सहकारी बैंकों का भविष्य अंधेरे में

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सहकारी बैंकों के प्रति सरकारों और राजनीतिक दलों का रवैया उदासीन दिखाई दे रहा है। यदि ऐसी ही स्थिति बनी रही तो ये बैंक नाममात्र के लिए अस्तित्व में रह जाएंगे। यह सहकारिता और देश दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।

किसानों की आत्महत्याएं और कर्जमाफी

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कसानों आत्महत्या  को रोकने के लिए  कर्जमाफी ही अंतिम विकल्प नहीं है| किसानों की आत्महत्याएं रोकने की सरकार की वाकई इच्छा होगी तो कर्जमाफी न देकर सहकारी क्षेत्र को अपनाकर किसानों को उनका योग्य हक दिलाया जा सकता है| इससे देश की अनेक घातक परंपराएं नष्ट होकर भारत एक बलवान राष्ट्र बन सकेगा|

क्या यह सिर्फ सहकारी बैंकों की ही जरुरत है ?

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 पलाई सेन्ट्रल बैंक लि. तथा लक्ष्मी बैंक लि. के विफल होने से जमाराशियों के लिए बीमा कराने के सम्बंध में गंभीर विचार हुआ और उसके उपरांत २१ अगस्त को संसद में निक्षेप बीमा निगम (डीआईसी) विधेयक लाया गया। संसद में पारित होने के बाद वह दिसम्बर १९६३ से प्रभावी हुआ।

निक्षेप बीमा क्यों सिर्फ सहकारी बैंकों की आवश्यकता है?

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पलाई सेन्ट्रल बैंक लि. तथा लक्ष्मी बैंक लि. के विफल होने से जमा राशियों पर बीमा देने के सम्बन्ध में गम्भीर विचार हुआ और उसके उपरान्त 21 अगस्त 1961 को संसद में ‘निपेक्ष बीमा निगम’ (डी.आई.सी.) बिल लाया गया। संसद में बिल के मंजूर होने के बाद 7 दिसम्बर 1961…

मनमोहना बड़े झूठे

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प्रसिद्ध व्यंग्यचित्रकार आर. के. लक्ष्मण अगर आज अपने व्यंग्य चित्र ‘कामन मेन’ बनाने की स्थिति में होते तो उनके सामने सबसे बडा प्रश्न आता किसकि विषयों पर कितने चित्र बनाऊं? उनके कामन मेन को आज चारों ओर से डंक मारे जा रहे हैं। उसके शरीर पर कोई ऐसी जगह शेष नहीं हैं जहां जख्म न हो।

111वां संविधान संशोधन और सहकारिता आंदोलन

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संसद के पिछले अधिवेशन में सहकारिता आंदोलन की नींव मजबूत बनाने, सहकारिता आंदोलन के माध्यम से देश की आर्थिक, सामाजिक स्थिति समृध्द और सक्षम होने के उद्देश्य से कृषि मंत्री ने संविधान में यह 111वां संशोधन पेश किया और उसे मंजूरी प्राप्त की।

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