स्वत्व और स्वाभिमान से प्रकाशित होने का पर्व है गुरु पूर्णिमा

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गुरु पूर्णिमा अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर यात्रा और स्वाभिमान को जाग्रत कराने वाले परम् प्रवर्तक के लिये नमन् दिवस । जो हमें अपने आत्मवोध, आत्मज्ञान और आत्म गौरव का भान कराकर हमारी क्षमता के अनुरूप जीवन यात्रा का मार्गदर्शन करें वे गुरु हैं । वे मनुष्य भी हो सकते हैं, कोई प्रतीक भी, अथवा संसार में कोई अन्य प्राणी भी हो सकते हैं ।

गुरु की सीख

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शिष्य ने गुरु से कहा कि गुरुजी मैं आपसे अच्छी मूर्तियां बनाता हूं, मेरी मूर्तियां ज्यादा कीमत में बिकती हैं, फिर भी आप मुझे ही सुधार करने के लिए कहते हैं।

गुरु भी रहते हैं योग्य शिष्य की खोज में

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ऐसा नहीं है कि केवल शिष्य को सद्गुरु की तलाश रहती है, बल्कि गुरु को भी एक योग्य शिष्य की उतनी ही आवश्यकता होती है ताकि वह अपने उच्च मानकों को समाज के सम्मुख प्रतिपादित कर सके। इतिहास में ऐसे असंख्य उदाहरण बिखरे पड़े हैं जो इस ओर समाज का ध्यान खींचते हैं और मार्गदर्शन भी करते हैं।

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