लोकतांत्रिक चेहरों पर एकशाही की मासूमियत
लोकतंत्र का शिखर तलहटी को थोड़ा-थोड़ी सरकाता रहता है। न बर्फ खिसके, न वोट बैंक। परिवार उठता चला जाए। साधारण...
लोकतंत्र का शिखर तलहटी को थोड़ा-थोड़ी सरकाता रहता है। न बर्फ खिसके, न वोट बैंक। परिवार उठता चला जाए। साधारण...
लोकतंत्र की क्या कहिए। कब पंचर हो जाए। कब तक स्टेपनी साथ दे। कब इंजिन सहमति दे जाए। कब कौन...
“ऑडिटर कालिदास से बोले, ‘सर, आपकी रचनाएं तो समयमान-वेतनमान में नहीं, युगांतर में भी पाठकों के आकाश में यात्रा करती...
Copyright 2024, hindivivek.com