स्वामी विवेकानंद औऱ वामपंथी बौद्धिक जगत की खोखली दलीलें

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रामकृष्ण परमहंस के चिंतन से उलट उनके संबोधन में 'हिन्दू' शब्द पर आपत्ति करने वाले लेखक यह भूल जाते है कि विवेकानंद का फलक वैश्विक था और वे अपने अनुयायियों को मठ में नही विदेशों में संबोधित करते है।जाहिर है भारत से बाहर वे वेदांत या उपनिषदों की बात करते है तो इसके लिए उन्हें हिन्दू धर्म ही बोलना होगा क्योंकि यह इसी विराट चिंतन और जीवन पद्धति का हिस्सा है।

गुरु बिन भ्रम ना जासी

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गुरु के सत्संग के प्रहार से व्यक्ति के जीवन में प्रकाश आता है। लेकिन वर्तमान में शिक्षा और अध्यात्म व्यापार बन गया है, ऐसे में नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने वाले गुरुओं की तलाश करना हमारे लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। सच्चे गुरु की आज भी उतनी ही दरकार है, जितनी पहले थी।

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