भारत के समृद्धशालियों एवं प्रतिभाओं का पलायन क्यों?

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धनाढ्य परिवारों का भारत से पलायन कर विदेशों में बसने का सिलसिला चिन्ताजनक है। ऐसे क्या कारण है कि लोगों को देश की बजाय विदेश की धरती रहने, जीने, व्यापार करने, शिक्षा एवं रोजगार के लिये अधिक सुविधाजनक लगती है, नये बनते भारत के लिये यह चिन्तन-मंथन का कारण बनना चाहिए। हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुमानित 6,500 हाई- नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) के 2023 में भारत से बाहर जाने की संभावना है, पिछले वर्ष की तुलना में यह करोड़पतियों के देश छोड़कर जाने की 7500 की संख्या भले ही कुछ सुधरी है, लेकिन नये बनते, सशक्त होते एवं आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर भारत के लिये यह चिन्तन का विषय होना ही चाहिए कि किस तरह भारत की समृद्धि एवं भारत की प्रतिभाएं भारत में ही रहे।

क्यों आवश्यक है समान नागरिक संहिता?

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राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति, वर्ग, सम्प्रदाय, जाति जब-तक कानूनी प्रावधानों के भेदभाव को झेलेगा, तब तक राष्ट्रीय एकता, एक राष्ट्र की चेतना जागरण का स्वप्न पूरा नहीं हो सकता। समान नागरिक संहिता दरअसल एक देश एक कानून की अवधारणा पर आधारित है। यूनिफॉर्म सिविल कोड के अंतर्गत देश के सभी धर्मों, पंथों और समुदायों के लोगों के लिए एक ही कानून की व्यवस्था का प्रस्ताव है। भारत के विधि आयोग ने 14 जून 2023 को  राजनीतिक रूप से अतिसंवेदनशील इस मुद्दे पर देश के तमाम धार्मिक संगठनों से सुझाव 30 दिनों के अंदर आमंत्रित किए हैं।

उपजाऊ भूमि का मरुस्थल में बदलना गंभीर संकट

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विश्व में जमीन का मरुस्थल में परिवर्तन होना गंभीर समस्या एवं चिन्ता का विषय है। भारत में भी यह चिंता लगातार बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि भारत की करीब 30 फीसदी जमीन मरुस्थल में बदल चुकी है। इसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा केवल आठ राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी “स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019” की रिपोर्ट के मुताबिक 2003-05 से 2011-13 के बीच भारत में मरुस्थलीकरण 18.7 लाख हेक्टेयर बढ़ चुका है। सूखा प्रभावित 78 में से 21 जिले ऐसे हैं, जिनका 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण में बदल चुका है।

चुनावी रथ में सवार दलों की सत्ताकांक्षा

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2024 लोकसभा एवं इसी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है, वह पहली बार देखने को मिल रहा है की चुनाव के इतने लम्बे समय पूर्व ही चुनाव जैसी तैयारियां होती हुई दिख रही है। टुकड़े-टुकड़े बिखरे कुछ दल फेवीकॉल लगाकर एक हो रहे हैं। विरोधी विचारधारा के दलों के साथ ग्रुप फोटो खिंचा रहे हैं। सत्ता तक पहुँचने के लिए कुछ दल परिवर्तन को आकर्षण व आवश्यकता बता रहे हैं। कुछ प्रमुख दलों के नेता स्वयं को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देख रहे हैं। मतदाता जहां ज्यादा जागरूक हुआ है, वहां राजनीतिज्ञ भी ज्यादा समझदार एवं चालाक हुए हैं।

आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसक विश्व के महान् प्रयोक्ता

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भारतभूमि अनादिकाल से अहिंसा, सह-जीवन एवं योग की प्रयोगभूमि रही है। अहिंसा एवं योग-साधना की यह गंगा बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में जिस श्लाकापुरुष में आत्मसात् हुई, उनका नाम था- आचार्य श्री महाप्रज्ञ। जो एक गण के नायक थे तो साधना के महानायक एवं महायोगी थे। वे आत्मिक दृष्टि से इंसान को शक्तिशाली बनाने वाले पांव-पांव चलने वाले सूरज थे। आज जब रूस एवं यूक्रेन युद्ध समूची दुनिया की एक बड़ी समस्या का रूप लिये हुए है तब इस युद्ध की समाप्ति के लिये दुनिया भारत की ओर देख रही है, ऐसे समय में आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा का सहज ही स्मरण हो रहा है, जिन्होंने देश एवं दुनिया की अनेक महाशक्तियों को अहिंसा के प्रयोग की सफलतम प्रेरणाएं दी।

रक्तदान नयी जिन्दगी देने का वरदान

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किसी व्यक्ति की रक्तअल्पता के कारण मृत्यु न हो, इस दृष्टि से रक्तदान एक महान् दान है, जो किसी को जीवन-दान देने के साथ हमें स्वर्ग-पथ की ओर अग्रसर करता है। ऐसा दानदाता समाज, सृष्टि एवं परमेश्वर के प्रति अपना कर्त्तव्य पालन करता है। रक्तदान का दाता कोई भी हो सकता है, जिसका रक्त किसी अत्यधिक जरुरतमंद मरीज को दिया जा सकता है। किसी के द्वारा दिये गये रक्त से किसी को नया जीवन मिल सकता है, उसकी जिन्दगी में बहार आ जाती है।

दिल्ली को शस्त्र नहीं, सौहार्द चाहिए

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दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से जो हालात बने हैं, वे न केवल त्रासद एवं शर्मनाक हैं बल्कि भारत की संस्कृति एवं एकता को धुंधलाने वाले हैं। इंग्लैण्ड एवं स्काॅटलैंड की दो सप्ताह की यात्रा से दिल्ली लौटने पर जो हिंसा, आगजनी, विध्वंस के उन्मादी हालात देखने को मिले, उससे मन बहुत दुःखी हुआ, वैसे इन भीषण अत्याचारों, तोड़फोड एवं हिंसा के हालातों से सभी बहुत दुखी हैं। इन विडम्बनापूर्ण हालातों ने अब एक ऐसा रंग ले लिया है कि इसका समाधान करना कठिन हो गया है।

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