लक्ष्मी आई मेरे द्वार
“लक्ष्मी जी मेरी बात सुन कर अपने उल्लू पर सवार होकर अन्तर्धान हो गई और मेरे अंधेरे कमरे में गृहलक्ष्मी दरवाजा खोल कर बोली-“क्या उल्लुओं की तरह पड़े हुए हो? सवेरा हो गया है, अब उठो भी?” मैंने कहा-“जब भी मैं सुनहरे सपने देखता हूं तब तुम पता नहीं बीच…