राष्ट्रीय पटल पर हिमाचल का उदय

Continue Readingराष्ट्रीय पटल पर हिमाचल का उदय

सन 1965 में पंजाब के पुनर्गठन के प्रश्न पर पुनर्विचार हुआ। इसके कारण पंजाब और हिमाचल के पहाड़ी लोगों को अपनी उस चिर-पोषित मांग पर फिर से बल देने का मौका मिल गया जिसे उन्होंने राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष रखा था। अन्तत: उनका संघषर्र् रंग लाया और 1 नवम्बर 1966 को हिमाचल प्रदेश को विस्तृत आकार दिया गया।

हिमालय में कम से कम होना चाहिए इंसानी दखल 

Continue Readingहिमालय में कम से कम होना चाहिए इंसानी दखल 

केदारनाथ की यह तस्वीर 1882 में भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने खींची थी। यह वो समय था जब हमारे पुरखे मानते थे कि ऊंचे हिमालयी इलाकों में इंसानी दखल कम से कम होना चाहिए। वे ऐसा मानते ही नहीं थे, अपने बरताव में इसका ख्याल भी रखते थे। जैसे बुग्यालों में…

हिमालय का महाकुंभ नंदादेवी राजजात

Continue Readingहिमालय का महाकुंभ नंदादेवी राजजात

नन्दा उनकी कैलाश शिव को ब्याही हुई लाडली कन्या है, जिसे अपने ससुराल औघड़ शिव के यहां असह्य कष्टों और अभावों का सामना करना पड़ता है। मायके की याद में दुखी नन्दा कैलाश में रोती-बिलखती कहती है ’मेरी सभी बहनों में से मैं अप्रिय हूं इसलिए मुझे बिवाया गया इस वीरान कैलाश में। वह भी भांग फूंकने वाले जोगी को, जिसके लिए भांग घोटते-घोटते मेरे हाथों पर छाले पड़ गए हैं।’ नन्दा के प्रति लोक मानस का यही भाव संसार इसे लोकप्रियता की ऊंचाइयों तक लेे जाता है।

प्रकृति और अध्यात्म के सम्मोहन का सिद्ध मंत्र उत्तराखंड

Continue Readingप्रकृति और अध्यात्म के सम्मोहन का सिद्ध मंत्र उत्तराखंड

भारत देश विविधताओं से भरा है। अपने देश में भाषा, धर्म, जातियों-उपजातियों तथा रहन-सहन की विभिन्नता के कारण भारत के सामाजिक रंग-रूप में भी विविधता दिखाई देती हैं। भारत कि यह वैविध्यपूर्ण लोक संस्कृति ही भारतीय जीवन शैली की परिचायक है। रीति-रिवाज, वेशभूषा, खानपान, लोक-कथाएं, लोक-देवता, मेले, त्योहार, मनोरंजन के…

End of content

No more pages to load