राष्ट्रीय पटल पर हिमाचल का उदय

सन 1965 में पंजाब के पुनर्गठन के प्रश्न पर पुनर्विचार हुआ। इसके कारण पंजाब और हिमाचल के पहाड़ी लोगों को अपनी उस चिर-पोषित मांग पर फिर से बल देने का मौका मिल गया जिसे उन्होंने राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष रखा था। अन्तत: उनका संघर्ष रंग लाया और 1 नवम्बर 1966 को हिमाचल प्रदेश को विस्तृत आकार दिया गया।

15 अप्रैल सन 1948 में जब 30 पहाड़ी रियासतों के विलय से मुख्य आयुक्त के प्रान्त के रूप में हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ तो उस समय इसका क्षेत्रफल केवल 27,018 वर्गकिलोमीटर था। ये तीस रियासतें थीं- बाघल, बघाट, बलसन, रामपुर बुशहर, खनेटी, देलठ, बेजा, भज्जी, दरकोटी, धामी, जुब्बल, रावीं, ढाढी, क्यौंथल, ठियोेग, कोटी, घूण्ड, मधान, रतेश, कुम्हारसेन, कुनिहार, कुठाड़, मांगल, महलोग, शांगरी, थरोच, मण्डी, चम्बा, सुकेत और सिरमौर। 15 अप्रैल सन 1948 को इन तीस रियासतों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद प्रशासनिक तौर पर इस प्रदेश को क्रमश: चम्बा, महासू, मण्डी और सिरमौर चार जिलों में बांटा गया।

सन् 1952 मेें क्षेत्र में किसी परिवर्तन के बिना यह प्रदेश भाग ‘ग’ का राज्य बना और इसका अपना एक मंत्री-मण्डल बन गया। सन 1954 में 1,163 वर्ग किलोमीटर में फैले भाग ‘ग’ के राज्य बिलासपुर को भी इसमें मिला दिया गया। बिलासपुर के इसमें मिलने से इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग किलोमीटर हो गया। बिलासपुर हिमाचल का पांचवां जिला बना।

सन् 1956 में जब राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट (अध्यक्ष श्री फजल अली ने असहमति प्रकट की) में बहुमत से हिमाचल को पंजाब में मिलाने की सिफारिश की गई तो प्रदेश हित में लोग और लोकप्रिय मंत्री मण्डल में उनके प्रतिनिधि एक बहुत बड़े बलिदान अर्थात अपनी विधान सभा को त्यागने के लिए तैयार हो गए। जब कोई विकल्प नहीं रहा तो हिमाचल, पंजाब का हिस्सा बनने के बजाय 1 नवम्बर 1956 को उपराज्यपाल नामक प्रशासक के अधीन एक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बन गया। संवैधानिक रूप से प्रदेश उसी अवस्था में पहुंच गया जहां से 1948 में यात्रा शुरू की थी। लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने इस घोषणा से कि ‘हिमाचल को वहां के लोगों की भावनाओं के विरूद्ध पंजाब में विलीन नहीं किया जाएगा’, पहाड़ के लोगों को एक आशा की किरण दिखाई दी।

15 अप्रैल 1957 को हिमाचल प्रदेश में ‘टेरीटोरियल कौंसिल’ बनी जिसमें प्रजा के प्रतिनिधि लिए गए। यह कौंसिल ‘जिला बोर्ड’ के समान थी। ठाकुर कर्मसिंह ने इस क्षेत्रीय परिषद के अध्यक्ष के रूप में शपथ ली। प्रशासन के सभी अधिकार उप-राज्यपाल के पास थे। मजबूर होकर पहाड़ के लोगों को शान्तिमय संघर्ष का मार्ग अपनाना पड़ा। अन्तत: केन्द्रीय गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 29 मार्च 1961 को लोक सभा में एक वक्तव्य दिया- ‘यह उचित होगा कि हम अधूरे मन से निर्णय लें और जन-प्रतिनिधियों को जो अधिकार देना चाहते हैं दे ताकि वे अपना प्रशासन स्वयं चला सके।’ केन्द्रीय गृहमंत्री के इस वक्तव्य ने लोगों में आशा की एक किरण जगा दी। सन 1962 के चुनाव के बाद ‘हिमाचल क्षेत्रीय परिषद’ ने फिर से केन्द्र सरकार से प्रदेश के लिए लोकप्रिय सरकार की मांग की। लोगों की भावनाओं को देखते हुए लोकसभा ने 1963 में गवर्नमेंन्ट ऑफ यूनियन एक्ट 1963 पास किया। इसके फलस्वरूप जुलाई 1963 को हिमाचल प्रदेश क्षेत्रीय परिषद को हिमाचल प्रदेश विधान सभा में परिवर्तित कर दिया गया। एक जुलाई 1963 को हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर लोकप्रिय मंत्री मण्डल की स्थापना हुई। डॉ. यशवंत सिंह परमार दूसरी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इस संघर्ष के फलस्वरूप सात वर्ष बाद इस दु:खद अध्याय का अन्त हुआ।

इससे पूर्व आर्थिक विकास और अन्य राजनैतिक कारणों को ध्यान में रखते हुए एक मई 1960 को महासू जिले का आकार छोटा करके इसकी चीनी तहसील में रामपुर के चौदह गांव को मिलाकर एक नये जिले का निर्माण किया गया।

सन 1965 में पंजाब के पुनर्गठन के प्रश्न पर पुनर्विचार हुआ। इसके कारण पंजाब और हिमाचल के पहाड़ी लोगों को अपनी उस चिर-पोषित मांग पर फिर से बल देने का मौका मिल गया जिसे उन्होंने राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष रखा था। अन्तत: उनका संघषर्र् रंग लाया और 1 नवम्बर 1966 को कांगड़ा, कुल्लू, शिमला और लाहौल-स्पीती के जिलों और अम्बाला का नालागढ़ सब डिविज़न, जिला होशियारपुर की ऊना तहसील के कुछ भाग और जिला गुरदासपुर के डलहौजी और बकलोह क्षेत्रों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश को विस्तृत आकार दिया गया। इस प्रकार हिमाचल प्रदेश का आकार बढ़कर 55,658 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 34,24,323 हो गई।

हिमाचल प्रदेश के पुनर्गठन के बाद प्रशासनिक आधार पर दस जिलों बिलासपुर, चम्बा, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, लाहौल-स्पिती, महासू, मण्डी, शिमला, सिरमौर।

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार के नेतृत्व मे हिमाचल प्रदेश सरकार ने पूर्ण राज्य की मांग केन्द्रीय सरकार से उठाई। 31 जुलाई 1970 ईसवी को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोकसभा में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की। तत्पश्चात 18 दिसम्बर 1970 ईसवी में ‘स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश एक्ट 1971’ पेश किया गया। 25 जनवरी 1971 ईसवी को श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वंय शिमला आकर यहां के ऐतिहासिक रिज़ मैदान में भारी बर्फबारी के बीच हजारों की संख्या में उपस्थित हिमाचलवासियों के समक्ष हिमाचल प्रदेश का भारत के अठारहवें पूर्ण राज्य के रूप में उद्घाटन किया। हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद प्रदेश के विभिन्न भागों से जिलों के पुनर्गठन की मांग उठने लगी। प्रशासकीय तौर पर भी यह महसूस किया जाने लगा था। परिणामस्वरूप 29 अगस्त 1972 को जिलों के पुनर्गठन को मंत्रीमण्डल ने अनुमोदित कर दिया।

हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश एक पूर्ण राज्य है, इसलिए सरकार ने दो नये जिले बनाने का निश्चय किया ताकि सभी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके। इस प्रकार महासू जिला की सोलन और अर्की तहसीलें निकालकर तथा शिमला जिला की कण्डाघाट और नालागढ़ तहसीलोें को सोलन और अर्की में मिलाकर नये जिले सोलन का गठन किया गया जिसका मुख्यालय सोलन रखा गया। दूसरा जिला हमीरपुर बनाया गया। इस जिले में कांगड़ा की हमीरपुर और बड़सर तहसीलों को शामिल किया गया। इस तरह हिमाचल प्रदेश के मानचित्र पर दो नये जिले सोलन और हमीरपुर उभरकर सामने आए और कुल जिलों की संख्या 12 हो गई।

28 नवम्बर 1972 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमण्डल की बैठक में निर्णय लिया गया कि परवाणू में योजनाबद्ध तरीके से एक औद्योगिक नगर स्थापित किया जाए और यदि आवश्यक हुआ तो इस सिलसिले में एक उपयुक्त विधान लाया जाए। इसके अतिरिक्त मंत्रिमण्डल ने पांवटा साहिब (सिरमौर), संसारपुर टैरेस, नगरोटा बगवां, डमटाल कन्द्रोड़ी (कांगड़ा), नालागढ़, बरोटी वाला-परवाणू (सोलन जिला), बिलासपुर (बिलासपुर), मैहतपुर (ऊना) और छोलटू (किन्नौर) में भी औद्यौगिक नगर बसाए जायेंगे। यह डॉ. परमार की दूरदर्शिता थी कि आज परवाणू, बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़ सोलन जनपद में विश्वस्तर पर अपनी पहचान बनाए हुए स्थापित औद्योगिक नगर है।

उपरोक्त शासनाध्यक्षों के कुशल नेतृत्व में प्रदेश ने चहुंमुखी विकास किया है। जनता के द्वार तक सुविधा उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से सरकार ने प्रदेश भर में प्रशासनिक अमले को सुद़ृढ़ करने के लिए अब तक 12 जिलों के अन्तर्गत 74 उपमण्डल, 109 तहसीलें, 65 उप-तहसीलें और 82 विकास खण्ड कार्यालय स्थापित किए हैं। प्रदेश के 12 जिलों में कुल 3226 पंचायतें गठित की गई हैं, जो क्रमश: सोलन में 211, शिमला में 363, सिरमौर में 228, किन्नौर में 65, मण्डी में 469, बिलासपुर में 151, हमीरपुर में 229, ऊना में 234, कांगड़ा में 748, चम्बा में 283, कुल्लु में 204 और लाहौल-स्पिती में 41 पंचायतें (लाहौल-28 और स्पिती-13) गठित की गई हैं ।

–  नेम चंद ठाकुर 

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