विपक्ष देख रहा मुंगेरीलाल के सपने

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कॉमरेड एक क्षण के लिए आंखें खोलें, और फिर वापस 1940 के हसीन सपनों में लौट जाएं। दो बार ऐसा हो चुका है। यह बुजुर्ग कॉमरेड कांग्रेस है। संसद तो निमित्त मात्र है, कांग्रेस तो सत्र के पहले भी और सत्र के बाद भी इसी नशे में आगे से आगे झुकने और गिरने में आनंदित होती रही है कि सरकार तो उसी की है, बस जनता ने उसे वोट नहीं दिया है, बस चुनाव आयोग ने उसके पक्ष में परिणाम नहीं दिए हैं, बस राष्ट्रपति ने उसे शपथ नहीं दिलाई है, बस प्रशासन उसके अनुरूप नहीं चल रहा है, बस वह अपनी मर्जी से सरकारी सौदे नहीं कर पा रही है, बस उसकी पार्टी में दम नहीं बचा है, बस उसके पास राज्यसभा की एक सीट के लिए गुंजाइश नहीं बची है...। बाकी तो वही है, उसे तो बस चाचा, बाबाजी, खलीफा, चेयरमैन, जहांपनाह, कॉमरेड, दत्तात्रेय वगैरह, जो मिल जाए, वही बने रहना है। अगर सत्र चल रहा है, तो हंगामा करो, और नहीं चल रहा है, तो सत्र बुलाने की मांग करो।

इतिहास के अत्याचारों केनिशाने पर डॉ. आंबेडकर

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ह म भारत के लोग इतिहास में, इतिहास के अन्वेषण में रुचिअपेक्षाकृत कम ही लेते हैं। शायद भविष्य के प्रति देख सकने की क्षमता पर भी इसका असर पड़ता हो। हमारी इस कमजोरी का लाभ निहित स्वार्थी तत्वों ने दो ढंग से उठाया है। एक तो वे इतिहास को अपनी मनमर्जी की कथा में बदल कर हमारे गले उतारने की

उम्मीदें बढाताविश्‍व कप

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किकेट और चुनावों में बहुत कुछ एक जैसा होता है। दोनोंमें बड़े खिलाड़ी होते हैं, दोनों पर लोगों की उत्सुकता चरम पर होती है, दोनों पर भविष्यवाणी करने वालों की भारी भीड़ होती है, दोनों की चर्चा चाय की दुकानों पर चलती है, सट्टे

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