वास्तविक लोकतंत्र के लिए वैकल्पिक पत्रकारिता

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राजतंत्र में भी लोकतंत्र की यह व्यवस्था हज़ारों वर्षों के प्रयोग व विमर्श का परिणाम थी। पश्चिम के प्रभाव में हमने स्वतंत्र होने पर डेमोक्रेसी को अपनाया और लोकतंत्र या प्रजातंत्र को भुला दिया। लोक का मन जानने के लिए पत्रकारिता एक सशक्त माध्यम हो सकता है। पत्रकारिता समाज की ऐसी रचना है जिसमें कुछ इस कार्य में दक्ष नागरिकों को दायित्व दिया जाता है कि वे लोक व प्रशासन में सेतु का कार्य करें। 

जैसी आज की शिक्षा वैसा कल का भारत

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प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति नए भारत के निर्माण की कार्ययोजना का प्रभावी प्रारूप है ...देश में शिक्षा की व्यवस्था संभालने वाली सभी संस्थाएं अपनी स्वायत्ता को क़ायम रखते हुए नई शिक्षा प्रणाली को लागू कर हम सबके सपनों के भारत को साकार कर सकती हैं।

देवर्षि नारद- सुशासन के आचार्य 

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भारतीय इतिहास एवं पौराणिक परम्पराओं को विकृत रूप में प्रस्तुत करने के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं। अधूरी समझ या जानबूझकर देवर्षि नारद के व्यक्तित्व को भी हास्यास्पद और कलहप्रिय के रूप में व्याख्या की गई है। पश्चिम के जिन विद्वानों ने पुराणों का अध्ययन किया उन्होंने नारद के विभिन्न संदर्भों का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला कि वे देवताओं को आपस में, और राक्षसों और देवताओं में परस्पर द्वेषभाव उत्पन्न करके लड़वाने का प्रयास करते थे।

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