स्वच्छ भारत अभियान का सिपाही

ओरेक्स प्रणाली के द्वारा गोवा ‘स्वच्छ भारत मिशन‘ की राह पर कचरे को कंपोस्ट खाद और बिजली के अलावा बिजली और सीमेंट उद्योग के लिए वैकल्पिक ईंधन के रूप में परिवर्तित किया जाता है।

इस प्रोजेक्ट की संकल्पना गोवा राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की है जिन्होंने प्रधानमंत्री जी के ‘स्वच्छ भारत मिशन‘ के तहत इस प्रोजेक्ट को रोल मॉडल के तौर पर क्रियान्वित करवाया। गोवा का यह यह प्रोजेक्ट देश का इकलौता ‘वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट‘ है। यह परियोजना स्वच्छ भारत मिशन के सारे मानकों पर खरी उतरती है।

हिंदुस्थान वेस्ट ट्रीटमेंट प्रा. लि. ने उत्तरी गोवा के सालीगांव में डीबीएफओ के आधार पर १० वर्षीय रियायत अनुबंध पर महानगरपालिकाओं के ठोस अपशिष्ट के निराकरण हेतु प्रतिदिन १०० टन तक कचरे के निर्मूलन की क्षमता का प्लांट लगाया है।

भारत जैसे विशाल देश में कचरे की समस्या काफी व्यापक है। हमारे देश में कचरा मिक्स्ड यानि सूखा और गीला कचरा साथ में फेंका जाता है और अलग-अलग स्तर पर कचरे को इकट्ठा करने का प्रयास संभव नहीं हो पा रहा है। इसका प्रमुख कारण है कि कचरे के नुकसानों के संदर्भ में पर्याप्त जन जागृति नहीं है। हम भारतीयों के कचरे में ज्यादातर ‘ग्रीन वेस्ट’ होता है यानि सब्जी या किचन का अपशिष्ट भाग। इसमें जल्द ही तीखी दुर्गंध आने लगती है और सड़न पैदा हो जाती है।

इस कचरे के निर्मूलन की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। यहां तक कि इस प्रकार के कचरे से निपटारे की हमारे यहां की महानगरपालिकाओं के पास भी कोई उचित व्यवस्था नहीं हैं। यह सारा कचरा सिर्फ जमीन के बड़े टुकड़े पर लाकर डाल दिया जाता है। सारी नगरपालिकाएं कानूनी नियमों का पालन नहीं कर पाती हैं।

कचरे से होने वाली समस्याएं
कचरे के निस्तारण का यह तरीका कानूनी या कुदरती तौर पर उचित नहीं है। आप जब मिक्स कचरे को डाल देते हैं तो उसमें से मीथेन गैस निकलती है जिससे आग पैदा होती है। बारिश में यही गंदा कचरा गंदगी और बदबू पैदा करता है। जिससे अनेक तरह की बीमारियां फैलती हैं। मीथेन गैस अतिप्रज्जवलनशील होती है और शीघ्र ही आग पकड़ लेती है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही देवनार के डंपिंग ग्राउंड में इस तरह की दुर्घटना हो गई थी। वहां का कचरा लगातार दस दिनों तक जलता रहा। आस-पास के लोगों को कई श्वसन संबंधित गंभीर बिमारियों का सामना करना पड़ा।
ऐसे कचरे को जलाने का प्रयास हमारे यहां नाकामयाब रहा हैं। क्योंकि हमारे यहां का कचरा मिक्स होता है। ऐसे कचरे में प्लॉस्टिक है, पेपर है, मेटल है, लकड़ी है और मिट्टी के साथ पानी भी बड़ी मात्रा में होता है।

गोवा का पहला कचरा निस्तारण संयंत्र
मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में गोवा सरकार ने इस समस्या का सार्थक हल खोजने की दिशा में पहल की।उन्होंने देश का पहला ओरेक्स प्रणाली पर आधारित यांत्रिक जैविक समाधान खोजा।
ओरेक्स प्रणाली में हाय प्रेशर से कचरे को दबा कर उसे छान लेते हैं। छलनी करते वक्त कचरे में मौजूद पूरा पानी आर्गेनिक मैटेरियल के साथ बाहर निकल जाता है और बचता है केवल अत्यंत सूखा कचरा। इस तकनीक में कचरे से सारी अजैविक सामग्री अलग कर देते हैं। बहुत ही सहज तरीके से कचरा दो भागों में विभाजित हो जाता है। गीला और सूखा कचरा अलग-अलग कर दिया जाता है। इस प्रकार की तकनीक से तीन महीने में स्थिर होनेवाला कचरा कुछ घंटों में ही स्थिर हो जाता है।

यह टेक्नालॉजी सिंगल स्टेज आटोमैटिक टेक्नॉलॉजी है जिससे मिक्स वेस्ट को अलग-अलग हिस्सों में विभाजित करते हैं। संस्था का उद्देश्य कचरे से हो रही समस्या खत्म कर, हर नगरपालिका को लंबे समय से छलती आ रही कचरे की समस्या से आजादी दिलाना है। इस तरह का प्लांट कम से कम बीस से पच्चीस साल तक कार्य करता रहेगा।
इस कचरे से तमाम जीवनोपयोगी चीजों का निर्माण कर सकते हैं। पिछले ५० वर्षों में इस क्षेत्र में शायद ही कोई पूंजी निवेश हुई हो। यह गलतफहमी बनी हुई थी कि, ‘कचरा सोने की तरह अनमोल है‘ इसलिए इस क्षेत्र में निवेश की कोई आवश्यकता ही नहीं है। तथापि गोवा के इस प्लांट से यह सिद्ध हो चुका है कि जब तक इस क्षेत्र में सरकार निवेश नहीं करेगी तबतक भारत स्वच्छ नहीं हो पाएगा। कचरे के व्यवहार और समाधान में अलग तरह की मशीनों, कचरे के छोटे-छोटे टुकड़ों, मानव श्रम और सबसे बढ़कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

देशभर में ऐसे संयंत्रों की आवश्यकता है
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी और मुख्य मंत्री मनोहर पर्रिकर जब यह संयंत्र देखने पहुंचे तब उनके द्वारा इसे पूरे देश में एक मॉडल के तौर पर पेश एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया।

‘हिंदुस्तान वेस्ट ट्रीटमेंट प्रा. लि.‘ द्वारा गोवा में लगाए गए प्लांट के लिए राज्य सरकार ने जहां १० साल की लीज पर जमीन मुहैया कराई है वहीं पूंजीगत लागत और परिचालन लागत की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार ने उठाई है। गोवा सरकार और एच डब्ल्यू टी ने मिलकर अस्सी हजार टन पुराने कचरे का भी रिमेडिएशन(संबंधित कचरे का जैव खनन) किया। इस तकनीक का उपयोग देश के अन्य डंपिंग ग्राउंड की सफाई में भी किया जा सकता है ताकि देश के कचरे का समुचित निस्तारण किया जा सके।

देश के इस अनूठे और सार्वभौमिक प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी उसंधान संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई,बिड़ला प्रौद्योगिकी संस्थान गोवा के विशेषज्ञों का अनुमोदन प्राप्त है। शुरुआत में सारे प्रोजेक्ट भारत सरकार के एम.एस. डब्ल्यु. २००० की नियमावली के तहत शुरू किए गए पर पर सरकार द्वारा बनाए गए एम.एस.डब्ल्यु. २०१६ के तहत समूचे कचरे का भस्मीकृत निस्तारण अत्यावश्यक है इसलिए देश को ऐसी कर्मवीर संस्थाओं और सरकार द्वारा उनके प्रोत्साहन की महती आवश्यकता है ताकि देश के उच्चशील और भविष्योन्मुखी प्रधानमंत्री जी का ‘स्वच्छ भारत मिशन‘ अपने लक्ष्य की पूर्णता की ओर अग्रसर हो सके ताकि अपने देश का हर शहर-हर गांव संपूर्ण विश्व में स्वच्छता का प्रतीक बन सके।

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