जागरूक उपभोक्ता ही है विकास का प्रतीक

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अर्थ चिंतन की पूंजीवादी अवधारणा में यह स्वीकार्य था कि समाज में उपभोक्ता ही राजा होते हैं क्योंकि इनकी रूचि, पसंद और मांग ही पूरी अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में निर्णायक होती है। इस स्थिति को अमेरिका के विलियम हेराल्ड हट ने पहली बार 'उपभोक्ता की सार्वभौमिकता' शब्द से…

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस: ग्राहक जानें अपना अधिकार

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  इस दुनिया में इस्तेमाल करने योग्य लाखो सामान है जिसे कंपनी या फिर कारखानों में तैयार किया जाता है और फिर उसे आम जनता अपने इस्तेमाल के लिए खरीदती है। सामान को तैयार करने वाले की लागत और लाभ से लेकर दुकानदार के लाभ के साथ सभी पैसे खरीदने…

मोबाइल कंपनियों की बढ़ती मनमानी!

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भारतीय टेलिकॉम सेक्टर को आप दो भागो में बांट कर देख सकते हैं पहला भाग 2016 के पहले का है जबकि दूसरा भाग 5 सितंबर 2016 के बाद का है। अब आप शायद यह सोच सकते हैं कि आखिर किस आधार पर इस तरह का बंटवारा किया जा रहा है।…

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