सावरकर, हिन्दू नामकरण और वामपंथी झूठा प्रचार

वामपंथी जिस चीज़ का तोड़ नहीं निकाल पाते तो उस चीज़ को वह झूठ साबित करने में लग जाते है और उस विषय पर इतने झूठे साहित्य का निर्माण करते है कि आम जनता में वह झूठ अपनी पैठ सत्य के रूप में बना लेता है। हिटलर की प्रचार संस्था से इन्होंने यही सीखा है।
ठीक ऐसा ही झूठ इन्होंने हिन्दू नामकरण को लेकर गढ़ा। वामपंथी कहते है कि यह शब्द ही स्वयं में झूठ है। इसके जन्म के कोई पुख़्ता सबूत नहीं।
सावरकर कहते है कि “यह बात सिद्ध करने के लिए हम लोगों के पास पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। संस्कृत के ‘स’ अक्षर का हिंदू तथा अहिंदू प्राकृत भाषाओं में ‘ह’ ऐसा अपभ्रंश हो जाता है। सप्त का हप्त हो जाना केवल हिंदू प्राकृत भाषा तक ही सीमित नहीं है। यूरोप की भाषाओं में इस प्रकार की बात देखी जाती है। सप्ताह को हम लोग ‘हफ्ता’ कहते हैं। यूरोपिय भाषाओं में ‘सप्ताह’ ‘हप्टार्की’ बन जाता है। संस्कृत का ‘केसरी’ शब्द हिंदी में ‘केहरी’ में परिवर्तित हो जाता है।”
【सावरकर समग्र,खण्ड-नौ, पृष्ठ-36】
गौरतलब है वैदिक आर्यों को ‘हिंदू’ नाम से ही जाना जाता था। जिस तरह पारसी हमें हिंदू नाम से जानते थे, उस समय के कई विकसित देश और राष्ट्र भी हमें हिंदू नाम से ही पहचानते थे और सम्बोधित करते थे।
“सप्तसिंधु के इस प्रदेश में यहां-वहां फैली हुई आदिवासियों की टोलियां उनकी भाषाओं में भाषा शास्त्र के इस नियम के अनुसार आर्यों को ‘हिंदू’ नाम से ही जानते होंगे। जो प्राकृत भाषाएँ सिंधुओं की तथा उनसे खून का रिश्ता जोड़नेवाली जातियों की नित्य व्यवहार में बोली जानेवाली भाषाएँ बन गई, और जब हिंदी प्राकृत भाषाओं का जन्म भी वैदिक संस्कृत भाषा से ही हुआ था, तब से यही सिंधु अपने आपको हिंदू कहलवाते थे।”
【सावरकर समग्र,खण्ड-नौ, पृष्ठ-37】
हमारे पूर्वजों ने इस राष्ट्र का नामकरण सप्तसिन्धु और हप्त हिंदू के जैसा किया था। दुनिया के उस समय के राष्ट्र हमें सिंधु यानी हिन्दू के नाम से ही सम्बोधित करते थे।
सावरकर आगे कहते है कि ” ‘भारतवर्ष’ नाम मूल नाम ‘सिंधु’ का पूरी तरह से स्थान नहीं ले सका। जिसकी गोद में खेलकर हमारे पूर्वजों ने जीवन-अमृत पिया, उस सिंधु नदी के पवित्र नाम के प्रति उसके मन में जो प्रेम था, वह कदापि कम नहीं हुआ। आज भी सिंधु के तीरों पर स्थित प्रांत को ‘सिंधु’ नाम से ही जाना जाता है।”
【 सावरकर समग्र,खण्ड-नौ, पृष्ठ-41】
भारत को भारत, इंडिया और हिन्दुस्थान के नाम से विश्व के राष्ट्र जानते है पर हमारी सीमा के नज़दीक वाले देशों ने हमारा पुराना नाम यानी हिन्दुस्थान (हिंदुओ का स्थान) अपने दैनिक प्रयोग में जारी रखा। पारसी, यहूदी, ग्रीक इन राष्ट्रों ने भी हमे सदैव से सिंधु यानी हिन्दू के तौर पर ही पुकारा।
अंत में सावरकर के ही शब्दों में ” पारसी हम लोगों को हिंदू नाम से संबोधित करते। ‘हिन्दू’ शब्द का कठोर उच्चारण त्यागकर ग्रीक हमें ‘इंडोज़’ कहते और इन्हीं ग्रीकों का अनुकरण करते हुए संपूर्ण यूरोप तथा बाद में अमेरिका भी हम लोगों को ‘इंडियंस’ ही कहने लगे। हिंदुस्थान में बहुत दिनों तक भ्रमण करनेवाला चीनी यात्री  ह्वेनसांग हम लोगों को ‘शिंतु’ अथवा ‘हिंदू’ ही कहता है।”
【सावरकर समग्र,खण्ड-नौ, पृष्ठ-42】
राकेश जॉन
#सावरकर_तप

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