इस्लामिक संघर्ष: इतिहास और वर्तमान

मध्यपूर्व और विशेष रूप से इराक और सीरिया में पिछले दो-तीन वर्षों से जबरदस्त लड़ाई चल रही है। ओसामा बिन लादेन का अलकायदा संगठन हमें पता था। बिन लादेन मारा गया, नया संगठन खड़ा हो गया, उसका नाम है इस्लामिक स्टेट ऑफ सीरिया एण्ड इराक अथात इसीस। इस इसीस में भर्ती होने के लिए भारत से कुछ मुस्लिम युवक गए, उसकी खबरें भी अखबारों में छपीं। इराक और सीरिया में आंतरिक युद्ध जारी है, उसका भारतीय मुसलमानों से क्या लेनादेना है? यह पहला प्रश्न मन में उभरता है।
वैसे मध्यपूर्व में इस्लामिक संघर्ष ने सामान्य पाठकों के समक्ष अनेक प्रश्न उपस्थित किए हैं। पहला प्रश्न यह कि इन दोनों देशों में मुसलमान ही मुसलमानों से क्यों लड़ रहे हैं? इसीस पकड़े गए लोगों की निर्ममता से क्यों हत्या करता है? इन देशों से विस्थापितों के समूह के समूह क्यों यूरोप की तरफ जा रहे हैं? वे सऊदी अरब, कुवैत, कतर, संयुक्त अरब अमीरात जैसे अरब देशों में क्यों नहीं जाते? अल बगदादी ने इस्लामी खिलाफत की घोषणा की है। यह इस्लामी खिलाफत क्या बला है? आदि एक नहीं अनेक प्रश्न उभरते हैं।
कुछ बातें हमें ठीक से समझ लेनी होगीं। मध्यपूर्व में सीरिया, इराक, लेबनान, जोर्डन, इजरायल, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों का समावेश होता है। इनमें से कोई भी देश १९२० के पूर्व देश के रूप में अस्तित्व में नहीं था। ये सारे भूभाग या तो रोमन साम्राज्य के हिस्सा थे या ईरान के ससानियन साम्राज्य के। ई.स.६२२ में इस्लाम का उदय होने के बाद लगभग सौ साल में यह सारा इलाका मुस्लिम बन गया। ईरान भी मुस्लिम बन गया। इस्लामिक शासन को खिलाफत कहा गया। खलीफा के नेतृत्व में ये सत्ताएं खड़ी हुईं। खलीफा का अर्थ है अल्लाह के पैगंबर मुहम्मद का धार्मिक उत्तराधिकारी और सभी मुस्लिम समुदाय का सर्वोच्च और एकमात्र नेता। उसकी सत्ता असीमित है, वह अल्लाह को छोड़ कर किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है, अल्लाह सार्वभौम, उसकी आज्ञा याने कुरान और इस कुरान के अनुसार मानवजाति पर राज करना खलीफा का काम हे। खलीफा के राज्य को खिलाफत कहा गया।
इस्लामी साम्राज्य के प्रांत होने से उन्हें सीरिया, इराक, जोर्डन, फिलीस्तीन, अरेबिया इस तरह के नाम मिले। आज जिस इलाके में तुर्की है उस भूभाग का पूर्व का नाम ऍनाटोलिया था। यह ऍनाटोलिया याने आज का तुर्की सैकड़ों वर्ष तक रोमन साम्राज्य का हिस्सा था। रोमन साम्राज्य को बायझेंटाइन साम्राज्य कहा जाता था। यह साम्राज्य मुख्यतः यूनानी लोगों का था। यूनानी ईसाई बन गए। ईसाई धर्म में बाद में दो पंथ हो गए- १. रोमन कैथालिक और २. आर्थोडॉक्स। इस बायझेंटाइन साम्राज्य की राजधानी का नाम था कांस्टेंटटिनोपाल। १४५३ में तुर्कों ने इस राजधानी को जीत लिया और उसका नाम इस्तंबूल रख दिया।
भारत के मुस्लिम युवक इसीस में भर्ती होने के लिए क्यों जाते हैं? इसका कारण यह है कि इस्लामिक खिलाफत की अवधारणा उन्हें आकर्षित करती है। इस्लाम की आज्ञा के अनुसार सम्पूर्ण मानजाति को अल्लाह के राज में लाना हर मुसलमान का पवित्र धार्मिक कर्तव्य माना गया है। पैगंबर की मौत के बाद सौ सालों में इस्लाम का उपर्युक्त इलाकों में तेजी से प्रसार हुआ। इस बारे में इस्लाम के प्रति श्रद्धा रखने वाले कहते हैं कि इस्लामी दुनिया को सत्य के मार्ग पर चलने वाला खलीफा यदि मिल गया तो इस्लाम विजयी ही होता है। प्रथम चार खलीफा सत्य के मार्ग पर चलने वाले अर्थात रशिदून खलीफा थे। इसलिए वे विजयी होते गए।
इस्लाम के इतिहास में चार महत्वपूर्ण खिलाफतें हुई हैं। प्रथम खिलाफत चार खलीफों की है। दूसरी खिलाफत उम्मयाद खिलाफत है। तीसरी खिलाफत अब्बासीद खिलाफत है। चौथी खिलाफत आटोमन खिलाफत है। ये चारों खिलाफतों का इतिहास इस्लाम वैभव बढ़ाने वाला, प्रदेश बढ़ाने वाला, और मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाने वाला है। इसका दूसरा पक्ष सत्ता के लिए और खिलाफत के लिए आपस में प्रचंड रक्तपात का है। उम्मयाद खलीफा याझिद ने पैगंबर के नाती हुसैन एवं उसके पूरे परिवार को इराक के करबला में मौत के घाट उतार दिया। उसकी खिलाफत को हुसैन से खतरा यह कारण था। शिया मुसलमान करबला का हत्याकाण्ड नहीं भूले हैं। वे हुसैन को शहीद मानते हैं और मुहर्रम का पर्व उसके नाम से मनाते हैं। अनेक खलीफा अपने आसपास के अनेकों की हत्याओं के बाद ही सत्ता पर काबिज होते थे। आटोमन साम्राज्य में खलीफा सुलतान बन गया और हर सुलतान अपने भाइयों की हत्या करने के बाद ही सुलतान बनता था। सुलतान को ही खलीफा माना जाने लगा।

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