नायक को नायक ही रहने दो – कोई नाम न दो

Continue Readingनायक को नायक ही रहने दो – कोई नाम न दो

क्या ये कह देना भर काफी है कि कमर्शियल सिनेमा का काम सिर्फ मनोरंजन है, स्कूली शिक्षा बाँटना नहीं! और यदि येे काफी है तो फिर क्या ऐसा मनोरंजन देकर, विद्यालयों में दी जा रही  शिक्षा को भी अनावश्यक सिद्ध नहीं किया जा रहा ?

कभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – अपने अस्तित्व को संघर्षशील है आज भी स्त्री

Continue Readingकभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – अपने अस्तित्व को संघर्षशील है आज भी स्त्री

मुद्दा ये है कि अब स्त्री को सम्मान सहित उसका बराबरी का स्थान देकर क्या- क्या हासिल हो सकता है। और ये मुद्दा किसी एक परिवार या किसी एक देश  का नहीं, वरण पूरे विश्व का है क्योंकि भले ही हमारी भाषा अलग हो , पहनावा अलग हो, जन्मभूमि अलग हो, देश अलग हो, संस्कृति अलग हो लेकिन आख़िरकार हम सभी एक ही अटूट सूत्र में बंधे हुए हैं और वो सूत्र है 'मानवता'।

मिसाल-ए- कलाकार – कादर खान

Continue Readingमिसाल-ए- कलाकार – कादर खान

सन 1973 में राजेश खन्ना के साथ फ़िल्म 'दाग' से अपने फ़िल्मी करियर की शुरआत करने वाले फ़िल्मी दुनिया के हरदिल अज़ीज़ सितारे,  रहे श्री कादर खान का पिछले दिनों हुआ निधन भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के एक अपूर्णनीय क्षति है। लगभग तीन सौ फ़िल्मों में काम करने वाले कादर खान…

कुछेक गज की साड़ी

Continue Readingकुछेक गज की साड़ी

“कुछेक गज की साड़ी में कितना कुछ समाया  होता है! बचपन में मां का आंचल, बड़े होने पर मां की साड़ियां पहनकर एक सौंदर्य रमणा स्त्री दिखने की इच्छा, और वक्त के बीतते, किसी के नाम की साड़ी पहनना, सजना- संवरना, और फिर जीवन का सबसे खूबसूरत पल- किसी नन्हीं सी जान को अपनी इसी साड़ी के आंचल से सुरक्षित रखना, बिल्कुल जैसे मां किया करती थीं...”

End of content

No more pages to load