राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस: ग्राहक जानें अपना अधिकार

 

इस दुनिया में इस्तेमाल करने योग्य लाखो सामान है जिसे कंपनी या फिर कारखानों में तैयार किया जाता है और फिर उसे आम जनता अपने इस्तेमाल के लिए खरीदती है। सामान को तैयार करने वाले की लागत और लाभ से लेकर दुकानदार के लाभ के साथ सभी पैसे खरीदने वाले से लिए जाते है लेकिन कभी कभी खरीदार से अधिक पैसे लिए जाते हैं या फिर उन्हें गलत सामान दे दिया जाता है। इस तरह से खरीदार के अधिकारों का हनन होता है और उसे पूरी कीमत देने के बाद भी उचित सामान नहीं मिल पाता है। ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ ऐसे ही खरीदारों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें जागरूक करता है क्योंकि जब तक उपभोक्ता जागरूक नहीं होगा तब तक उनके अधिकारों का हनन होता रहेगा। 

9 दिसंबर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रयास से उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पारित कराया गया और इसी के बाद से हर साल 24 दिसंबर को उपभोक्ता संरक्षण दिवस मनाया जाने लगा। वर्ष 1986 में पारित होने के बाद से इसमें कई बार सुधार किया गया और फिर 24 दिसंबर 2000 से इसे हर वर्ष मनाया जाने लगा। हालांकि कानून में सुधार की प्रक्रिया इसके बाद भी चलती रही। भारत सरकार की तरफ से 24 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण दिवस’ के रूप में घोषित कर दिया गया। उपभोक्ता को जागरूक करने का काम सिर्फ देशभर में नहीं बल्कि पूरे विश्व में चलता है। हर वर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। ग्राहक आंदोलन के इतिहास में इस दिन को सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है।     

वर्तमान में सभी उपभोक्ता शिक्षित हैं और इंटरनेट के जरिए कोई भी जानकारी कम समय में प्राप्त कर सकते है जबकि इससे पहले उपभोक्ता को किसी भी वस्तु के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी और वह गलत सामान भी खरीद लेता था इसलिए सरकार का यह दायित्व था कि सभी लोगों को जागरूक किया जाए और उनके अधिकारों की रक्षा की जाए। उपभोक्ता को हमेशा खरीदारी करते समय उस वस्तु की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना चाहिए, इस विशेष दिन पर सरकारी और निजी क्षेत्र के लोगों द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जाता है और सभी को उपभोक्ता की दृष्टि से जागरूक किया जाता है इस दिन यह बताने की कोशिश की जाती है कि हम किस तरह से किसी वस्तु के बारे में जानकारी ले सकते हैं और उसकी शिकायत कहां कर सकते हैं। 

वर्ष 1947 में ग्राहक पंचायत की स्थापना हुई और उसके बाद से यह पता चला कि ग्राहकों से लूटमार की जा रही है। ग्राहकों को बुरी तरह से ठगा जा रहा है। ग्राहक विवश है वह इसकी शिकायत कहीं नहीं कर सकता है क्योंकि तब तक देश में ऐसे अपराध के लिए कानून ही नहीं बना था, मजबूरी में व्यापारी के बल से दबे रहना ही ग्राहक का काम होता था। व्यापारी वर्ग में एकता थी वह मनमानी करते और कभी किसी ग्राहक ने विरोध किया तो उस पर अनेक आरोप लगाकर उससे मारपीट करने लगते। ग्राहक पंचायत ने इसका विरोध शुरु किया और पहली बार वर्ष 1977 में लोनावाला में एक बैठक कर सरकार से ग्राहक अधिकार सुरक्षा कानून, मंत्रालय और न्यायालय की मांग की। इस ग्राहक संरक्षण कानून का मसौदा किसी अधिकारी ने नहीं बल्कि ग्राहक पंचायत के सदस्यों ने तैयार किया था जिसे बाद में कानून का रूप दिया गया। 

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