वीर सावरकर के आगे बौनी कांग्रेस और नेहरु-गाँधी

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दुर्भाग्य से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ऐसे अतिवादी बुद्धिजीवियों और नेताओं के प्रभाव में आ गई जिनके लिए हिंदुत्व, उसकी विचारधारा के सभी नेता और संगठन दुश्मन हैं। भारत जोड़ो यात्रा के सलाहकार और रणनीतिकार भी यही लोग हैं। इसीलिए राहुल गांधी अपने भाषणों में कहते हैं कि एक और आरएसएस और सावरकर की विचारधारा है तो दूसरी ओर कांग्रेस की। वह तोड़ते हैं और हम जोड़ते हैं। यह भी कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस के प्रतीक सावरकर हैं।

सावरकर, हिन्दू नामकरण और वामपंथी झूठा प्रचार

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वामपंथी जिस चीज़ का तोड़ नहीं निकाल पाते तो उस चीज़ को वह झूठ साबित करने में लग जाते है और उस विषय पर इतने झूठे साहित्य का निर्माण करते है कि आम जनता में वह झूठ अपनी पैठ सत्य के रूप में बना लेता है। हिटलर की प्रचार संस्था से इन्होंने यही सीखा है। ठीक ऐसा ही झूठ इन्होंने हिन्दू नामकरण को लेकर गढ़ा। वामपंथी कहते है कि यह शब्द ही स्वयं में झूठ है। इसके जन्म के कोई पुख़्ता सबूत नहीं। सावरकर कहते है कि "यह बात सिद्ध करने के लिए हम लोगों के पास पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। संस्कृत के 'स' अक्षर का हिंदू तथा अहिंदू प्राकृत भाषाओं में 'ह' ऐसा अपभ्रंश हो जाता है। सप्त का हप्त हो जाना केवल हिंदू प्राकृत भाषा तक ही सीमित नहीं है। यूरोप की भाषाओं में इस प्रकार की बात देखी जाती है। सप्ताह को हम लोग 'हफ्ता' कहते हैं। यूरोपिय भाषाओं में 'सप्ताह' 'हप्टार्की' बन जाता है। संस्कृत का 'केसरी' शब्द हिंदी में 'केहरी' में परिवर्तित हो जाता है।" 

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