स्वतन्त्रता के नायक भगवान् गणपति 

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इस क्रांतिकारी दल के सदस्य रहे श्री खानखोजेजी लिखते हैं " गणानां त्वा गणपतिं हवामहे" -इस व्यापक दृष्टिसे गणराज्य दिलाने वाले गणपति हमारे स्वातन्त्र्यके देवता हैं ,इस प्रकार का प्रचार शुरू हुआ । गणेशोत्सवके माध्यमसे प्रभावशाली और देशभक्त वक्ता एवं कीर्तनकारों द्वारा क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करने का काम सुलभ हुआ । धार्मिक उत्सव् होने के कारण पुलिस भी गणेशोत्सव में हस्तक्षेप करने में हिचकिचाती थी । खुद लोकमान्य तथा अन्य राजनीतिक कार्यकर्ता गणेशोत्सवके अवसरपर व्याख्यानद्वारा स्वराजका ही प्रचार किया करते थे ।" अब आप स्वयं ही निर्णय कर सकते हैं भारतीय स्वातन्त्र्य समर में पौराणिकोंका कितना महत्वपूर्ण योगदान रहा है । 

राष्ट्र जागरण का पर्व गणेशोत्सव और लो.तिलक

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 इस प्रकार हमारे गणेश उत्सव का धार्मिक ही नहीं अपितु सामाजिक व राष्ट्रीय महत्त्व रहा है। इस उत्सव को मनाने वाले हम हिंदू बंधुओं का भी दायित्व बनता है कि हम इस उत्सव को सामाजिक समरसता स्थापित करने, जातिगत भेदभाव मिटाने और राष्ट्रीयता के भाव को स्थापित करने की दिशा में एक शस्त्र की तरह उपयोग करें। आज के दौर में आवश्यकता है कि इस उत्सव के  माध्यम से हिंदुत्व के परम प्रयोगवादी, प्रगतिवादी व परम प्रासंगिक रहने के सारस्वत भाव की प्राण प्रतिष्ठा की जाए। गणेश पंडालों से, स्थापना व विसर्जन की शोभायात्राओं को फ़िल्मी गीतों, नृत्योंम शराब व अन्य व्यसनों से दूर रखा जाए; यही लोकमान्य तिलक व वीर सावरकर जैसे अनेक स्वातंत्र्य योद्धाओं को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।  महाराष्ट्र के लगभग 50 हजार सार्वजनिक गणेश पंडाल व देश भर के लगभग तीन लाख पंडालों में स्वाधीनता के अमृत महोत्सव को भी उत्साह के साथ मनाया जाए तो राष्ट्रीयता को नए प्राणतत्व मिलेंगे। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में हम गणपति बप्पा से आराधना करें कि स्वतंत्रता के सौवें वर्ष के आने से पूर्व भारत माता अपने परम वैभव के शिखर पर विराजमान हो व हम एक विकसित व सर्वशक्तिशाली राष्ट्र बन जाए। 

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