क्या हम अपने ‘स्व’ को पहचानना नहीं चाहते?

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भारत के सिवा दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहां के समाज के मन में “हम कौन हैं? हमारे पुरख़े कौन थे? हमारा इतिहास क्या रहा है?” इस के बारे में कोई सम्भ्रम या भिन्न भिन्न मत होंगे। पर भारत में, जो दुनिया का सबसे प्राचीन राष्ट्र है और जहां सब से समृद्ध समाज रहने के बावजूद हमारी इस विषय पर सहमति नहीं है।इसका एकमात्र कारण यही दिखता है कि हम एक समाज और एक राष्ट्र के नाते अपने “स्व” को पहचानना और उसे आत्मसात् करना नहीं चाहते। कुछ उदाहरण देखें।

संघ की विचारधारा को गांव गांव तक पहुंचाएंगे शताब्दी विस्तारक

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मां भारती के अनन्य उपासक और महान देशभक्त डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी की पावन तिथि के शुभ अवसर पर मुट्ठी भर नवयुवकों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक जिस संगठन की नींव रखी थी वह इन 97 वर्षों में विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है जिसकी वर्तमान में देश के विभिन्न भागों में 57000 से अधिक शाखाएं संचालित हो रही हैं।

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