हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
वास्तविक लोकतंत्र के लिए वैकल्पिक पत्रकारिता

वास्तविक लोकतंत्र के लिए वैकल्पिक पत्रकारिता

by बृज किशोर कुठियाला
in जनवरी- २०२२, मीडिया, विशेष, सामाजिक
0

राजतंत्र में भी लोकतंत्र की यह व्यवस्था हज़ारों वर्षों के प्रयोग व विमर्श का परिणाम थी। पश्चिम के प्रभाव में हमने स्वतंत्र होने पर डेमोक्रेसी को अपनाया और लोकतंत्र या प्रजातंत्र को भुला दिया। लोक का मन जानने के लिए पत्रकारिता एक सशक्त माध्यम हो सकता है। पत्रकारिता समाज की ऐसी रचना है जिसमें कुछ इस कार्य में दक्ष नागरिकों को दायित्व दिया जाता है कि वे लोक व प्रशासन में सेतु का कार्य करें। 

सामान्यत: लोकतंत्र को राजनैतिक सन्दर्भ में लिया जाता है। अंग्रेज़ी के शब्द डेमोक्रेसी से समानार्थक मान कर इसका प्रयोग होता है। जहां डेमोक्रेसी एक राजनैतिक व प्रशासनिक व्यवस्था का द्योतक है, वहीं लोकतंत्र आम जन के मन के अनुसार जीवन जीने के तंत्र की अवस्था है। डेमोक्रेसी संख्याओं का खेल है जबकि लोकतंत्र परम्पराओं, धारणाओं और भविष्य की कल्पनाओं पर आधारित है। जब भारत में स्वराज था, तब उस समय अधिकतर जीवन लोक की भावनाओं के अनुसार ही चलता था। राजतंत्र हो या गणतंत्र प्रजा के अनुसार ही राज्य भी चलता था और आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन भी। समाज में नेतृत्व भी कम से कम तीन तरह के होते थे।  बौद्धिक, धार्मिक और राजनीतिक। जब राजा का राजतिलक होता था तो वह घोषणा करता कि अब वह ही राज्य चलाएगा पर तुरंत धार्मिक गुरु या राजऋषि उसे याद दिलाते थे कि धर्म के अनुसार काम नहीं किया तो दंड मिल सकता है। राजतंत्र में भी लोकतंत्र की यह व्यवस्था हज़ारों वर्षों के प्रयोग व विमर्श का परिणाम थी। पश्चिम के प्रभाव में हमने स्वतंत्र होने पर डेमोक्रेसी को अपनाया और लोकतंत्र या प्रजातंत्र को भुला दिया।

लोक का मन जानने के लिए पत्रकारिता एक सशक्त माध्यम हो सकता है। पत्रकारिता समाज की ऐसी रचना है जिसमें कुछ इस कार्य में दक्ष नागरिकों को दायित्व दिया जाता है कि वे लोक व प्रशासन में सेतु का कार्य करें। उनका यह भी काम होता है कि समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में भी बात करवाएं या यह भी कहा जा सकता है जन संचार के मंचों पर लोग आपस में बात करें, विमर्श करें। डेमोक्रेसी हो या लोकतंत्र जन का मन जानना तो आवश्यक ही है। डेमोक्रेटिक व्यवस्था में मतदाताओं के मन में झांकना व आवश्यकता हो तो मन को अपने पक्ष में प्रभावित करने का भी कार्य रहता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन के मन को जानने की अपनी व्यवस्था रहती है परन्तु मीडिया की भी सकारात्मक मध्यस्थता हो सकती है।

परंतु जन संचार के माध्यमों की रचना ही ऐसी है कि वे समाज को व्यापकता से नहीं देख सकते। रेडियो हो या टेलीविजन या मुद्रित समाचार पत्र सभी में टेक्नोलॉजी का उपयोग अनिवार्य है, कई  प्रकार के विशेष कार्यों में दक्ष व्यक्तियों की आवश्यकता रहती है और फिर निर्मित सामग्री को जन मानस तक भी पहुंचना है। इस सब के लिए पूंजी चाहिए और पूंजी समाज के हर वर्ग के पास नहीं होती, अभिजात्य वर्ग ही जन संचार के माध्यमों में पूंजी लगाता है, वे ही मालिक होते हैं, वे ही पत्रकारों का चयन करते हैं इसलिए हम कितना भी पत्रकारिता के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का राग अलापें, आख़िरकार मीडिया जन मानस के मन की वास्तविक व सम्पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं कर सकता। बहुत प्रयास हुए हैं और हो भी रहें हैं कि सामुदायिक रेडियो, टेलीविज़न और समाचार-पत्र चलाएं, जिन में लोक की बात हो परंतु सभी प्रयोग सीमित सफलता ही प्राप्त करते हैं।

एक और बात ध्यान देने योग्य है कि मीडिया कर्मी कितना भी ‘ऑब्जेक्टिव’ हो जाए उसके अपने अनुभव, संस्कार, विश्वास व धारणाएं उसकी अभिव्यक्ति को प्रभावित करती ही हैं। मीडिया कर्मी को यह भी भ्रम हो जाता है कि वह ही सबसे अधिक ज्ञानी और समझदार है। केवल उसका कहना या उसकी सोच ही ठीक है। मानो, उसने जन-जन के मन को प्रभावित करने का ठेका ले लिया हो। भारतीय संविधान में प्रदत्त नागरिक के अभिव्यक्ति के अधिकार को मीडिया कर्मी केवल अपना अधिकार मान लेते हैं और यदि कोई आम नागरिक मीडिया के माध्यम से अलग से बात कहना चाहता है तो उसके अभिव्यक्ति का अधिकार उसको नहीं मिलता है।

वर्तमान में जो तथाकथित सोशल मीडिया का प्रचलन जंगल की आग की तरह फैल रहा है। अभूतपूर्व तीव्र गति से विस्तार इसी बात की प्रतिक्रिया है कि सामाजिक संवाद पर मीडिया कर्मियों का माध्यमों के ज़रिए एकाधिकार है। सोशल मीडिया में जन-जन आपस में अपनी बात अपनी तरह से रख लेते हैं। एक से एक, एक से अनेक, अनेक से एक व अनेक से अनेक सभी प्रकार की संवाद की स्थितियों के अवसर सोशल मीडिया ने मानव समाज को दिए हैं। पारम्परिक मीडिया में एक छोटा समूह, मालिक, सम्पादन विभाग, रिपोर्टर, मार्केटिंग विभाग व कुछ और लोग, हज़ारों या लाखों लोगों के लिए समाचार व विचार की खुराक तय करते हैं। यह अपने आप में न तो लोकतांत्रिक है और न ही डेमोक्रेटिक।

चिंता की बात यह है कि सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों को भी छोटे समूहों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। फेसबुक, ट्विटर  व इंस्टाग्राम आदि प्लेटफ़ॉर्म सामाजिक संवाद को तो प्रभावित कर ही रहे हैं, वहां व्यक्ति की सोच को बदलने का काम भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों ने भारत और अमेरिका के चुनावों में मतदाताओं के मन बदलने का भी षड्यंत्र किया हैं।

प्रश्न यह उठता है कि डेमोक्रेसी को मीडिया के माध्यम से लोकतंत्र बनाने के लिए क्या उपाय करने होंगे? स्वस्थ लोकतंत्र के लिए तीन अनिवार्यताएं हैं। पहली यह है कि सभी नागरिकों को सामूहिक सामाजिक कार्यों के सम्बंध में अपनी बात कहने का समान अवसर हो। सब को कहने का माध्यम उपलब्ध हो और सब की बात का एक समान महत्व हो। लोक के वास्तविक मन को अभिव्यक्ति देनी होगी। यह कार्य ऐसा मीडिया ही कर सकता है जो किसी छोटे समूह की मालकियत न हो। समाज द्वारा संचालित मीडिया जो अर्थ लाभ के लिए न हो, यह कार्य कर सकते हैं। यह कोरी कल्पना मात्र नहीं है। अनेकों पत्र-पत्रिकाएं, टेलीविज़न संचालित करने वाले संस्थान व संस्थाएं हैं जो सामाजिक संस्थानों द्वारा ‘अर्थ लाभ हेतु नहीं’ के आधार पर सफलता से चलती हैं परंतु मीडिया समूहों की मार्केटिंग के पैंतरों के कारण मुख्यधारा में नहीं आ पाते। समाज को समझना होगा कि मीडिया समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और उसे केवल मीडिया मालिकों और मीडिया कर्मियों के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता। दूसरा उपाय है- मीडिया की विषय वस्तु को सीमित और प्रासंगिक बनाना। नागरिक के मन मस्तिष्क को सूचनाओं व मनोरंजन की अंधाधुंध बमबारी से बचाना है। समाज द्वारा संचालित मीडिया नागरिक को आवश्यक और प्रासंगिक विषय वस्तु ही उपलब्ध करवाएं, ऐसी व्यूह रचना करनी होगी। तीसरा काफ़ी महत्वपूर्ण उपाय है कि मीडिया मात्र एक तरफ़ा संवाद का मंच न रहे। अनेक ऐसे मीडिया मंच हों जिनके माध्यम से नागरिक अपनी-अपनी बात कह सकने का अवसर पा सके। ना केवल कहने के अवसर एक समान व अनेक हों, साथ में हर नागरिक की मीडिया तक पहुंच भी प्रचुर हो और सबकी पहुंच समान हो। सोशल मीडिया का एक भाग, सामुदायिक रेडियो, हमारी जागरण पत्रिकाएं, कुछ टेलीविज़न चैनल यह सब कर ही रहे हैं, आवश्यकता है कि इन सबका विस्तार हो और लाभ और प्रभाव से चलने वाले मीडिया को जन मानस अस्वीकार कर दे। लोकतंत्र के लिए लोक द्वारा संचालित, लोकहित  के उद्देश्य से रचित और लाभ के लोभ से रहित मीडिया ही वास्तविक लोकतंत्र को स्थापित व पल्लवित कर सकता है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: 75 years of independencehindi vivekhindi vivek magazineimportance of democracy in indiaIndian constitutionjournalism

बृज किशोर कुठियाला

Next Post
‘जन गण मन’ के लिए 24 जनवरी का विशेष महत्व

'जन गण मन' के लिए 24 जनवरी का विशेष महत्व

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0