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केरल की हिंसा वामपंथियों की राजनीति का हिस्सा – जे. नंदकुमार

by महेश पुराणिक
in अप्रैल २०१७, संघ, साक्षात्कार
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गत कई वर्षों से केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं राष्ट्रवादी विचारधारा के कार्यकर्ताओं की हत्या की जा रही है। इन घटनाओं की पार्श्वभूमि, वैचारिक संघर्ष, राज्य सरकार एवं पुलिस की भूमिका तथा संघ का इन सब घटनाओं की ओर देखने का दृष्टिकोण, ये सारी बातें नागरिकों को ज्ञात हो इसलिए प्रस्तुत है ‘मुंबई तरुण भारत’ के प्रतिनिधि महेश पुराणिक द्वारा संघ की राष्ट्रीय मीडिया टीम के सह-समन्वयक श्री जे. नंदकुमार से किए गए विशेष साक्षात्कार के महत्वपूर्ण अंश

 

केरल में सीपीएम-सीपीआई विरुद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह संघर्ष पुराना है। इसकी पार्श्वभूमि क्या है?
संघ कार्यकर्ताओं पर कम्युनिस्ट हिंसाचार का प्रारंभ सन १९६९ से हुआ। उस समय वडीकल रामकृष्णन नामक गरीब स्वयंसेवक की हत्या की गई। उसके बाद गत ५० वर्षों में केरल में २६७ से ज्यादा स्वयंसेवक एवं हितचिंतक मारे जा चुके हैं। इनमें से २३२ लोगों की हत्या माकपा के कार्यकर्ताओं द्वारा तथा शेष कट्टरपंथी इस्लामी गुंडो द्वारा की गई है। कन्नूर जिले में बड़ी मात्रा में घटनाएं हुई हैं जिनकी निश्चित संख्या बताना मुश्किल है। जितनी तादाद में ये हत्याएं हुई हैं उससे छह गुना अधिक लोग घायल हुए हैं। कन्नूर में इन हमलों का मुख्य कारण है सीपीएम कार्यकर्ताओं का संघ और अन्य राष्ट्रवादी संगठनों की ओर बढ़ता आकर्षण। कन्नूर में हमारे सर्वाधिक कार्यकर्ता मुख्यत: माकपा छोड़कर आए हैं। अन्य राजनीतिक अथवा अराजनीतिक संगठनों ने मार्क्सवादीयों की इस विस्तारवादी, वर्चस्ववादी नीतियों एवं गुंडागर्दी के सामने घुटने टेके, परंतु संघ ने उसका विरोध किया। इसी कारण संघ हमेशा मार्क्सवादियों के निशाने पर रहता है। संघ के पहले बलिदानी रामकृष्णन का गुनाह केवल इतना था कि वह संघ का स्वयंसेवक था। मैं यहां कुछ कहना नहीं चाहता परंतु सत्य यही है कि केरल के वर्तमान मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन रामकृष्णन की हत्या के प्रमुख आरोपी थे। कन्नूर के हिंसाचार का यह इतिहास है।

गत कुछ वर्षों मे इन घटनाओं में वृद्धि हुई है या इनमें कमी आई है?
वडीकल रामकृष्णन की हत्या के बाद सीपीएम ने यही पद्धति अन्य जगह भी अपनाई जिसे बाद में ‘कन्नूर मॉडल‘ का नाम दिया गया। इसके बाद तो इस प्रकार की हत्याओं एवं हिंसा का सिलसिला ही चल पड़ा जो आज तक चालू है। सीपीएम नेतृत्व इसी मॉडल को राज्य में अन्य जगह भी अपनाता है। आपातकाल के बाद सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर संघ एवं अन्य राष्ट्रवादी संगठनों की सदस्यता ग्रहण की। इसका कारण आपातकाल को सीपीएम का मौन समर्थन एवं संघ की लोकतंत्र के पुनरुस्थान के लिए निभाई गई सक्रिय भूमिका थी। आपातकाल के बाद सीपीएम की संघ कार्यकर्ताओं पर हमलों में तीव्र वृद्धि हुई। राज्य की सत्ता में सीपीएम प्रत्येक पांच वर्ष के अंतराल में आती रही है। जब जब सीपीएम सत्ता में होती है वह प्रशासन का उपयोग संघ को कुचलने में करती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि यही घटनाएं अब भी घटित हो रही हैं। सीपीएम के राज्य सचिव कोडियारी एवं कन्नूर के जिला सचिव जी जयराजन इन दोनों ने ही सीपीएम की सत्ता आने के बाद संघ एवं भाजपा के विरोध में हिंसा भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बाद की घटनाओं से यह सिद्ध भी हुआ। उनके कार्यकर्ताओं ने पार्टी के इस आदेश को और अधिक जोर से अमल में लाने हेतु प्रयत्नों की पराकाष्ठा की। इस कारण आवश्यकता है कि संपूर्ण समाज को इस पार्टी एवं सरकार द्वारा प्रायोजित आतंक के विरोध में खड़ा होना होगा।

क्या आपको लगता है कि यह वैचारिक लड़ाई है?
रा. स्व. संघ लड़ाई- झगड़ा, संघर्ष और हिंसा पर विश्वास नहीं रखता। सब की एकता हेतु हम एकात्म मानव दर्शन पर विश्वास रखते हैं। इसमें अन्य विचारों के बाबत यदि भेदाभेद भी हैं या तनाव है तब भी सब को समान स्थान रहेगा। संघर्ष और वह भी सशस्त्र यह कम्युनिस्ट विचारधारा के लिए आवश्यक है। यदि हम वैश्विक दृष्टि से भी देखें तो हिंसा इस पार्टी के कार्यक्रम एवं नीतियों में शामिल है। वे वर्ग संघर्ष (वर्ग-शत्रु) पर विश्वास रखते हैं, एवं उनके समूल नाश का प्रयत्न करते हैं। इस कारण वे अपने विश्वास को अमल में लाते हैं। उनके हमलों से कांग्रेस, आईयूएमएल, सीपीआई एवं एआईएसएफ के कार्यकर्ता भी अछूते नहीं रहे हैं।
‘सीपीएम विरुद्ध रा. स्व. संघ’ के बजाय ‘सीपीएम विरुद्ध अन्य सभी’ यह प्रचलित परिस्थिति है। यदि आप पुरानी घटनाओं का अवलोकन करें तो स्पष्ट होगा कि हमारे सर्वाधिक बलिदानी पहले सीपीएम के कार्यकर्ता रहे हैं।

वामपंथी विचारधारा का प्रभाव दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है। क्या ये हत्याएं वामपंथियों की निराशा का द्योतक है?
यह सच है कि वामपंथी विचारधारा का सभी जगह दिन-ब-दिन र्हास हो रहा है। विश्व की परिस्थिति का विचार एवं भारतीय राजनीति का इतिहास दोनों इसके साक्षी हैं। परंतु आपने सब ओर देखा होगा कि वामपंथी अपनी विचारधारा के लिए अंत तक संघर्ष करते हैं। इस अंतिम संघर्ष में वे हमेशा हिंसा एवं आतंक का सहारा लेते हैं। यही घटनाएं वर्तमान में हम केरल में देख रहे हैं।
रा.स्व.संघ का विचार संपूर्ण देश में हो रहा है परंतु आपने केरल जैसी परिस्थिति कही नहीं देखी होगी। इसका यह अर्थ नहीं है कि रा.स्व. संघ की विचारधारा के विरोधी देश में अन्यत्र नही हैं। वे तो हैं परंतु रा.स्व.संघ के विस्तार कार्यक्रम में वैचारिक विरोधियों के विरुद्ध हिंसा को स्थान नहीं है। परंतु यदि आप केरल की सभी राजनीतिक हिंसक घटनाओं का अध्ययन करें तो एक सिरे पर चाहे अन्य कोई भी हो दूसरे पर हमेशा माकपा एवं उसके कार्यकर्ता होंगे। फासिस्ट एवं दलीय विचारधारा के कारण कम्युनिस्ट राष्ट्रवादियों के विरुद्ध हमेशा असहिष्णु हैं।

कम्युनिस्ट अपने पाशवी हमलों में बच्चों एवं स्त्रियों तक को नहीं छोड़ते, इस विषय में आप क्या विचार करते हैं?
सीपीएम अपने हिंसक विचारों के प्रचार -प्रसार में कोई भेदभाव नहीं बरतते हैं। अर्थात हिंसक हमले करते समय वे स्त्री-पुरुष- बच्चों में कोई भेद नहीं करते। जैसा मैंने पहले कहा, यह परिस्थिति ‘कम्युनिस्ट विरुद्ध अन्य सब’ जैसी ही है। कम्युनिस्टों ने न केवल हमारे कार्यकर्ताओं पर वरन उनके घरों में घुस कर उनके स्त्री-पुत्रों पर भी हिंसक हमले किए हैं। इतना ही नहीं उन्होंने पुरुषों के गले काट दिए एवं उनके पालतू प्राणियों की भी हत्या कर दी। माकपा कार्यकर्ताओं ने गत हफ्ते में केरल के पलक्कड में एक सात वर्षीय बच्चे पर बार-बार हमला किया, उसके परिवारजनों को जलाने का प्रयास किया। इस बच्चे के परिवारजन भाजपा से सबंधित थे, उस समय उन्हें बचाने गए भाजपा कार्यकर्ता श्री राधाकृष्णन को भी गंभीर चोंटें आईं। इस घटना के अन्य सभी पीड़ित अभी भी बीमार हैं। यह अत्यंत निराशाजनक है कि किसी भी प्रचार प्रसार माध्यम ने इसकी खोज खबर नहीं ली। मलप्पुरम नामक मुस्लिम बहुल जिले में सीपीएम के गुंडों ने भाजपा कार्यकर्ता के दस महीने के पुत्र को रास्ते पर फेंक दिया। मैं तो कहूंगा कि हिंसक कारनामे मार्क्सवादियों की विफलता के द्योतक हैं। ऐसे तिरस्कारणीय कृत्यों को करने वालों को तो केवल बालकभक्षी-नरभक्षी ही कहा जा सकता है।

रा.स्व. संघ का इन सभी हत्याओं की ओर देखने का दृष्टिकोण क्या है?
केरल का हिंसाचार वामपंथियों ने शुरू किया है इसमें किंचित भी शंका नहीं है। राज्य में रा.स्व. संघ एवं गैर कम्युनिस्ट दलों पर अनेक बार इकतरफा हमले हुए। इसका एकमेव उपाय है कि वे हिंसा छोड़े एवं संघ के साथ शांति हेतु बात करें। एक बार सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत कन्नूर में विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता श्री अशोक जी सिंघल को श्रंद्धाजलि देने हेतु प्रचार माध्यमों से रुबरु हुए। जब कन्नूर के राजनीतिक हिंसाचार के विषय में उनसे प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘हमने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर शांति के लिए हाथ बढ़ाया है।’’ क्या कल्पना कर सकते हैं कि रा. स्व. संघ के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति यह बात कह रहा है। मोहनजी को पता था कि वहां की परिस्थिति कितनी गंभीर है। परंतु वर्तमान मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने अपनी पुरानी ठसन भरी पद्धति से ही उत्तर दिया कि यदि मोहन भागवत की इच्छा होगी तो हिंसाचार का अंत होगा।
‘साप्ताहिक केसरी’ के संपादक के नाते, हमारे संगठन के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी से चर्चा न करते हुए हिंसाचार की समाप्ति हेतु आवाहन करने वाला एक लेख प्रकाशित किया। मैंने इसमें इतिहास की किसी घटना का उल्लेख नहीं किया। यह सब किसने शुरू किया इसका किसी पर आरोप नहीं किया एवं किसके कितने कार्यकर्ताओं की हत्या हुई इसे भी न लिखते हुए केवल सकारात्मक भूमिका प्रस्तुत की। वैसे ही हिंसा की तत्काल समाप्ति हेतु आवाहन किया। परंतु माकपा की प्रतिक्रिया बहुत ही निराशाजनक एवं शांति के आवाहन का मजाक उड़ाने वाली थी। यदि ऐसा भी है तब भी रा. स्व. संघ हमेशा शांति के पक्ष में ही खड़ा रहेगा यह निश्चित है।

दिल्ली की वर्तमान सरकार संघ विचारों की है। अतः क्या इस मामले में सरकार ने कुछ हस्तक्षेप किया? और यदि नहीं किया हो तो भविष्य में न्याय प्राप्ति हेतु क्या कुछ योजना है?
हम न्याय के लिए गत ५० वर्षों से अथक प्रयत्न कर रहे हैं। रा. स्व. संघ, भाजपा और अन्य राष्ट्रवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं को केरल में गत अनेक दशकों से संवैधानिक अधिकार नकारे जा रहे हैं। हम कानून एवं संविधान के दायरे में सभी स्थायी उपायों पर विचार कर रहे हैं। परंतु राज्य सरकार पर हमारा विश्वास नहीं है। क्योंकि वहां की सरकार ने इस प्रायोजित आतंकवाद का हमेशा समर्थन किया है। केन्द्र सरकार के अतिरिक्त देश के अन्य भागों में कार्यरत मानवाधिकार संगठनों, प्रचार माध्यमों एवं नागरिकों को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अमानुष कृत्यों को उजागर करने हेतु आगे आना चाहिए।

पुलिस एवं न्यायपालिका इस विषय को किस प्रकार देखते हैं?
हमारी न्यायपालिका पर पूर्ण श्रद्धा है। मतभेद होते हुए भी न्यायपालिका राजनीति से दूर है इस पर हमारा विश्वास है। हमें हमारे मूलभूत एवं संवैधानिक अधिकार पुन: प्राप्त होने चाहिए यह इच्छा है। भारतीय संविधान ने स्वतंत्रता एवं सांस्कृतिक सुरक्षा की गारंटी दी है। ऐसा होते हुए भी, कन्नूर की राजनीति का विचार करते समय ऐसा लगता है कि पुलिस को माकपा का डर लगता है एवं हर पांच वर्ष बाद सत्ता में आने वाले इस दल से सख्ती से निपटने में अपने आप को असहाय पाती है। पुलिस प्रशासन में भी माकपा के लोग हैं। यदि माकपा का कोई कार्यकर्ता किसी आरोप में जेल में जाता है तो उसे वहां वीआईपी ट्रीटमेंट मिलती है। विधान सभा चुनाव जीतने के बाद माकपा के राज्य के प्रमुख नेता कुन्नुर सेंट्रेल जेल के ब्लॉक आठ में बंद सीपीएम के सजायाफ्ता कार्यकर्ताओं से मिलने आए थे। सीपीएम के सजायाफ्ता गुनहगारों को एल.डी. एफ. के सत्ता में आने के बाद मुक्त कर दिया गया। कांग्रेस की भी इसमें मूक सम्मति है क्योंकि दोनों ही भाजपा को अपना मुख्य शत्रु समझते हैं। पुलिस संघ स्वयंसेवकों को बिना किसी कानून कायदे के जेल में ठूंसती है एवं माकपा के अनुकुल बयान देने को बाध्य करती है। गत दिनों इस प्रकार की अनेक घटनाएं सामने आई हैं जहां पुलिस ने स्वयंसेवकों पर भयानक अत्याचार किए एवं सरकार ने पुलिस को निर्दोष घोषित कर दिया। इस प्रचलित परिस्थिति में हम पुलिस से कैसे न्याय की अपेक्षा कर सकते हैं?

गत कुछ दिनों में केरल के अनेक युवकों ने ‘इसिस’ में प्रवेश किया है। क्या इसके पीछे माकपा का हाथ हो सकता है?
युवकों के इसिस में प्रवेश की ओर तो केन्द्र एवं राज्य सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। केरल में गत अनेक वर्षों से राष्ट्रवादी विचारों की सरकार न होने से आतंकवादी संगठनों को प्रचार के लिए यह राज्य उपजाऊ जमीन की तरह लगता है। अब तो विशेषत: सीपीएम की सरकार आने के बाद अनेक घटनाओं में आतंकवाद का संबंध होने के प्रमाण सामने आए हैं। वहां मुस्लिम युवकों के मन में कट्टरवाद के बीज आसानी से बोए जा रहे हैं। ब्रिटेन के दैनिक ‘द गार्डियन’ ने इस संदर्भ में एक लेख प्रकाशित किया था-‘‘ क्या इसिस में भरती होने के लिए केरल की जमीन उपजाऊ है?’’ इस्लामी आतंकवादियों की बढोत्तरी यहां जबरदस्त है। इसके कारण कई अंतरराष्ट्रीय माध्यमों ने भी अपना ध्यान इस ओर केंद्रित किया है। कई इस्लामी संस्थाओं एवं संगठनों ने इस्लामी विचारधारा (कट्टर इस्लामिक विचारधारा) के प्रचार प्रसार हेतु राज्य सरकार, कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग सरीखी संस्थाओं के साथ गठबंधन किया है। इस्लामी विचारधारा की संस्थाएं कुकुरमुत्ते की तरह हर चौक एवं नाकों पर पैदा हो गई हैं। अब यह सिद्ध हो गया है कि यह छोटा सा राज्य कितने ही आतंकियों को इसिस में भर्ती करने का कारण बना है। परंतु अभी भी राज्य सरकार इस ओर आंखें मूंदे बैठी है और यह खतरा कम करने की कोई कार्रवाई नहीं कर रही है; वरन ऐसे लोगों पर वह मेहरबान है। राज्य सरकार एवं माकपा के उग्र विचारों के लोगों, संस्थाओं को सारी सुखसुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं और अपनी कट्टर धर्मांध इस्लामी मतपेटी को सुरक्षित रखने हेतु रा. स्व. संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठनों को निशाना बनाया जा रहा है । रा. स्व. संघ पर कम्युनिस्टों के हमले का एक मुख्य कारण यह भी हैै कि माकपा का मतदाता बड़े पैमाने पर इकठ्ठा मुस्लिम समाज है। इन सब को खुश करने हेतु ‘बीफ फेस्टिवल’ जैसे आयोजन भी किए जाते हैं। यह जानकारी पहले भी दी जा चुकी है कि यहां लाल जिहादी मिलकर काम कर रहे हैं और अनेक राष्ट्रविरोधी एवं जनविरोधी घटनाओं में उनका हाथ होने के स्पष्ट प्रमाण समाने आए हैं।

 

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