प्राचीन मंदिरों में विज्ञान

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वैज्ञानिकों ने तकनीकी जांच में पाया कि इन पत्थरों को बनाने के लिए एक आयताकार खाई तैयार की गई, जिसमें ग्रेनाइट पत्थर का चूर्ण, गन्ने से निर्मित चीनी (केन शुगर), नदी की रेत और कुछ अन्य यौगिक डालकर एक मिश्रण तैयार किया। इस मिश्रण से नींव भरी गई और  विभिन्न आकार के छिद्रयुक्त पत्थर तैयार किए गए।

तिबारी बाखली का महत्व

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काश...मैं भी धन्नासेठ बनता व अपनी मध्यकालीन भारतीय शैली में अपने गांव में विशाल तिबारी का निर्माण करवाकर अपने अतिथियों को आमंत्रित कर उनकी आंखें चुन्धियाता..। काश...कि हमारी सरकार विलेज टूरिज्म के बढावे में तिबारी/बाखली प्रमोट करती तो हमारी मध्यकालीन भारतीय सभ्यता ज़िंदा रहती व भौगोलिक व पर्यावरणीय दृष्टि से हम सुकून महसूस करते।

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