदेश के गांवों से भिन्न हैं। चांदी के बने ये जेवर महिलाओं की पहली पसंद है। इसमें गले में सिक्कों की माला पहनी जाती है, जिसे रुपया माला कहते हैं। चांदी का एक मोटा सा जेवर गले में पहना जाता है, जिसे गोलतिलरी कहा जाता है। सूता, पतरी, सुडैरा ये सभी गले में पहनने के जेवर हैं। कमर में करधन, और बाजुओं में टरकउव्वा पहनने की पुरानी प्रथा छत्तीसगढ़ में है। टरकउव्वा एक प्रकार का मोटा कड़ा होता है, जिसे बाजुओं में पहना जाता है। वैसे तो छत्तीसगढ़ धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है, लेकिन आज भी यह ग्रामीण संस्कृति को संजोए हुए है। छत्तीसगढ़ की महिलाएं कान में झुमका, ढार, किनवा, करनफूल आदि जेवर पहनना पसंद करती हैं। साथ ही पैरों में पायजेब, तोड़ा, पैंजन, लच्छा, सॉटी और कांसे के पैरी पहने जाते हैं। ये सब विभिन्न प्रकार के जेवर हैं, जो छत्तीसगढ़ की यूनिक फैशन का परिचय कराते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर की युवतियां ब्याह तय होने के बाद, सर में लकड़ी की फणी परिधान करती हैं, यह छोटे कंघे की तरह होता है। यह शादी तय होने की पहचान है।

८. दक्षिण भारत की रंगीन फैशन: वैसे तो दक्षिण भारत शुरू से ही बहुत रंगीन और सुंदर रहा है। चेन्नई एक्सप्रेस फिल्म जिसने भी देखी होगी वह इस बात से जरूर सहमत होगा। दक्षिण भारत की संस्कृति हर तरह से बहुत सुंदर रही है। यहां लड़कियां और छोटी बच्चियां हाफ साड़ी पहनती हैं। यह महाराष्ट्र के परकर पोलकं जैसा परिधान होता है। इसमें कम घेर वाला लहंगा, फुग्गा स्लिव्ह्स का ब्लाऊज और दुपट्टा हौता है, एवं दुपट्टे को साड़ी के पल्ले की तरह लपेटा जाता है। महिलाएं जरी की साडियां परिधान करती हैं। केरल और आसपास के भागों में ऑफ व्हाईट रंग की साड़ी और उसमें सुनहरी जरी का बॉर्डर काफी प्रसिद्ध है। आज भी वहां के विवाहों में दुल्हन यही साड़ी पहनती हैं। ग्रामीण भाग हो या शहरी गहनों में सोना ही प्रसिद्ध है। सोने के झुमके, बड़े-बड़े गले के जेवर चटख रंगों की जरी वाली साड़ियों पर खूब सजते हैं। यहां की ग्रामीण संस्कृति में नाक के बीचोंबीच नथ पहनने का प्रचलन है। यहां के पुरुष सारोंग पहनते हैं, इसे आम भाषा में लुंगी कहा जाता है। साथ ही वे कम लंबाई के कुरते पहनते हैं। अपनी-अपनी परिस्थिति के अनुसार पुरुषों में भी गले में सोने की चेन और कड़ा पहनने का प्रचलन है। महिलाओं में बालों में गजरे डालने का प्रचलन बहुत है। मोगरा, चंपा, चमेली, अबोली के फूलों से बने ये गजरे बहुत ही सुंदर और फ्रेश लगते हैं। महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही माथे पर शंकर भगवान के समार त्रिपुट लगाने की प्रथा है।

अनेक रंगों और ढंगों से सजे भारत की ग्रामीण फैशन भी अलग-अलग है। भारत का हर भाग अपने-आप में बहुत नए-नए तरीके के पहनावे, गहने, कपड़े, पादत्राण समेटे हुए हैं। बड़े-बड़े फैशन शो में आने वाला एथिनिक फैशन इन्हीं गांवों से जन्म लेता है। भारत की पहचान इन गांवों ने फैशन की दुनिया को सच में बहुत कुछ दिया है।

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