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प्रदूषण : नियंत्रण व उपाय

by प्रा. डॉ. मनोहर
in पर्यावरण, पर्यावरण विशेषांक -२०१७, सामाजिक
1

आज विश्व में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर गंभीर चिंता एवं बहस की जा रही है। पर्यावरणविदों के मन में प्रदूषित होते शहरों के बारे में गहरी चिंता उभर रही है। प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण बना देता है, वरन् जीव-जंतु, पशुपक्षी, पेड़-पौधें व वनस्पतियों को भी सड़ा-गला कर नष्ट कर देता है। आज हम बीमार पर्यावरण में जी रहे हैं। प्रदूषण के कारण विश्व में प्राणियों का अस्तित्व खतरे में है। आज पूरा पर्यावरण बीमार है। पर्यावरण के कारण बहुत बड़ा संकट उपस्थित हो गया है। वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही इसके विरुद्घ चेतावनी दी थी; परंतु उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। फलत: आज सारा विश्व इसके कारण चिंतित है

देश में पर्यावरण की स्थिति

आज आधुनिकता के केंद्र में मनुष्य है। मनुष्य को सिर्फ धन व प्रतिष्ठा अर्जित करना ही महत्वपूर्ण लग रहा है। धन व प्रतिष्ठा दो देशों से लेकर दो परिवारों के बीच तक अपना पांव पसार कर प्रकृति को सर्वनाश की पराकाष्ठा तक पहुंचाने में लगे हैं। अब तो विकसित देश विकासशील देशों की ओर बड़े ध्यान से टकटकी लगाए देख रहे हैं कि जो कुछ अपने विकास के लिए उन्होंने किया है वही तो नहीं कर रहे हैं।

बढ़ता प्रदूषण वर्तमान समय की एक सबसे बड़ी समस्या है, जो आधुनिक व तकनीकी रूप से उन्नत समाज में तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या से समस्त विश्व अवगत तथा चिंतित है। प्रदूषण के कारण मनुष्य जिस वातावरण या पर्यावरण में पल रहा है, वह दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है। कहीं अत्यधिक गर्मी सहन करनी पड़ रही है, तो कहीं अत्यधिक ठंड। इतना ही नहीं, समस्त जीवधारियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों का भी सामना करना पड़ रहा है। प्रकृति व उसका पर्यावरण अपने स्वभाव से शुद्घ, निर्मल और समस्त जीवधारियों के लिए स्वास्थ्यवर्द्घक होता है। परंतु किसी कारणवश यदि वह प्रदूषित हो जाता है, तो पर्यावरण में मौजूद समस्त जीवधारियों के लिए वह विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करता है। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। इसके लिए मनुष्य के क्रियाकलाप व उसकी जीवनशैली काफी हद तक जिम्मेदार है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ औद्योगीकरण तथा शहरीकरण पनपा है। जनसंख्या वृद्घि के कारण मनुष्य दिन-प्रतिदिन वनों की कटाई करते हुए खेती व घर के लिए जमीन पर कब्जा कर रहा है। खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिए रासायनिक खादों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे भूमि के साथ-साथ जल भी प्रदूषित हो रहा है। यातायात के विभिन्न नवीन साधनों के प्रयोग के कारण ध्वनि एवं वायु प्रदूषित हो रहे हैं। गौर किया जाए, तो प्रदूषण वृद्घि का मुख्य कारण मानव की अवांछित गतिविधियां हैं जो प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करते हुए इस पृथ्वी को कूड़े-कचरे का ढेर बना रही हैं। कूड़ा-कचरा इधर-उधर फेंकने से जल, वायु व भूमि प्रदूषित हो रही है, जो संपूर्ण प्राणी-जगत के स्वास्थ्य को रोगी बना रही हैं।

पर्यावरण संकट के कारण हमने क्या खोया? इसकी लंबी सूची है लेकिन मुख्य रूप से हवा, जल, अनाज सब से अधिक प्रभावित हो रहे हैं। हमने जल संकट से जूझना प्रारंभ किया है। जल संकट पर नियंत्रण काफी हद तक सफल रहा है, पर वायु प्रदूषण से उबरने में समय लगेगा।

सरकार द्वारा काफी योजनाओं का क्रियान्वयन पर्यावरण संरक्षण और इसकी जागरूकता के लिए हो रहा है, लेकिन इसके अपेक्षाकृत परिणाम नहीं निकलते। क्योंकि यह एकाध गांव तक ही सीमित रहता है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जब तक लोग व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदारी नहीं लेंगे, तब तक हालात नहीं सुधरेंगे। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के हिवरे बाजार गांव का जिक्र करना बेहतर होगा। पहले यहां ‘चोर के हाथ में चाबी देने’ वाली कहावत चरितार्थ होती प्रतीत होती थी। १५ साल पहले तक सूखाग्रस्त इस गांव में सिवाय पलायन के लोगों के पास दूसरा चारा नहीं था। लेकिन ९० के दशक में वैज्ञानिक सोच व सरकारी योजनाओं के सही कार्यान्वयन के बाद बदलाव की बयार आई और आज यह गांव समृद्घ बन गया है।

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए जब तक कोई वैश्विक नीति नहीं तैयार की जाती, तब तक इस समस्या से निपटना नामुमकिन है। कहने को तो पिछले कई सालों से बड़ी-बड़ी संधियां और वादे किये गए, लेकिन सब धरे के धरे ही रह गए हैं। अब तक हमने इस मामले में एक इंच भी प्रगति नहीं की। इसकी सब से बड़ी वजह शायद यह है कि ग्रीन हाउस गैसों तथा प्रदूषण नियंत्रण के वादे हैं, मगर नियंत्रण का कोई पैमाना तय नहीं होता। अमेरिका, जापान, कनाडा तथा न्यूजीलैंड जैसे कई विकसित देश चाहते हैं कि चीन, भारत, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देश भी प्रदूषण नियंत्रण के उपाय ढूंढे।

प्रदूषण पर नियंत्रण

पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम जनसंख्या वृद्घि पर रोक लगानी होगी, ताकि आवास के लिए वनों की कटाई न हो। खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्घि के लिए रासायनिक उर्वरकों तथा कीटकनाशकों के साथ-साथ जैविक खाद का इस्तेमाल हो। कूड़े-कचरे को पुन: खाद में परिवर्तित करने पर जैविक खाद बनती है। परिणामत: यह पृथ्वी कूड़े-कचरे का ढेर बनने से बच जाएगी।

कारखानों से निकलने वाले गंदे पानी को सीधे नदी-नाले में न डालें और उनको साफ कर (निर्जंतुक) नदियों में बहाना होगा। यातायात के विभिन्न साधनों का प्रयोग जागरूकता के साथ करना होगा। अनावश्यक रूप से हॉर्न का प्रयोग न करना, अत्यधिक शोर उत्पन्न करने वाले वाहनों पर रोक लगाना, जब जरूरत न हो तब इंजन बंद करना, नियमित रूप से गाड़ी के साइलेंसर की जांच करवाना आदि बातें धुएं के अत्यधिक प्रसार को नियंत्रित कर सकती हैं। उद्योगपतियों को अपने स्वार्थ को छोड़ उद्योगों की चिमनियों को ऊंचा करना होगा तथा उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण के नियमों का पालन करना होगा। हिंसक क्रियाकलापों पर रोक लगानी होगी। आम लोगों को जागरूक बनाने के लिए उन्हें पर्यावरण के लाभ और उसके प्रदूषित होने पर उससे होने वाली समस्याओं की विस्तृत जानकारी देनी होगी। लोगों को जागरूक करने के लिए उनके मनोरंजन के माध्यमों द्वारा उन्हें आकर्षक रूप में जागरूक करना होगा। यह काम समस्त पृथ्वीवासियों को मिल कर करना होगा, ताकि हम अपने उस पर्यावरण को और प्रदूषित होने से बचा सके जो हमें जीने का आधार प्रदान करता है। प्रदूषण चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, हर हाल में वह मानव व समस्त जीवधारियों के साथ-साथ जड़-पदार्थों को भी नुकसान पहुंचाता है।

प्रदूषण रोकने के उपाय

पर्यावरण की सुरक्षा से ही प्रदूषण की समस्या को सुलझाया जा सकता है। पर्यावरण शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- परि व आवरण। ‘परि’ शब्द का अर्थ है बाहरी तथा ‘आवरण’ का अर्थ है कवच। अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है ‘बाहरी कवच’। कवच नुकसानदायक तत्त्वों से वातावरण की रक्षा करता है। यदि हम अपने पर्यावरण को ही असुरक्षित कर दें, तो हमारी रक्षा कौन करेगा? इस समस्या पर यदि हम आज मंथन नहीं करेंगे, तो प्रकृति संतुलन स्थापित करने के लिए स्वयं कोई भयंकर कदम उठाएगी औैर हम मनुष्यों की शक्ति के बाहर की बात होगी। प्रदूषण से बचने के लिए हमें अत्यधिक पेड़ लगाने होंगे। प्रकृति में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन रोकना होगा। हमें प्लास्टिक की चीजों के इस्तेमाल से परहेज करना होगा। कूड़े-कचरे को इधर-उधर न फेंकें। वर्षा के जल का संचय करते हुए भूमिगत जल को संरक्षित करने का प्रयास करें। पेट्रोल, डीजल, बिजली के अलावा हमें ऊर्जा के अन्य स्रोतों से भी ऊर्जा के विकल्प ढूंढने होंगे। सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा के प्रयोग पर बल देना होगा। अनावश्यक एवं अनुपयोगी ध्वनियों पर रोक लगानी होगी। तकनीक के क्षेत्र में नित्य नए-नए प्रयोग व परीक्षण हो रहे हैं। हमें उनको सही ढंग से अपनाना है ताकि प्रदूषण न फैले। सब से अहम बात यह है कि हमें मनुष्यों को बचाने के लिए सकारात्मक सोच रखनी होगी तथा निःस्वार्थ होकर पर्यावरण-प्रदूषण से बचने के लिए कार्य करना होगा। हमें मन में यह ध्येय रख कर कार्य करना होगा कि हम स्वयं अपने आपको, अपने परिवार को, देश को और इस पृथ्वी को सुरक्षित कर रहे हैं।

प्रदूषण की रोकथाम

हमें प्रदूषण की रोकथाम के लिए कुछ व्यवहारजन्य आदतें डालनी होंगी। मसलन-

१. घर में टी.वी., संगीत संसाधनों की आवाज धीमी रख कर, कार का हॉर्न अनावश्यक न बजाकर, लाउड स्पीकर का प्रयोग न कर, शादी-विवाह में बैंड-बाजे-पटाखे आदि व्यवहार में न लाकर, ध्वनि प्रदूषण संबंधी सभी कानूनों का पालन कर; हम ध्वनि प्रदूषण को कुछ अंशों में कम कर सकते हैं.

२. घर, फैक्ट्री, वाहन के धुएं को सीमा में रख कर, पटाखों का इस्तेमाल न कर, कूड़ा-कचरा न जला कर व उसे नियत स्थान पर डाल कर, थूकने के लिए बहती नालियों, पीकदान या थूकदान का इस्तेमाल कर, वायु प्रदूषण संबंधी सभी कानूनों का पालन कर; हम वायु प्रदूषण को कुछ अंशों में कम कर सकते हैं।

३. नालों, कुओं, तालाबों, नदियों में गंदगी न छोड़े, सार्वजनिक जल वितरण के साथ छेड़छाड़ न करें, विसर्जन नियत स्थान पर ही करें, पानी की एक बूंद भी बर्बाद न करें, जल प्रदूषण संबंधी सभी कानूनों का पालन करें तो हम जल प्रदूषण को कुछ अंशों में कम कर सकते हैं।

४. रासायनिक की जगह जैविक खाद, प्लास्टिक की जगह कागज, पोलिस्टर की जगह सूती कपड़े या जूट आदि का इस्तेमाल करें। प्लास्टिक की थैलियां आदि रास्ते में न फेंकें। ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे, हरियाली लगाएं, कृषिजन्य कचरा नदी के बहाव के पूर्व रोकें। रसायन संबंधी सभी कानूनों का पालन करें तो हम रासायनिक प्रदूषण को कुछ अंशों में कम कर सकते हैं।

पर्यावरण की सुरक्षा आज की बड़ी समस्या है। इसे सुलझाना हम सब की जिम्मेदारी है। इसे हमें प्राथमिकता प्रदान करनी है तथा पर्यावरण की सुरक्षा में सहयोग देना है। अत: अंत में, पर्यावरण से जुड़ी संस्था ‘वर्ल्ड वाइल्ड फण्ड’ की भविष्यवाणी से आपको आगाह कराता हूं। वह भविष्यवाणी है कि जिस रफ्तार से संसाधनों का दोहन हो रहा है, उस क्रम से अगले पचास सालों में ही कार्बन डाइआक्साइड सोखने वाले सारे जंगल उजड़ जाएंगे और समुद्र की मछलियां या जलचर जीव गायब हो जाएंगे। न शुद्घ हवा मिलेगी और न शुद्घ पानी मिलेगा। अब आप ही सोचिए कि पर्यावरण ही न रहेगा तो क्या होगा?

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प्रा. डॉ. मनोहर

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विकास और पर्यावरण में टकराव न हो

Comments 1

  1. Anonymous says:
    6 years ago

    चिंता जनक स्थिति हो गई है हम सब को इस के लिए काम करना होगा

    Reply

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