कि केट और चुनावों में बहुत कुछ एक जैसा होता है। दोनोंमें बड़े खिलाड़ी होते हैं, दोनों पर लोगों की उत्सुकता चरम पर होती है, दोनों पर भविष्यवाणी करने वालों की भारी भीड़ होती है, दोनों की चर्चा चाय की दुकानों पर चलती है, सट्टेबाजी भी होती है, फिक्सिंग की कानाफूसी भी होती है, और? और दोनों में उलटफेर होना आम बात होती है।
भावनाओं को थोड़ी देर के लिए परे रख दीजिए। अब सीधे देखिए कि इस विश्व कप के लिए सचिन तेंडुलकर की भविष्यवाणी क्या है। सचिन ने कहा था – भारतीय टीम सेमीफाइनल में तो पहुंचेगी ही, साथ ही वह एक बार फिर विश्व कप जीतने का कारनामा भी कर सकती है। … मैं सेमीफाइनल में भारत के अलावा आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका को देखना चाहूंगा। इन टीमों में ही सेमीफाइनल में पहुंचने का दम है।
शायद इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए क्रिकेट की भारी भरकम समझ की आवश्यकता नहीं है। बारह साल पहले, माने २००३ के क्रिकेट विश्व कप में, इंग्लैंड, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और वेस्ट इंडीज की टीमें बाहर होकर तमाशा देख रही थीं, और केन्या बाकायदा सेमाफाइनल खेल रहा था। भारत ने उसे आराम से पीटा और बदले में खुद फाइनल में आस्ट्रेलिया के हाथों आराम से पिटा था। जब पूल बनते हैं, तो कई ढहते भी हैं।
आईसीसी की रैंकिंग की पांच शीर्ष टीमों में से चार पूल ए में हैं- न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड (और श्रीलंका)। दरअसल ठोस रैंकिंग की बात करें, जो दो वर्ष पहले तय की गई थी, तो इंग्लैंड और श्रीलंका की हैसियत लगभग एक जैसी है। माने क्रमशः १०६ और १०५ अंक। तो पूल ए की चार क्वार्टरफाइनलिस्ट टीमें तय हैं। उधर पूल बी में दक्षिण अफ्रीका के बाद भारत है, हालांकि रैंकिंग लिहाज से वह दक्षिण अफ्रीका का पासंग ही है। कहां ११३ और कहां ९९।
तो जमावट साफ है। पूल बी में पाकिस्तान, वेस्ट इंडीज, जिम्बाब्वे, आयरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात से अपेक्षा की गई है कि वे दक्षिण अफ्रीका और भारत से बारी-बारी से हार कर, क्वार्टरफाइनलिस्ट बनने की खुशी मनाकर, इन दोनों टीमों को सेमीफाइनल के लिए रवाना करें।
उधर पूल ए में क्या होगा? वहां पाकिस्तान, वेस्ट इंडीज, जिम्बाब्वे.. वगैरह की भूमिका इंग्लैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान वगैरह को निभानी है
क्वार्टरफाइनल से आगे बढ़ें। पूल ए से न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया का सेमीफाइनल में पहुंचना लगभग तय है। इंग्लैंड और श्रीलंका का पिटना शुरू हो गया है, और उन्हें इसी लय को थोड़े और समय तक बनाए रखना है। इक्का-दुक्का क्षणों के कौतुक को छोकर आस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को एकतरफा ढंग से हराया। क्या दयनीय स्थिति थी कि इंग्लैंड के कप्तान इस बात पर अफसोस जता रहे थे कि आस्ट्रेलिया ने उन्हें जरा ज्यादा ही बड़ा लक्ष्य दे दिया है (३४३ का), वरना अगर लक्ष्य ३१० तक रहता, तो ठीक रहता। एरॉन फिन्च ने १२८ गेंदों पर १३५ रन ठोंक कर साबित भी कर दिया कि टक्कर बराबर की थी ही नहीं। यही गति न्यूजीलैंड ने श्रीलंका की बनाई। ३३२ रनों का लक्ष्य दे दिया, और श्रीलंका २३३ रनों पर ऑल आउट हो गया। क्या बात है- ३३२ बनाम २३३। बस एक अंक इधर से उधर। अंक ज्योतिषी ही इन स्कोरों की अच्छी विवेचना कर सकते हैं। फिर भी श्रीलंका एक मजबूत टीम है। उनका कोई भी खिलाड़ी कभी भी चमक सकता है, और अगर चमक गया तो किसी भी टीम को हरा सकता है। श्रीलंका की टीम क्वार्टर फाइनल तक तो आएगी ही। श्रीलंका जब तक गंभीर टीमों में से इंग्लैंड को हराता है, तब तक श्रीलंका से किसी को उज्र नहीं होगा।
और आगे बढ़ें। यहां अपने वाले पूल बी में पाकिस्तान और जिम्बाब्वे पिटने का आगाज कर चुके हैं। अंजाम भी साफ लिखा नजर आता है। वास्तव में भारत जब पाकिस्तान से खेल रहा था, या खिलवाड़ कर रहा था, तब भी उसके थिंक टैंकों में से कुछ के मन में दक्षिण अफ्रीका बनाम जिम्बाब्वे मैच के कुछ पल जरूर कौंध रहे होंगे। दो कारण हैं। एक तो वह मैच दक्षिण अफ्रीका की ताकत की एक शानदार नुमाइश था। ऐसी नुमाइश कि जीता भले ही दक्षिण अफ्रीका हो, सारी तारीफ हारने वाले जिम्बाब्वे को मिली और इस बात के लिए मिली कि उन्होंने डट कर मुकाबला तो किया। वास्तव में इस मैच को हार कर भी जिम्बाब्वे यह संदेश मैदान की दीवारों पर लिख गया है कि वह कभी भी, कैसा भी उलटफेर करने में सक्षम है। भारत को उससे भी सावधान रहना हो सकता है। वास्तव में उलटफेर करने में सक्षम टीमों के आगे टीम इंडिया जरा जल्दी ही पटरी से उतरने लगती है। इसी तारीफ का एक अर्थ यह भी है कि दक्षिण अफ्रीका से हारना अपने आपमें न तो कोई बताने लायक बात है और न ही कोई अफसोस करने लायक बात है। इससे भी बढ़कर यह कि अगर दक्षिण अफ्रीका जीत गया है, तो इसमें भला खास बात क्या है, यह तो होना ही था।
ठीक बात है। आईसीसी की रैंकिंग में दक्षिण अफ्रीका की हैसियत न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया से बस जरा ही कमजोर है। अंतर इतना मामूली है कि उसके भरोसे कोई भविष्यवाणी करना आसान नहीं है। न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के क्रमशः ११७ और ११५ अंकों के मुकाबले दक्षिण अफ्रीका के ११३ अंक हैं। अगर आईसीसी की रैंकिंग के अंकों के आधार पर मुकाबला करें, तो कोई फायदा नहीं है। वनडे मैच में कोई टीम चाह कर भी पारी से नहीं हार सकती है। और दक्षिण अफ्रीका के ११३ अंकों के मुकाबले भारत के ९९ अंक हैं। वास्तव में टॉप ६ टीमों में भारत नीचे से नंबर वन है।
सवाल यह है कि ऊपर से नंबर वन होने की भारत की संभावना कितनी है? सवाल संभावना का किया गया है, इच्छा या उम्मीद का नहीं। भारत के लिए यह घरेलू मैदान नहीं है। दक्षिण अफ्रीका के लिए भी नहीं है। लेकिन दो कारणों से है। एक तो आस्ट्रेलिया की पिचों का मिजाज दक्षिण अफ्रीका की पिचों से मिलता-जुलता है। दूसरे आस्ट्रेलिया के आम दर्शकों और अखबारों का मिजाज दक्षिण अफ्रीका के पक्ष में स्वाभाविक झुकाव रखता है। हालांकि पाकिस्तान को छोड़ कर दुनिया के किसी भी क्रिकेट मैदान में अप्रवासी भारतीय किसी भी घरेलू भीड़ से उन्नीस नहीं रहते हैं। घरेलू मैदान या कम से कम सकारात्मक मैदान का लाभ एक बार गौर से देखें। अब तक के क्रिकेट इतिहास से यह साबित हुआ है कि अगर दो टीमें बराबर की हैं, तो उसमें घरेलू मैदान वाली टीम की जीत की संभावना काफी बढ़ जाती है। याद करें, २०११ में भारत कैसे जीता था।
वहीं, दक्षिण अफ्रीका की एक और खासियत है। जब मैदान न आपके लिए घरेलू हो और न उनके लिए, तो दक्षिण अफ्रीका बेहद खूंखार टीम साबित होती है। उनका लगभग हर खिलाड़ी इस श्रेष्ठता को साबित करने में सक्षम है। आपके पास इतिहास रहा होगा, उनके पास एबी डि विलियर्स नाम का वर्तमान है, जिन्हें सर्वकालिक महान बल्लेबाजों में शुमार किया जाता है। डेल स्टेन को विश्व का चौथा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी आंका गया है। बेशक आपके पास भी विराट कोहली हैं। भविष्य किसके नाम लिखा जाना है, यह भविष्य ही बताएगा। आपके पास और भी नामचीन नाम हैं। लेकिन बात सिर्फ बात की नहीं है। बात फॉर्म में होने की और परिणाम निकाल कर दे सकने की है। एक टीम की हैसियत से देखें, तो अब तक खेले छह विश्व कपों में से दक्षिण अफ्रीका तीन बार सेमीफाइनल तक पहुंचा है।
अगर आप दक्षिण अफ्रीका को थोडी टेढ़ी खीर भी मानें, तो भी मुकाबले में बने रहने के लिए जरूरी है कि भारत पूल बी में कम से कम किसी और के हाथों न हारे। वास्तव में दक्षिण अफ्रीका से हार जाना और बाकी को हरा देना भारतीय टीम के लिए ज्यादा उपयुक्त रहेगा। अगर भारत अपने पूल में दूसरे स्थान पर रहता है, तो ज्यादा उम्मीद इस बात की लगाई जा सकती है कि अगले चरण में उसकी पहली मुठभेड़ इंग्लैंड या श्रीलंका से हो। हालांकि इंग्लैंड या श्रीलंका को हरा पाना भी भारत के लिए, वर्तमान स्थितियों में, उतना आसान नहीं है। अगर भारत अपने पूल में तीसरे स्थान पर रहा, खतरा जिम्बाब्वे से हो सकता है, तो फिर उसका अगला मुकाबला न्यूजीलैंड या आस्ट्रेलिया से पड़ेगा, और उसके परिणाम के रूप में ज्यादा संभावना यही है कि फिर हम खान-पान में गड़बड़ी, धोनी और बीसीसीआई, सुप्रीम कोर्ट, पिचों का उछाल, दर्शकों का व्यवहार, खिलाड़ियों की थकान या इसी किस्म की अन्य बातों पर ज्यादा चर्चा करने लगें।
इंग्लैंड या श्रीलंका को हरा पाना सिर्फ भारत के लिए कठिन नहीं रहना है। कोई शक नहीं कि आस्ट्रेलिया के हाथों इंग्लैंड को बुरी तरह हारना पड़ा है। लेकिन अगर किसी भी बड़ा उलटफेर करने की क्षमता की बात की जाए, तो उसमें इंग्लैंड का नंबर है। इंग्लैंड की बैटिंग जरूर बेहद कमजोर है, लेकिन गौर से सुनिए- इंग्लैंडिस्तान के दो गेंदबाज- जेम्स एंडरसन और स्टीवन फिन दुनिया में नंबर एक और नंबर दो हैं। अगर दो चार लप्पे भी चल गए, तो कोई बड़ा खेल हो सकता है।
क्या त्रासदी है। जिस आस्ट्रेलिया को स्वाभाविक विजेता माना जा रहा है, उस पर ज्यादा चर्चा करना भी जरूरी नहीं रह गया है। रैंकिंग में न्यूजीलैंड दूसरी सब से मजबूत टीम है, हालांकि वह आजतक कभी भी विश्व कप के फाइनल में नहीं पहुंची है।
पाकिस्तान पर जीत को क्या कहें? क्या पाकिस्तान को विराट कोहली ने हरा दिया? क्या पाकिस्तान को यादव ने, अश्विन ने या किसी और ने हरा दिया? क्या आपने पाकिस्तान की हार को पाकिस्तान के नजरिए से देखने की कोशिश की है? जो पाकिस्तानी घर लौटने के बाद मिस्बाह-उल-हक की धुनाई करने के लिए तैयार बैठे थे, उन्हें अब धुनने के लिए एक और मुद्दा मिल गया है। उमर अकमल को आउट देने का फैसला, जो हां में भी सही था, लेकिन विवादित था, और ना में भी सही कहा जा सकता है, लेकिन विवादित रहेगा। पाकिस्तान अब इस पर खुश हो सकता है। उसे इसमें अमेरिका से लेकर इस्राइल तक की साजिश दिख सकती है और हो सकता है वह इसे संयुक्त राष्ट्र में ले जाने पर विचार करें। लेकिन खास बात यह है कि पाकिस्तान उस टीम इंडिया से हारा है, जो लगभग पूरी तरह आउट ऑफ फॉर्म थी। अहमद शहजाद बढ़िया जम गए थे, लेकिन पैरों को कष्ट देकर दूसरे बल्लेबाजों को मौका देने के पक्ष में नहीं थे। छह साल बाद पहली बार यूनुस खान को क्या सोचकर ओपनर बल्लेबाज बनाया गया, कोई नहीं जानता। अगर इन्हीं सब को पाकिस्तान की हार की बड़ी वजह माना जाए, तो जाहिर है, थोडी सी डांट-फटकार, गाली-गलौज़, मारपीट-झूमाझपटी जिसे बाकी दुनिया में समझाइश देना कहा जाता है- पाकिस्तान को वापस पेशेवर अंदाज में पेश कर सकती है। इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि पाकिस्तान ने बहुत अच्छी गेंदबाजी की है। वहाब रियाज को विकेट भले ही मात्र एक मिला हो, उनकी गेंदबाजी इससे कहीं बेहतर थी। अपेक्षाकृत कम अच्छी बॉलिंग करने वाले सोहेल खान ने ५५ रन देकर पांच भारतीय बल्लेबाज आउट किए हैं, जब भारतीय टीम बल्लेबाजों की टीम मानी जाती है। भारतीय टीम में कोई भरोसेमंद ऑलराउंडर नहीं है, पाकिस्तान ने साफ साबित कर दिखाया। यह अलग बात है कि वह खुद उसका ज्यादा फायदा नहीं उठा सका।
आगे क्या होगा? क्या न्यूजीलैंड सेमीफाइनल पार न कर पाने के ऐतिहासिक अभिशाप से मुक्त हो सकेगा? क्या आस्ट्रेलिया की जीत की इबारत दीवार पर लिखी हुई है? क्रिकेट चुनाव की तरह है। आप सारे आंकड़े ओढ़-बिछाकर बड़ी भविष्यवाणियां कर सकते हैं, लेकिन वास्तव में अनिश्चितता उसमें भी रहेगी। अंततः खेल भावनाओं का है। एक देश की भावना और एक खेल की भावना। कहते हैं कि खेल को देश की भावना से परे रखकर देखना चाहिए। कभी तो लगे कि विज्ञापनों की मोटी रकम खेल की कला के सम्मान में थी।
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