आचार्य महाप्रज्ञ जन्म जयन्ती- 14 जून, 2023
भारतभूमि अनादिकाल से अहिंसा, सह-जीवन एवं योग की प्रयोगभूमि रही है। अहिंसा एवं योग-साधना की यह गंगा बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में जिस श्लाकापुरुष में आत्मसात् हुई, उनका नाम था- आचार्य श्री महाप्रज्ञ। जो एक गण के नायक थे तो साधना के महानायक एवं महायोगी थे। वे आत्मिक दृष्टि से इंसान को शक्तिशाली बनाने वाले पांव-पांव चलने वाले सूरज थे। आज जब रूस एवं यूक्रेन युद्ध समूची दुनिया की एक बड़ी समस्या का रूप लिये हुए है तब इस युद्ध की समाप्ति के लिये दुनिया भारत की ओर देख रही है, ऐसे समय में आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा का सहज ही स्मरण हो रहा है, जिन्होंने देश एवं दुनिया की अनेक महाशक्तियों को अहिंसा के प्रयोग की सफलतम प्रेरणाएं दी। लेकिन मिसाइलमैन के नाम से प्रसिद्ध डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को दी गयी अहिंसा की प्रेरणा सर्वाधिक सफल एवं कारगर सिद्ध हुई। उन्हीं की प्रेरणा थी कि डॉ. कलाम ने राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिये जहां अस्त्र-शस्त्र की शक्ति को संगठित करने के प्रभावी प्रयोग किये वही अमन एवं शांति के लिये अहिंसा को भी तेजस्वी बनाया। वे दुनिया को अणुबम से अणुव्रत (अहिंसा) की ओर ले जाने वाले विरल महामानव आचार्य महाप्रज्ञ की प्रेरणा के कारण ही कहलाये।
आचार्य महाप्रज्ञ एक दार्शनिक, चिन्तक, कवि, संत एवं साहित्यकार होते हुए भी शांति, अहिंसा एवं संतुलित जीवन के लिये प्रेक्षाध्यान पद्धति के अनुसंधाता, प्रणेता एवं प्रयोक्ता थे। जिन्होंने हम सबको आस्था एवं शांतिपूर्ण जीवन की नयी जीवनशैली प्रदान की है, वे अपने गुरु आचार्य तुलसी के प्रति सर्वात्मना समर्पित थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर सहित अनेक बुद्धिजीवियों ने महाप्रज्ञ को भारत का दूसरा विवेकानन्द बताया। पारिवारिक मोहपाश एवं भौतिक सुख-सुविधाओं को त्याग मात्र दस वर्ष की अवस्था में उन्होंने मुनि-जीवन के कठोर मार्ग को स्वीकार किया। मुनि नथमल के रूप में उनकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हुई। उन्होंने 271 पुस्तकों का लेखन किया। अणुव्रत आन्दोलन में उनकी मुख्य भूमिका रही, जो आचार्य तुलसी ने 1949 में शुरू किया। भारत की शिक्षा प्रणाली के अधूरेपन को दूर करते हुए उन्होंने जीवन-विज्ञान के रूप में आध्यात्मिक शिक्षा का विकास किया। जो छात्रों के संतुलित विकास और उनके चरित्र निर्माण में सहायक बनी।
आचार्य महाप्रज्ञ का मुख्य लक्ष्य अहिंसा रहा। उन्होंने वर्ष 2007 में अहिंसा यात्रा का सुजानगढ़- राजस्थान से प्रारंभ किया और समूचे देश में अहिंसा की ज्योति एवं अहिंसा के प्रशिक्षण का उपक्रम किया। डॉ. कलाम आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अहिंसा-दर्शन एवं जीवनशैली से इतने अधिक प्रभावित थे कि अपना हर जन्म दिन आचार्य महाप्रज्ञ की सन्निधि में ही मनाते थे। जहां भी आचार्य महाप्रज्ञ होते वे वहां पहुंच जाते थे। भारत को परमाणु अस्त्रों से समृद्ध बनाने वाले महान वैज्ञानिक डॉ॰ कलाम अपने ही द्वारा विकसित किए गए परमाणु अस्त्रों को निस्तेज करने की चुनौती भरी जंग लड़ते रहे। वे अहिंसा और शांति की स्थापना के लिए प्रयासरत थे। इन परमाणु अस्त्रों और शस्त्रों की होड़ में उल्लेखनीय सफलताएं हासिल करने वाले इस महान वैज्ञानिक का हृदय आचार्य महाप्रज्ञ की प्रेरणा से एकाएक बदल गया। यह एक चुनौती भरा रास्ता था जिसपर चलते हुए डॉ॰ कलाम को अपने ही द्वारा विकसित किए और निर्मित किए गए हिंसा के अत्यधिक नवीनतम आविष्कारों को निस्तेज करने की सोचना पड़ा और समूची दुनिया को शांति और अहिंसा से जीने के लिए अभिप्रेरित करने के प्रयासों में जुटना पड़ा। डॉ॰ कलाम इन्हीं विशिष्ट लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जुटे रहे।
शांति और अहिंसा हमारे जीवन का व्याख्या सूत्र है और यही आचार्य श्री महाप्रज्ञ के जीवन का ध्येय रहा है। शांति और अहिंसा ही वह माध्यम है जो असफलताओं में से सफलताओं को खोज लाती है। शांति और अहिंसा ही सफलता का दूसरा नाम है। इसीलिये उन्होंने जीवन को सफल बनाने के लिए जन-जन को शांतिवादी और अहिंसक बनने का पाठ पढ़ाया। क्योंकि यही मनुष्य की सार्थक यात्रा का सारांश है। असल में शांति और अहिंसा एक गहरा जीवन दर्शन है जिसके बल पर ही हर छोटा या बड़ा काम संभव होता है, हर छोटी या बड़ी सफलताएं मिलती है और हर छोटी या बड़ी बाधा से पार पाया जाता है। डॉ॰ कलाम का जीवन अहिंसा और शांति को समर्पित रहा है, लेकिन उन्हें इस ओर अग्रसर करने का श्रेय आचार्य महाप्रज्ञ को ही जाता है। डॉ. कलाम एक ऐसे व्यक्ति हैं जो हिंसा, अस्त्र-शस्त्र, परमाणु शस्त्र के शीर्ष व्यक्तित्व माने जाते हैं। मिसाइल मैन के नाम से विश्व विख्यात इस व्यक्तित्व का जीवन एकाएक कैसे शांति और अहिंसा को समर्पित हो गया? सचमुच डॉ॰ कलाम के लिए यह एक चुनौती भरी डगर थी जिसपर वे धीरे धीरे आगे बढ़ते रहे और शांति और अहिंसा की स्थापना के अनूठे, सफलतम एवं विलक्षण प्रयास उन्होंने किये हैं।
डॉ. कलाम राष्ट्रपति बनने के साथ नई सहस्त्राब्दी में भारत को एक शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने के एक अभिनव स्वप्न को संजोये हुए निरन्तर सक्रिय रहे। वे भारत को परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए चर्चित हुए लेकिन अपनी पहली मुलाकात में महान दार्शनिक संत एवं अहिंसा के संदेशवाहक आचार्य महाप्रज्ञ ने उन्हें अध्यात्म साधना केन्द्र, महरौली, दिल्ली में भारत को शक्ति के साथ अध्यात्म संपन्न राष्ट्र बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी। उन विलक्षण क्षणों के साथ ही एक ऐसा ऐतिहासिक और अभिनव उपक्रम शुरू हुआ, जिसने डॉ. कलाम की जीवन की दिशा ही बदल दी। विज्ञान के शिखर पुरुष डॉ. कलाम और अध्यात्म के शिखर पुरुष आचार्य श्री महाप्रज्ञ- दोनों ही महामानव भारत को एक आध्यात्मिक-वैज्ञानिक राष्ट्र बनाने के लिए जुट पड़े और उसके सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दिये और भविष्य में इनके प्रयत्नों से स्पष्ट शुभताएं दुनिया को देखने को मिलेगी। दोनों ही महापुरुषों के संयुक्त लेखन में एक पुस्तक भी लिखी, जिसमें भारत को 2020 तक एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकसित करने की रूपरेखा प्रस्तुत है।
समृद्ध एवं शक्ति संपन्न राष्ट्र के स्वप्न को लेकर डॉ. कलाम वर्ष में 2-3 बार आचार्य महाप्रज्ञ से आध्यात्मिक प्रेरणा एवं मार्गदर्शन लेने पहुंचते थे। इसी शृंखला में वे गुजरात के सूरत और अहमदाबाद एवं महाराष्ट्र के मुंबई महानगरी में इन्हीं विशिष्ट कार्यक्रमों एवं उद्देश्यों को लेकर यात्राएं कीं। 15 अक्टूबर, 2003 को राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने अपना जन्मदिन सूरत में मनाया और इस दिन आचार्य महाप्रज्ञ के सान्निध्य में आध्यात्मिक नेताओं और विद्वानों ने राष्ट्रपति कलाम के 2020 के समृद्ध भारत के सपने और उससे जुड़े पांच सूत्रीय कार्यक्रमों पर गंभीर एवं गहन चर्चाएं की थी। इसकी निष्पत्ति देश के लिए एक सुखद एवं शुभ शुरूआत रही कि इससे यूनिटी ऑफ माइंड (दिमागों की एकता) यानि सांप्रदायिक सौहार्द, आपसी भाईचारा, प्रेम एवं सद्भावना का एक अनूठा वातावरण बना और इस तरह का वातावरण बनाने के लिए ‘‘फाउंडेशन फॉर यूनिटी ऑफ रिलिजियन एंड इनलाइटेंड सिटीजनशिप’’ के रूप में एक संगठित कार्यक्रम की शुरूआत भी हुई थी। गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के बाद उत्पन्न आपसी कटुता, घृणा, नफरत, द्वेष और हिंसा को खत्म करने के लिए आचार्य महाप्रज्ञ के सान्निध्य में डॉ. कलाम द्वारा किये गये प्रयासों के सार्थक परिणाम आये।
आखिर डॉ. कलाम आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति इतने आकर्षित क्यों हुए? क्यों उनमें इतना अहिंसा के प्रति आकर्षण पैदा हुआ? क्यों वे धार्मिक सहिष्णुता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण बनाने के लिये अपनी सेवाएं देना चाहते थे। ये ऐसे प्रश्न हैं जिससे रूबरू होना आचार्य महाप्रज्ञ जन्म दिन का मुख्य ध्येय होना ही चाहिए। अपनी पहली मुलाकात में आचार्य महाप्रज्ञ के व्यक्तित्व से डॉ. कलाम इसलिए प्रभावित हुए कि वह मुलाकात पोखरण में परमाणु विस्फोट के एक दिन बाद दिल्ली में आयोजित हुई। उस समय जब समूची दुनिया और देश के विशिष्ट जन डॉ. कलाम को इस सफल परीक्षण के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं दे रहे थे तब आचार्य महाप्रज्ञ ने उनसे कहा कि आपने शक्ति का परीक्षण किया है, अब शांति के परीक्षण की ओर अग्रसर होना है। क्या आप शांति के लिए कोई मिसाईल बनायेंगे? आचार्य महाप्रज्ञ की वह प्रेरणा डॉ. कलाम को असमंजस की स्थिति में ले गयी और ऊहापोह की स्थिति से वे लंबे समय तक जूझते रहे, क्योंकि डॉ. कलाम के लिए परमाणु हथियारों को बेअसर तथा प्रभावहीन कर देने की यह जीवन की सर्वाधिक विषम चुनौती थी। डॉ. कलाम ने इस चुनौती को स्वीकार किया और राष्ट्रपति बनने के बाद वे अहिंसा के संदेश और व्यवहार को जनव्यापी बनाने एवं हिंसा की संहारक शक्ति को कम करने के विशिष्ट अभियान में जुट पड़े। उसी अभियान को वर्तमान में जी-20 देशों की अध्यक्षता करते हुए भारत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बल दिया जा रहा है एवं अहिंसक विश्व की संरचना के प्रभावी प्रयत्न हो रहे हैं।