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विपक्ष देख रहा मुंगेरीलाल के सपने

विपक्ष देख रहा मुंगेरीलाल के सपने

by ज्ञानेद्र बरतरिया
in राजनीति, विशेष
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कॉमरेड एक क्षण के लिए आंखें खोलें, और फिर वापस 1940 के हसीन सपनों में लौट जाएं। दो बार ऐसा हो चुका है। यह बुजुर्ग कॉमरेड कांग्रेस है। संसद तो निमित्त मात्र है, कांग्रेस तो सत्र के पहले भी और सत्र के बाद भी इसी नशे में आगे से आगे झुकने और गिरने में आनंदित होती रही है कि सरकार तो उसी की है, बस जनता ने उसे वोट नहीं दिया है, बस चुनाव आयोग ने उसके पक्ष में परिणाम नहीं दिए हैं, बस राष्ट्रपति ने उसे शपथ नहीं दिलाई है, बस प्रशासन उसके अनुरूप नहीं चल रहा है, बस वह अपनी मर्जी से सरकारी सौदे नहीं कर पा रही है, बस उसकी पार्टी में दम नहीं बचा है, बस उसके पास राज्यसभा की एक सीट के लिए गुंजाइश नहीं बची है…। बाकी तो वही है, उसे तो बस चाचा, बाबाजी, खलीफा, चेयरमैन, जहांपनाह, कॉमरेड, दत्तात्रेय वगैरह, जो मिल जाए, वही बने रहना है। अगर सत्र चल रहा है, तो हंगामा करो, और नहीं चल रहा है, तो सत्र बुलाने की मांग करो।

संसद के मौजूदा सत्र में विपक्ष जिस तरह का व्यवहार कर रहा है, उसका एक सकारात्मक पक्ष भी है। वह यह कि इससे भारत की वर्तमान राजनीति को समझना बहुत सरल हो जाता है। आइए देखते हैं।

आप किसी ऐसे पुराने कॉमरेड से मिलें, जिसकी सुई 1940 के दशक में ही अटकी हो। उससे बातें करें। वह इसी पर अड़ा रहेगा कि देखना एक न एक दिन सोवियत संघ दुबारा बनेगा, फिर से क्रांति होगी और ये हो जाएगा, वो हो जाएगा।

अब कल्पना करें कि उसी समय कोई टिकैत वहां से गुजरे और वह उस बुजुर्ग कॉमरेड को कॉमरेड मुंगेरीलाल बना डाले।

फिर कोई ममता बनर्जी वहां से गुजरें,  और कॉमरेड मुंगेरीलाल को चेयरमैन कॉमरेड मुंगेरीलाल बना डालें।

फिर कोई प्रशांत किशोर वहां से गुजरे, और कॉमरेड मुंगेरीलाल को जहांपनाह चेयरमैन कॉमरेड मुंगेरीलाल बना डालें।

फिर कुछ अखबार वाले, या चैनल वाले चेयरमैन मुंगेरीलाल को चाचा खलीफा जहांपनाह चेयरमैन कॉमरेड मुंगेरीलाल बना दें।

फिर कुछ इधर-उधर से फंडिंग हो, और चाचा, खलीफा, जहांपनाह, चेयरमैन, कॉमरेड, मुंगेरीलाल पूरी दुनिया पर फतह हासिल कर लें।

फिर चुनाव हो जाएं, और चाचा खलीफा जहांपनाह चेयरमैन जिल्ले सोभानी कॉमरेड मुंगेरीलाल को एक क्षण के लिए याद दिलाया जाए कि भई ये 21वीं सदी चल रही है। 1940 वाला स्टेशन तो बहुत पीछे छूट चुका है। आप सड़क पर ही हो।

कॉमरेड एक क्षण के लिए आंखें खोलें, और फिर वापस 1940 के हसीन सपनों में लौट जाएं।

दो बार ऐसा हो चुका है। यह बुजुर्ग कॉमरेड कांग्रेस है। संसद तो निमित्त मात्र है, कांग्रेस तो सत्र के पहले भी और सत्र के बाद भी इसी नशे में आगे से आगे झुकने और गिरने में आनंदित होती रही है कि सरकार तो उसी की है, बस जनता ने उसे वोट नहीं दिया है, बस चुनाव आयोग ने उसके पक्ष में परिणाम नहीं दिए हैं, बस राष्ट्रपति ने उसे शपथ नहीं दिलाई है, बस प्रशासन उसके अनुरूप नहीं चल रहा है, बस वह अपनी मर्जी से सरकारी सौदे नहीं कर पा रही है, बस उसकी पार्टी में दम नहीं बचा है, बस उसके पास राज्यसभा की एक सीट के लिए गुंजाइश नहीं बची है…। बाकी तो वही है, उसे तो बस चाचा, बाबाजी, खलीफा, चेयरमैन, जहांपनाह, कॉमरेड, दत्तात्रेय वगैरह, जो मिल जाए, वही बने रहना है। अगर सत्र चल रहा है, तो हंगामा करो, और नहीं चल रहा है, तो सत्र बुलाने की मांग करो।

सच को स्वीकार न कर पाना, लोकतांत्रिक पराजय को स्वीकार न कर पाना, न करने की हठ करना और उस पर अड़े रहना- पिनक में बने रहने में मददगार भले ही हो, लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होता।

यह तो पुरानी प्रथा है कि राजनेता संसद के सदनों से सदन को भी संबोधित करते हैं, और साथ-साथ अपने समर्थकों को भी। यह काम सभी पक्ष करते हैं। लेकिन यह पूरी तरह एकतरफा नहीं होता। आपको संसद के प्रति, देश के प्रति अपने दायित्व बोध का भी परिचय कराना होता है।

विपक्ष यह भी नहीं कर पा रहा है। वह सरकार की आलोचना नहीं करता। सरकार का विरोध करता है। विरोध भी नहीं करता, सरकार से अपनी दुश्मनी, अपनी घृणा जताने का प्रयास करता है। सरकार से घृणा करते-करते वह सरकार के हर कदम का विरोध करता है, और होते-होते अब वह देश के सामने यह जताने लगा है कि वह उस देश से भी घृणा करता है, जिस देश में मोदी सरकार है। कारण?

पहले वोटबैंक की राजनीति यह कारण हुआ करती थी। माने वोट बैंक को यह यकीन दिलाना कि हम आपको खुश करने के लिए देश के खिलाफ भी जाने के लिए तैयार हैं। अब चाहे कोई टिकैत हो, कोई ममता बनर्जी हो, कोई प्रशांत किशोर हो, लुटियन मीडिया हो या इधर-उधर से फंडिंग दिलाने वाले लोग हों, सबका आधार सूत्र वही वोटबैंक की राजनीति है। मोदी विरोध लक्ष्य भी है, लेकिन साथ ही अनुमानित विपक्षी गठबंधन का नेता बनना भी है। उसके लिए स्वयं को दूसरे से ज्यादा मोदी विरोधी-देश विरोधी दर्शाना भी है।

इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि – “देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो राजनीतिक स्वार्थ के लिए अपना ही नुक्सान (सेल्फ गोल) करने में लगे हुए हैं। देश क्या चाहता है, देश क्या उपलब्धि प्राप्त कर रहा है, देश किस तरह बदल रहा है, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं है।”

संसद में जारी गतिरोध का जिक्र करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “विपक्षी दल देश के विकास के एजेंडे को पटरी से उतारने और महामारी के खिलाफ भारतीयों की लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।”

ऐसा नहीं है कि विपक्ष नहीं जानता कि सेल्फ गोल क्या होता है? एम. वीरप्पा मोइली कांग्रेस नेता हैं। मोइली ने कहा है कि सिर्फ मोदी विरोधी एजेंडा चलाने से विपक्ष की मोर्चाबंदी कायम नहीं रह सकेगी। मोइली ने कहा- “विपक्ष का एजेंडा व्यक्तिगत विरोध पर आधारित नहीं होना चाहिए। इसका कोई वैचारिक आधार होना चाहिए।” उन्होंने “विरोध की खातिर विरोध” की नीति अपनाने का भी विरोध किया।

मोइली का वर्तमान परिचय यह है कि वे कांग्रेस के महासचिव हैं। कांग्रेस में किसी महासचिव की क्या वस्तुस्थिति होती है, यह वह भी जानते हैं। इसीलिए वह यह बात कह सके। वास्तव में विपक्ष भी सदनों के पीठासीन अधिकारियों के सामने बार-बार वादा करता रहा है कि आगे से सदन शांतिपूर्वक चलेगा, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता है। कारण यह कि सदन चलने देना है या नहीं, यह फैसला सदन में नहीं होता, बल्कि सदनों के बाहर होता है। मोइली जानते हैं कि सदनों में विपक्ष जो कुछ कर रहा है, वह क्यों और किसके इशारे पर कर रहा है।

यह लोकतंत्र का ह्रास नहीं, लोकतंत्र का परिहास है।

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Tags: appositionBJPcongressindianarendra modipm narendra modipolitical newspolitics

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