ग्रामोदय के अनोखे प्रयोग

Continue Reading ग्रामोदय के अनोखे प्रयोग

 सबल, सशक्त समाज और ग्रामोदय का सपना पूरा करना ही ‘यूपीएल’ की उड़ान का लक्ष्य है| बंजर जमीन में भी हरियाली खिल सकती है यह यूपीएल का विश्वास है, और वही प्रेरणा भी! गुजरात के डांग जिले में चल रहा यह प्रयोग देश भर में ग्रामीण विकास की दृष्टि से उपयुक्त एवं सराहनीय है|

अच्छे समाज के दो पहलू गुरू और शिष्य

Continue Readingअच्छे समाज के दो पहलू गुरू और शिष्य

 हिंदू संस्कृति और परंपरा में गुरू संकल्पना का अनन्यसाधारण महत्त्व है। आध्यात्मिक साधना करने वाले साधकों को गुरू की महिमा पूर्णत: ज्ञात होती है। इस विषय में यह भी कहा जाता है कि, गुरू की ओर मनुष्यबुद्धि से नहीं देखना चाहिए, गुरू ही साक्षात परब्रह्म होता है, इसी भावना से उनकी सेवा करनी चाहिए और आज्ञापालन करना चाहिए।

संतों की समरसता

Continue Readingसंतों की समरसता

संतों का समाज में समरसता भावजागरण में योगदान अमूल्यऔर अतुलनीय है। संतों के इस कार्य के विभिन्न आयाम हैं। मगर इन सारे संतों की विचारधाराओं में हम कुछ समान बिंदु देख पाते हैं। ये समान बिंदु इस प्रकार हैं- * मुक्ति पाने हेतु प्राणी को

बाबासाहब के तीन गुरू बुद्ध, कबीर और फुले

Continue Readingबाबासाहब के तीन गुरू बुद्ध, कबीर और फुले

;डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का जीवन धूलि से शिखर तक की यात्रा है। जिस परिवार में उनका जन्म हुआ था उसकी सौ से अधिक पीढ़ियों से जानवरों से भी बदतर व्यवहार इस देश में किया गया था। उनकी छाया का स्पर्श भी अमंगल माना जाता था। मगर जब डॉ. बाबास

भक्ति रस की संगीत गंगा

Continue Readingभक्ति रस की संगीत गंगा

भक्ति रस की संगीत गंगा का प्रवाह कई शतकों से अनवरत अनथक बहता आया है। मानव के मन के उन्नयन के लिए यह प्रेरक साबित हुआ है। आज भी भगवान को मानने वाले आस्तिक और न मानने वाले नास्तिक पाए जाते हैं। लेकिन भक्ति संगीत तो हरेक के दिल को छूने वाला विषय होने के कारण गाना सुनने के बहाने नास्तिक भी इस भक्ति रस गंगा में शामिल हो जाते हैं।

पू. गुरुजी का जीवन- मातृपूजा का महायज्ञ

Continue Readingपू. गुरुजी का जीवन- मातृपूजा का महायज्ञ

मानवीय जीवन में कृतज्ञता भाव का स्थान असाधारण है। आज मनुष्य प्रगति पथ पर तेजी से मार्गक्रमण की बातें करता है, मगर विद्यमान मनुष्य जीवन जिन समस्याओं ने घिरा दिखाई देता है उससे पता चलता है कि वह कृतज्ञता का भाव भूल कर पशुतुल्य बन गया है।

राव समाज के इतिहास की पहचान

Continue Readingराव समाज के इतिहास की पहचान

प्राचीन काल से ही हिंदू समाज के स्त्री‡पुरुषों का परिचय माता-पिता के नाम से होने की प्रथा रही है। राम दशरथ का पुत्र है इस नाते ‘दशराथी राम’ यह उसका पहचान है, इसी तरह कर्ण की पहचान भी ‘राधेय’ नाम से की जात है। राम के परिचय के साथ इक्ष्वाकु वंश यह नाम भी पड़ गया है। कुल और वंश का परिचय अपनी धरोहर ही है।

End of content

No more pages to load