हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
कभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – अपने अस्तित्व को संघर्षशील है आज भी स्त्री

कभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – अपने अस्तित्व को संघर्षशील है आज भी स्त्री

by डॉ. मेघा भारती 'मेघल'
in महिला
0

समय बदल रहा है और समय के साथ विकास की ओर बढ़ने के लिए बहुत आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति सकारत्मक तरीके से अपनी सोच को बदले। सोच से समाज बनता है और बदलता है। यूँ तो बहुत से मुद्दे हैं जिन पे विचार करते हुए समाज में बहुत से बदलावों की आवश्यकता हमेशा से ही रही है, लेकिन एक मुद्दा है जो सभी से अधिक संवेदनशील है। और इसलिए इस मुद्दे पर बारहा हर जगह हर व्यक्ति द्वारा चर्चा करने के बाद भी इसमें बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया है।

शायद इसलिए भी क्योंकि इस पर चर्चा तो हमेशा हुई लेकिन इसके लिए जो परिवर्तन हमारी सोच में आना चाहिए था वो अब भी अपनी सही जगह नही बना पाया। ये मुद्दा है बड़ी ही गहनता से हमारे समाज में अपनी जड़ें फैलाता हुआ ‘लिंगभेद’। पुरुष और स्त्री के बीच के शारीरिक अन्तर को आधार बनाकर हमने अपने सम्पूर्ण समाज और विश्व को उसपे टिका रखा है।

हर देश के पुरुष प्रधान समाज में, सदियों से एक स्त्री को ‘नाज़ुक’ और ‘निर्भर’ जैसे शब्दों का ही सटीक उदाहरण माना गया है। और ऐसा इसलिए भी होता रहा क्योंकि महिलाएं स्वयं अपनी इस छवि को तोड़ने में असमर्थ थीं। पिता से मार्गदर्शन, पति से सुरक्षा और पुत्र पे निर्भरता ने धीरे-धीरे स्त्री को मात्र एक ‘ समर्पित सेविका’ बना दिया था। लेकिन अपने जीवन में शायद यही सेवा भाव और समर्पण था जिसने फिर उसके अन्दर स्वयं के अस्तित्व के लिए खड़े होने की हिम्मत को जन्म दिया। और दूसरों को ये समझाने का भी हौसला दिया कि एक स्त्री का ‘अस्तित्व पर गर्व’ उसका अपना है, निजी है।

मुद्दा ये नहीं, कि स्त्री पर अत्याचार करके हमारे समाज ने आजतक क्या-क्या खोया है। मुद्दा ये है कि अब स्त्री को सम्मान सहित उसका बराबरी का स्थान देकर क्या- क्या हासिल हो सकता है। और ये मुद्दा किसी एक परिवार या किसी एक देश  का नहीं, वरण पूरे विश्व का है क्योंकि भले ही हमारी भाषा अलग हो , पहनावा अलग हो, जन्मभूमि अलग हो, देश अलग हो, संस्कृति अलग हो लेकिन आख़िरकार हम सभी एक ही अटूट सूत्र में बंधे हुए हैं और वो सूत्र है ‘मानवता’।

बात बड़ी साधारण सी है, बड़ी आम है, लेकिन फिर भी यही हुआ है, कभी ग़लती से, कभी जबरन, लेकिन हुआ है कि ‘मानवता’ को परिभाषित करने में ‘नारी’ कहीं छूट गई। कभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – बस इन्हीं दो शब्दों के बीच उसका अस्तित्व झूलता रहा।

भारत में भी आज़ादी के बाद महिलाओं को कुछ अधिकार दिए गए जिनके बूते वे कुछ हद तक पुरुषों के समक्ष समान अधिकारों के साथ खड़ी हो पाईं। विशेष रूप से अपने घर की दहलीज़ को पार करके काम करने का अधिकार महिलाओं के लिए बेहद कारगर साबित हुआ। आर्थिक मामलों में एक हद तक अपने फैसले स्वयं लेने की इस सुविधा ने भले ही किसी महिला को किसी पुरुष के समकक्ष न किया हो, हाँ, लेकिन इस समान अधिकार से आत्म विश्वास के साथ पुरुष के समक्ष खड़े होने का हौसला ज़रूर दिया।

लेकिन अब भी तेज़ प्रगति शीलता के इस दौर में  विशुद्ध समानता की ज़रूरत बाकी है। जो समानता केवल काग़ज़ों पर है उसे वास्तविकता में लाने की ज़रूरत अभी भी बाकी है।

आजकल कई लोगों को बड़ी सहजता से एक मंच मिल जाता है जहाँ से वे नारी पर हो रहे अत्याचारों को प्रदर्शित कर सकें। लेकिन, नारीवाद पे भाषणों और नारी सशक्तिकरण पे विचारों को व्यक्त करते समय एक मुख्य बात है जो अक्सर नज़रंदाज़ कर दी जाती है –  वो यह कि इन् सभी आयोजनों और भाषणों का मूल उद्देश्य क्या सिर्फ नारी पे हो रहे विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को मथना है या फिर इन अत्याचारों को मिटाते हुए एक साथ समाज में एक नवीन ऊर्जा का विस्तारण करना? नारी को उसका योग्य स्थान देने के लिए बहुत आवश्य है इस फ़र्क को समझना।

समाज में यदि समानता लानी है तो दोनों ही, महिलाओ एवं पुरुषों को एक दूसरे से हाथ मिलाना होगा।ये बात हमें समझनी होगी कि एक दूसरे के विरुद्ध खड़े होकर, इस संसार के विकास में और प्रकृति के संरक्षण में हम केवल बाधक ही बन रहे हैं। एक दूसरे को अपमानित करके या कमतर दर्शाकर हम सिर्फ अपने समाज, अपनी दुनिया को शिथिल करते हैं। समाज को एक नई दिशा देने के लिए, नारी को स्वयं की शक्ति को पहचानना होगा और पुरुष को अपने भीतर की कोमलता को।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: empowering womenhindi vivekhindi vivek magazineinspirationwomanwomen in business

डॉ. मेघा भारती 'मेघल'

Next Post
मूर्ख साधू और ठग

मूर्ख साधू और ठग

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0