75 वर्षों में राजनीति का हस्र

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किसी समय विचारधारा की बात करने वाले नेता धीरे-धीरे जाति,संप्रदाय, क्षेत्र आदि के आधार पर राजनीति करने लगे तथा अपराधियों तक का वर्चस्व हमारी पूरी राजनीतिक व्यवस्था में स्थापित हुई। इसका परिणाम देश अभी तक भुगत रहा है। जनता के लिए लुभावने नारे, मुफ्तखोरी से वोट लेने का चलन, पार्टियों में जातीय, सांप्रदायिक तथा धनबल और बाहुबल के आधार पर टिकटों का वितरण आदि विकृतियां पैदा हुईं। शुद्ध विचारधारा पर काम करने वाली पार्टियां भी इन दोषों से पूरी तरह वंचित नहीं रह पाई। कई पार्टियां मर खप गई तो कई नाम मात्र की रह गई। उदाहरण के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक समय भारत में मुख्य विपक्षी दल था। आज सभी कम्युनिस्ट पार्टियां मिलाकर भी केंद्र की राजनीति में कहीं नहीं है। इससे अवधारणा एवं व्यवहार व्यवहार में ऐसी अनेक विकृतियां पैदा हुईं जो आज भयावह रूप में हमारे सामने विद्यमान हैं।

एक नेता के दो जगह से चुनाव लडऩे पर रोक लगनी आवश्यक

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गौरतलब हो कि चुनाव आयोग भी राजनेताओं को एक सीट एक नेता को लेकर चुनाव प्रक्रिया में सुधार की बात कर रहा है। मार्च 2015 में विधि आयोग ने चुनाव सुधार पर अपनी 211 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में विधि आयोग ने उम्मीदवारों को एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने से रोकने ओर निर्दलीय उम्मीदवारों को प्रतिबंधित करने की बात कही है। इसके लिए धारा 33 (7) में संशोधन करने की बात कही गई है।

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