हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
देवर्षि नारद- सुशासन के आचार्य 

देवर्षि नारद- सुशासन के आचार्य 

by बृज किशोर कुठियाला
in अध्यात्म, सितंबर- २०१६
0

भारतीय इतिहास एवं पौराणिक परम्पराओं को विकृत रूप में प्रस्तुत करने के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं। अधूरी समझ या जानबूझकर देवर्षि नारद के व्यक्तित्व को भी हास्यास्पद और कलहप्रिय के रूप में व्याख्या की गई है। पश्चिम के जिन विद्वानों ने पुराणों का अध्ययन किया उन्होंने नारद के विभिन्न संदर्भों का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला कि वे देवताओं को आपस में, और राक्षसों और देवताओं में परस्पर द्वेषभाव उत्पन्न करके लड़वाने का प्रयास करते थे। नारद की इस छवि को सार्वजनिक करने के लिए भारत में बनी प्रारंभिक फिल्मों ने अत्यधिक योगदान दिया। मूल कारण अज्ञानता हो या षड़यंत्र, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता परन्तु अनिवार्य है कि नारद के व्यक्तित्व, ज्ञान एवं भूमिका की वास्तविकता को समझा जाए और उसे आधुनिक परिस्थितियों के अनुसार न केवल बौद्धिक क्षेत्र में स्थापित किया जाए बल्कि आम जन में भी नारद की बुद्धि, ज्ञान एवं व्यवहारकुशलता का प्रचार हो। पिछले एक दशक में बौद्धिक क्षेत्र में नारद को कुशल संचारक के रूप में प्रस्तुत करने में सफलता मिली है और नारद जयंती के अवसर पर स्थान-स्थान पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले मीडियाकर्मियों को समाज द्वारा सम्मानित करने का प्रचलन प्रारंभ हुआ है।

देवर्षि नारद मात्र प्राचीन काल के एक कुशल संचारक ही नहीं थे, उनके व्यक्तित्व के कई अन्य पक्ष भी हैं। विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं में अंतरसंवाद स्थापित करने का दायित्व तो नारद ने बखूबी निभाया साथ ही वे धर्म तत्व के प्रकाण्ड विद्वान एवं सुशासन के लिए समर्पित धर्मगुरू भी थे। यहाँ यह समझना भी अनिवार्य है कि आवश्यक नहीं है कि नारद एक ही व्यक्ति थे। शोध का विषय है, परन्तु ऐसा लगता है कि जिस प्रकार एक पद पर क्रमश: कई व्यक्ति कार्य करते हैं तो उनको पदनाम से भी पुकारा जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि समाज में संवाद को लोक कल्याण के लिए प्रयोग करने वाले विभिन्न पात्रों को नारद की संज्ञा दी गई है। ऐसा भी हो सकता है कि एक कुटुम्ब के विभिन्न पीढ़ियों के मुखिया को नारद कहा गया हो या फिर एक विशेष परम्परा के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को नारद के नाम से पुकारा गया हो।

वर्तमान संदर्भ में सुशासन के सूत्रों का प्रतिपादन करने में भी नारद दिशा देते हुए दिखते हैं। महाभारत का प्रसंग है कि जब युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर में अपने राज्य को आदर्श रूप से स्थापित कर लिया तो एक दिन नारद उनके दरबार में पहुँचे। आवश्यक औपचारिकताओं के पश्चात् नारद ने राजा युधिष्ठिर से कई प्रश्न बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए हुए पूंछे। इन प्रश्नों की संख्या लगभग 125 है। और हर प्रश्न अपने आप में युधिष्ठिर के राज्य में सुशासन होने या न होने का मापदण्ड प्रस्तुत करता है। विषय विस्तृत है परन्तु स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रश्न जो नारद ने युधिष्ठिर से पूछे, उदाहरणार्थ दिए जा सकते हैं-

अर्थ चिन्तन के साथ आप धर्म चिन्तन भी करते हैं न ?
 आपकी गुप्त मंत्रणा प्रकट होकर राज्यों में फैल तो नहीं जाती ?
आरंभ किए हुए कार्यों को त्यागना तो नहीं पड़ता ?
 प्रशासन के कार्य विश्वसनीय, अलोभी, पारम्परिक क्रम जानने वाले कर्मचारियों से किये जाते हैं या नही ?ं
 हजार मूर्खों के बदले एक पंडित को आप अपने यहांँ रखते हैं या नहीं ?
 किसानों के यहाँ बीज और अन्न आदि की कमीं तो नहीं है ?
 आवश्यकता होने पर आप किसानों को साधारण सूद पर ॠण देते हैं या नहीं ?
 किसी विपत्ति को आती हुई सुनकर उसकी चिन्ता में चंदन आदि लगाकर अन्त:पुर में सोये तो नहीं रहते ?
 लाभ की आशा से दूर देश से आए हुए व्यापारियों और सौदागरों से कर लेने वाले कर्मचारी उचित कर तो लेते हैं न ?
 अंधे, गूंगे, लूले, दीनबंधु और सन्यासियों को उनके पिता की भांति बनकर पालते हो न ?

वर्तमान में यदि वैश्विक स्तर पर भी सुशासन के लिए कार्य योजना बनानी हो तो नारद के प्रश्नों के संदर्भ महत्वपूर्ण मार्गदर्शन की क्षमता रखते हैं। एक-एक प्रश्न शोध और विस्तार का विषय है।

देवर्षि नारद का एक अन्य अति महत्वपूर्ण योगदान नारद भक्ति सूत्र नामक ग्रन्थ है। प्राचीन भक्ति साहित्य में नारद के भक्ति सूत्र और शांडिल्य की भक्ति मीमांसा सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। नारद के भक्ति सूत्रों की विशेषता है कि वे स्पष्ट, सटीक और सहज हैं जिन्हें सरलता से पूरी तरह समझा जा सकता हैैं। आदि शंकराचार्य ने भी नारद के भक्ति सूत्रों पर आधारित सुन्दर विवेचना की है। नारद ने कुल 84 सूत्र दिए हैं जिनमें भक्त और भगवान के आदर्श सम्बन्धों की व्याख्या है। आधुनिक युग के तथाकथित विज्ञान के सिद्धान्त को भी नारद प्रतिपादित करते हैं। सूत्र 16 से 19 तक नारद व्यास, गर्ग, शांडिल्य और स्वयं की भक्ति के अर्थों की व्याख्या करते हैं। परन्तु अगले ही श्लोक में वे पाठक को कहते हैं “इनमें से किसी को भी मानना अनिवार्य नहीं है, आप अपने अनुभव के आधार पर अपना मत बनाएं।”

नारद के भक्ति सूत्रों की विवेचना सामाजिक संवाद एवं पत्रकारिता के मौलिक सिद्धान्तों के रूप में भी बहुत सुन्दर रूप से स्पष्ट होती है। पत्रकारिता में विविधता की व्याख्या 21वें सूत्र में की गई है जिसके अनुसार नारद ने कहा कि “है तो यही, परन्तु इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।” 60वें सूत्र में नारद पत्रकारिता के अंतिम उद्देश्य को प्रस्तुत करते दिखते हैं और अनुभव, चेतना एवं अनुभूति के संगम का उपदेश देते हैं। क्रमांक 75 से 77 सूत्रों में नारद कहते हैं कि “बहुत विस्तार व वाद-विवाद परिणामरहित होता है इसलिए वितण्डावाद में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।” आज के समाचार चैनलों के सम्बन्ध में यह सूत्र अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होता है।

नारद के विभिन्न प्रसंगों में वे युद्ध की दिशा बदलते हुए भी दिखते हैं और उन्होंने हार या जीत के लिए निर्णायक निर्णय लेने में सहायता की है। राम के अश्वमेध यज्ञ में घोड़े को जब वीरमणि ने पकड़ लिया तो नारद ने शत्रुघ्न को जीतने का मार्ग दिखाया। इस द़ृष्टि से नारद सम्बन्ध (एम्बेडेड) पत्रकार भी माने जा सकते हैं।

सभी को समझने व समझाने लायक विषय यह है कि नारद न तो कलहप्रिय थे न ही हास्य के पात्र थे। लोक संचारक के नाते उन्होंने जितने भी कार्य किये वे सर्व लोक हितकारी सिद्ध हुए। वे देवताओं के दूत थे, सूचनाओं के संवाहक थे, देवों, दैत्यों व मनुष्यों के मित्र थे, श्रेष्ठ गुरू थे और निष्पक्ष विमर्शदाता थे। कृष्णकथाओं में नारद भक्ति मार्ग के प्रणेता के रूप में आते हैं, इन्द्र की सभा में नारद स्वतंत्र रूप से पत्रकार का कार्य करते हुए दिखते हैं। नारद धर्मशास्त्रों के सृजनकर्ता भी हैं और शिक्षाविद् भी हैं। परन्तु उनके सभी रूपों का उद्देश्य लोक कल्याण ही है। भारत के नवनिर्माण में नारद के दर्शन, विचार एवं कृतित्व, उनके द्वारा प्रतिपादित महत्वपूर्ण प्रेरक एवं मार्गदर्शक सिद्धान्त और दुर्लभ व्यावहारिक सूत्र अत्यंत उपयोगकारी हो सकते हैं।

Tags: hindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu faithhindu traditionreligiontradition

बृज किशोर कुठियाला

Next Post
सुशासन का अर्थ

सुशासन का अर्थ

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0