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111वां संविधान संशोधन और सहकारिता आंदोलन

111वां संविधान संशोधन और सहकारिता आंदोलन

by शरद साठे
in अप्रैल -२०१२, आर्थिक
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संसद के पिछले अधिवेशन में सहकारिता आंदोलन की नींव मजबूत बनाने, सहकारिता आंदोलन के माध्यम से देश की आर्थिक, सामाजिक स्थिति समृध्द और सक्षम होने के उद्देश्य से कृषि मंत्री ने संविधान में यह 111वां संशोधन पेश किया और उसे मंजूरी प्राप्त की। इसका सहकारिता आंदोलन को लाभ होगा या नहीं यह समय ही बताएगा, क्योंकि इन संशोधनों का लाभ राज्य सरकारें और सहकारिता क्षेत्र के कार्यकर्ता (!) कैसे उठाएंगे इस पर यह निर्भर है।

संविधान के चौथे भाग के अनुच्छेद 43 अ के बाद एक नया अनुच्छेद 43 ब जोड़ा गया है। इस नए अनुच्छेद के कारण केंद्र तथा राज्य सरकारें स्वयं आगे बढ़कर जनता को सहकारी संस्थाओं की स्थापना के लिए प्रेरित करेंगी और विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी संस्थाओं की आवश्यकाता व महत्व को लोगों के ध्यान में लाएंगी। ऐसी संस्थाओं की स्थापना ऐच्छिक होगी। इन संस्थाओं का कामकाज स्वायत्त होगा, लेकिन उस पर लोगों का नियंत्रण होगा। ये संस्थाएं व्यावसायिक प्रबंधन के माध्यम से काम करेंगी।
इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 9 अ के बाद सहकारी संस्थाओं के लिए नया अनुच्छेद 9 ब जोड़ा गया है। इसमें सहकारी संस्थाओं का स्वरूप कैसे होगा, उन पर केंद्रीय व राज्य सहकारिता विभाग का नियंत्रण किस प्रकार होगा, आदि अनेक बातों का विवरण दिया गया है।

सहकारी संस्था संचालक मंडल, राज्य स्तरीय सहकारी संस्थाएं राज्य सरकार के नियंत्रण में होती हैं। इसी कारण राज्य सरकारें इस संविधान संशोधन को ध्यान में रख कर और उसमें उल्लेखित नई धाराओं के अनुसार आवश्यक बदलाव करेंगे। इस आधार पर राज्य सहकारी संस्था आरंभ करने, उनके कामकाज पर नियंत्रण या किसी संस्था को बंद करने के लिए जरूरी नियमावली संविधान संशोधन के अनुरूप करेंगे। यह नियमावली इस तरह होगी कि इन संस्थाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन न हो।

इस संशोधन के अनुसार संचालक मंडल अधिकाधिक 21 सदस्यों का होगा। उसमें एक जगह पिछड़े वर्ग के लिए और दो जगह महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। संचालक मंडल की अवधि पांच वर्ष के लिए होगी। संचालक मंडल की कोई जगह रिक्त होती है और संचालक मंडल की अवधि आधे से कम रह गई होगी, तो ऐसी जगह उसी संवर्ग के व्यक्ति को नियुक्त करने का अधिकार संचालक मंडल को होगा।

संचालक मंडल बैंकिंग अथवा तत्सम अिार्थक क्षेत्र के अनुभवी व्यक्ति को तथा सहकारी संस्था जिन उद्देश्यों के लिए स्थापित की गई उस क्षेत्र के अनुभवी व्यक्ति को संचालक मंडल में व्यावसायिक संचालक के रूप में शामिल कर सकेगा, लेकिन उनकी संख्या दो से अधिक नहीं होगी तथा ऐसे व्यक्तियों को अध्यक्ष/उपाध्यक्ष अथवा अन्य पदाधिकारियों के चयन की प्रक्रिया में मतदान का अधिकार नहीं होगा। यह अधिकार संस्था के कार्यकारी अधिकारियों को भी नहीं होगा। ये सभी चुने गए 21 संचालकों के अतिरिक्त होंगे।

नियम क्रमांक 243जेडके के अनुसार संचालक मंडल के चुनाव नियत समय पर करने और इसके लिए सभी प्रकार के प्रबंध करने के अधिकार और नियमावली संबंधित राज्यों को कानून बनाकर तय करनी है और इन चुनावों को समय पर कराने की जिम्मेदारी संबंधित विभाग की होगी।

इसी कानून में नियम क्रमांक 243जेडएल के तहत संचालक मंडल बर्खास्त कर प्रशासक की नियुक्ति की प्रक्रिया के बारे में नियमावली भी तय की गई है। प्रशासक के लिए नये संचालक मंडल के चुनाव का कालावधि भी तय की गयी है। संस्था को संचालक मंडल के अधीन करने के प्रावधान भी इसमें हैं।

संचालक मंडल बर्खास्त करना अथवा निलम्बित करना हो तो उसकी अवधि छह माह की होगीा इस अवधि में प्रशासन में आवश्यक सुधार कर प्रशासक को संस्था निलम्बित संचालकों के हाथ में देना है अथवा बर्खास्त संचालक मंडल के बदले इस अवधि में चुनाव प्रक्रिया पूरी कर नए संचालक मंडल को कामकाज सौंपना है। आर्थिक व्यवहार करने वाली संस्थाओं के बारे में यह अवधि एक वर्ष रखी गई है। इसी तरह सहकारिता क्षेत्र की जिन क्रेडिट संस्थाओं ने सरकार से किसी तरह की आर्थिक सहायता अथवा गारंटी न ली होगी तथा सरकार की शेयरपूंजी नहीं होगी ऐसी संस्थाओं का संचालक मंडल बर्खास्त करने अथवा निलम्बित करने का अधिकार नियंत्रक को नहीं होगा। लेकिन सहकारिता बैंकों के बारे में बैंकिंग नियमन कानून 1949 के प्रावधान लागू होंगे। फलस्वरूप इन संशोधनों का लाभ नागरी सहकारिता बैंकों को कितना होगा यह फिलहाल संदेहास्पद है।
सहकारिता संस्था के सदस्यों और संचालकों को आवश्यक कार्यानुभव देने के लिए सहकारिता विभाग पाठ्यक्रम बनाएगा। कार्यशालाओं के जरिए उन्हें शिक्षित करने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की होगी। सभी सहकारिता संस्थाओं को उनकी वार्षिक रिपोर्टें, वार्षिक हिसाब‡किताब अंकेक्षकों की टिप्पणियों समेत सहकारिता विभाग व बैंकों के बारे में रिजर्व बैंक/ नाबार्ड को छह माह के भीतर भिजवाने हैं। इसी तरह मुनाफे का श्रेणीकरण कर उसे वार्षिक साधारण सभा में मंजूरी प्राप्त कर उसके अनुसार कार्यवाही करना जरूरी है।

उपर्युक्त सभी प्रावधानों को संविधान के आईएक्सबी धारा के अंतर्गत 243एच, 243क्यू, 243जेडटी की उपधाराओं में शामिल किया गया है। यदि उपर्युक्त प्रावधानों का समावेश राज्यों के सहकारिता कानूनों में उचित तरीके से न हो तो वैसा करना राज्यों के लिए अनिवार्य है। इस संविधान संशोधन के पीछे उद्देश्य यह है कि प्रत्येक राज्य सरकार सहकारिता आंदोलन को विकसित करें, इस आंदोलन को जनसाधारण तक पहुंचाये, वह आर्थिक व सामाजिक रूप से सक्षम हो, उसका लाभ समाज के निचले तबकों तक पहुंचे और इससे देश की आर्थिक/ सामाजिक स्थिति सुधर कर राष्ट्र सक्षम बने। इस दिशा में एक प्रयास के रूप में 111वें संविधान संशोधन विधेयक के माध्यम से संकल्प किया गया है। समय ही बताएगा कि इसके परिणाम सकारात्मक निकलेंगे या नहीं। क्योंकि इस कार्य के लिए सामाजिक समर्पण की जरूरत हैा यदि इसमें राजनीति लाने के प्रयास किए गए तो सहकारिता आंदोलन का विनाश की ओर बढ़ना इस संविधान संशोधन से नहीं रुकेगा यह आशंका मन में पैदा होती है।
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Tags: economygdpgsthindi vivekhindi vivek magazinemumbaishare market

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