शौर्य और पराक्रम की परम्परा
राजस्थान में शौर्य और पराक्रम की परम्परा प्राचीन काल से है। स्वतंत्रता के बाद भी जो चार युद्ध हुए उनमें राजस्थान के श्ाूरमा शौर्य और पराक्रम में सबसे आगे रहे।
राजस्थान में शौर्य और पराक्रम की परम्परा प्राचीन काल से है। स्वतंत्रता के बाद भी जो चार युद्ध हुए उनमें राजस्थान के श्ाूरमा शौर्य और पराक्रम में सबसे आगे रहे।
‘आल्हा’ अथवा ‘आल्हखण्ड’ बारहवीं शताब्दी में रचित दो बनाफर राजपूत वीरों आल्हा और ऊदल की वीरता का महाकाव्य है। इस महाकाव्य के रचइता जगनायक या जगनिक महोबा के चंदेल राजा परमाल के दरबारी कवि एवं दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज के प्रसिद्ध दरबारी कवि चंदबरदाई के समकालीन थे।