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हमर छत्तीसगढ़!!

हमर छत्तीसगढ़!!

by श्वेता दामले
in पर्यटन, प्रकाश - शक्ति दीपावली विशेषांक अक्टूबर २०१७, सामाजिक
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छत्तीसगढ़ की विशेषता है यहां का अपनापन, यहां का आदर-आतिथ्य, यहां की संस्कृति, यहां का भोजन, यहां के वन, यहां के वनवासी, यहां का मौन, यहां का शांत जीवन, यहां के व्रत और यहां के उत्सव। इसलिए पधारो हमर छत्तीसगढ़!!
१ नवंबर २००० यही वह तारीख है जब, एक नए राज्य छत्तीसगढ़ का जन्म हुआ था। केवल १७ वर्ष पहले जन्मे इस राज्य में अछूते पर्यटन स्थलों की भरमार है। आदिवासी और ग्राम्य संस्कृति से सराबोर इस राज्य में आना, किसी स्वर्ग में आने के समान है। शहरी आपाधापी से दूर… मौन, शांति और आनंद के लिए, छत्तीसगढ़ से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता। छत्तीसगढ़ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर तो है ही, साथ ही साथ, तीर्थस्थलों और मंदिरों का सौंदर्य भी देखने लायक है।
स्वागत है…पर्यटकों और घुमक्कड़ों के स्वर्ग छत्तीसगढ़ में!!
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं। रायपुर शहर नौवीं शताब्दी से अस्तित्व में है। कभी दक्षिण कौशल राज्य के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र, इतिहास और संस्कृति का केंद्र रहा है। हैहय, मौर्य और सातवाहन राजवंशों ने अनेक शतकों तक यहां राज किया। रायपुर में मुख्य आकर्षण है, यहां का विवेकानंद सरोवर। स्वामी विवेकानंद की ३७ फीट ऊंची मूर्ति को देख कर ही मन श्रद्धा से भर जाता है। इस मूर्ति को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में शामिल किया गया है।
रायपुर से ही ९० किमी की दूरी पर है गंगरेल बांध। धमतरी जिले में महानदी पर बने इस बांध की ऊंचाई ३० मीटर है। यह बांध पूरे वर्ष भर छत्तीसगढ़ की पानी की जरूरत को पूरा करता है। साथ ही रायपुर से ८५ किमी की दूरी पर सिरपुर नामक अत्यंत सुंदर स्थान है। यहां पर कई ऐतिहासिक अवशेष देखने को मिलते हैं। कहते हैं कि ये अवशेष नालंदा से भी पुराने हैं। अधिकतर निर्माण ५वीं से लेकर ८वीं शताब्दी का है। महानदी के किनारे बसे इस स्थल पर पहुंचने के बाद, यहां की शांति मन मोह लेती है।
लाल ईंट से बने यहां के लक्ष्मण मंदिर का निर्माण ७वीं शताब्दी में किया गया था। इसी स्थान पर एक संग्रहालय भी है जहां शैव, वैष्णव, बौद्ध और जैन पंथों से संबंधित मूर्तियों को संग्रहित किया गया है।
रायपुर से ६० किमी पर स्थित है चंपारण्य, जो कि स्वामी वल्लभाचार्य का जन्म स्थान है। उन्होंने वल्लभ पंथ की स्थापना की थी। चंपारण्य में एक सुंदर और भव्य मंदिर है, साथ ही हर साल यहां जनवरी-फरवरी के महीने में चंपारण्य मेला लगता है। देश भर के वैष्णव इस मेले में भाग लेने यहां आते हैं।
छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति का करीब से दर्शन करने का सब से सुंदर अवसर होता है बस्तर का दशहरा उत्सव। बस्तर में लगभग महीनाभर चलने वाले इस उत्सव में रंगारंग कार्यक्रमों और सांस्कृतिक क्रियाकलापों की भरमार होती है। आदिवासी जनजीवन और उनसे जुड़ी छोटी-छोटी प्रथाओं को करीब से देखना, एक बहुत सुंदर अनुभव होता है।
छत्तीसगढ़ के सुदूर दक्षिण में जगदलपुर ज़िला है। यहां पर प्रसिद्ध चित्रकूट जल प्रपात है। भारत का नायग्रा कहा जाने वाला यह वॉटरफॉल ३० मीटर की ऊंचाई से गिरता है। वर्षा के दिनों में इसकी चौड़ाई लगभग १५० मीटर हो जाती है। यह भारत का सब से चौड़ा जलप्रपात है।
जगदलपुर से ही ३० किमी दूरी पर एक और जलप्रपात है जिसका नाम है तीरथगढ़। यह जलप्रपात, कई सारे छोटे-छोटे प्रपातों में विभाजित हो जाता है। करीब ३०० फीट की ऊंचाई से गिरते हुए इस वॉटरफॉल को देख कर मन मोहित हो जाता है। इस प्रपात के आसपास, प्राचीन हिंदू मंदिरों के कई भग्नावशेष हैं। ये अवशेष १००० ई. के आसपास के बताए जाते हैं। कांगेर नदी को एक जलप्रपात के रूप में बहते हुए देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है।
आइये, अब चलते हैं छत्तीसगढ़ के खजुराहो को देखने के लिए। सुप्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर को छतीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। कबीरधाम जिले में स्थित यह शिव मंदिर प्राचीन हिंदू पद्धति से बनाया गया है। इस मंदिर का निर्माण ७वीं से १२हवीं शताब्दी के बीच किया गया था। नाग राजवंश के राजा रामचंद्र ने इसका निर्माण शुरू करवाया था। इस मंदिर की बनावट कोणार्क के सूर्य मंदिर और खजुराहो के मंदिरों से मिलती-जुलती है। यहां पहुंचने के लिए रायपुर से नियमित बस चलती हैं। रायपुर से यह स्थान ११६ किमी की दूरी पर है।
इसके साथ ही साथ छत्तीसगढ़ में कई मंदिर और पवित्र स्थल हैं। छत्तीसगढ़ में आने के बाद इन प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर जाना आवश्यक है। इसी श्रृंखला में दो महत्वपूर्ण मंदिर हैं। एक तो डोंगरगढ़ का प्रसिद्ध मां बामलेश्वरी देवी का मंदिर और दूसरा रतनपुर स्थित महामाया माता का मंदिर। ये दोनों ही स्थान अद्भुत हैं। राजनंदगांव से ४० किमी की दूरी पर स्थित डोंगरगढ़, छत्तीसगढ़ वासियों के लिए श्रद्धा का प्रतीक है। यह मंदिर १६०० फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां शारदीय नवरात्रि में और साथ ही चैत्र नवरात्रि में भी मेला लगता है, जिसका आनंद उठाने के लिए पूरे राज्य भर से श्रद्धालु यहां आते हैं।
रतनपुर, बिलासपुर शहर से २५ किमी पर स्थित है। यहां महामाया माता का प्रसिद्ध मंदिर है। यह दक्षिण-पूर्व भारत की वास्तुकला में सब से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कभी कलचुरी राजाओं की राजधानी रहे रतनपुर में, एक सहस्त्राब्दी पुराने भग्नावशेष आज भी देखने को मिलते हैं।
बिलासपुर से ही ३० किमी की दूरी पर एक और महत्वपूर्ण मंदिर है – तल। जहां तक मूर्तिकला-विषयक पर्यटन का प्रश्न है, यह स्थान छत्तीसगढ़ की शान है। ऐतिहासिक वास्तुकला, पुरातात्विक महत्व की इमारतों को देखने में जिन्हें दिलचस्पी है, उन्हें यह स्थान बहुत भाएगा। यहां स्थित शिव मंदिर को देवरानी-जेठानी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां के स्तंभों पर की गई आकर्षक नक्काशी, देखते ही मन मोह लेती है। यह स्थान, इस प्रकार के अनेकों अवशेषों से भरा पड़ा है। इतिहासकार और पुरातत्वविद अब भी इस पर अनुसंधान कर रहे हैं। इन मंदिरों और अवशेषों का स्रोत जानना अब तक भी संभव नहीं हो सका है। धरती के गर्भ से अब भी इस प्रकार के अवशेष यहां निकल रहे हैं, जिन्हें सहेज कर रखा जा रहा है। देवरानी मंदिर में खुदाई के दौरान एक अद्भुत रुद्रशिव की मूर्ति प्राप्त हुई है। विभिन्न जीवों और पशु-पक्षियों से इस मूर्ति के अंग बनाए गए हैं। भगवान् शिव के अनेकों रूप हम देखते हैं किन्तु यह मूर्ति हमें शिव के नए आयाम की ओर ले जाती है। शिव का अनादि-अनंत होना और कल्पनातीत होना इस मूर्ति में साफ़ दिखाई देता है। मूर्तिकार की अद्भुत कल्पना-शक्ति और भगवान् शिव का ये रूप देख, व्यक्ति अवाक रह जाता है। इस मूर्ति की ऊंचाई २.५४ मी. और चौड़ाई १ मीटर है। शरीर के विभिन्न अंगों को सात मानव-सिरों के माध्यम से दर्शाया गया है। इस मूर्ति को देख कर छत्तीसगढ़ में आना सार्थक हो जाता है।
कांगेर के जंगलों में कुटुमसर की गुफाएं हैं। ये विश्व की दूसरी सब से बड़ी प्राकृतिक गुफाएं हैं। जगदलपुर से ४० किमी की दूरी पर ये गुफाएं स्थित हैं। जमीनी सतह से ३८ मीटर गहरी इन गुफाओं में जाते समय एक अद्भुत अनुभव होता है। गाइड के हाथों का टॉर्च अगर गलती से भी कुछ क्षणों के लिए बंद हो जाए, तो आंखों के सामने होता है गहरा काला घुप्प अंधेरा!!
इसी प्रकार तीरथगढ़ जल प्रपात के पास हैं कैलाश गुफाएं। यह भी चूना पत्थर की गुफाएं हैं। पानी और चूने से बनी सुंदर नक्काशी देखने में बड़ी सुंदर लगती है। छत से चूना और पानी की बूंदों से बना पत्थर का नुकीला स्तंभ और पानी की बूंदों से फर्श पर बने चूने के पत्थर का नुकीला स्तंभ इन दोनों स्तंभों के बीच से गुफा में प्रवेश करते हुए जाना अद्भुत है। कहते हैं कि एक इंच चूना पत्थर को बनने में कम से कम छह हजार वर्ष लगते हैं। कांगेर की गुफाआ में चूने के इन ऊंचे-ऊंचे स्तंभों को देख कर व्यक्ति दंग रह जाता है।
सिंघनपुर की गुफाओं में हमें शिला-चित्रा के दर्शन होते हैं। लाल रंग से बनाए गए ये शिला-चित्र (रॉक पेंटिंग) ई. पू. ३०००० के आसपास के हैं। ये गुफाएं रायगढ़ से २० किमी पर हैं। सीताभागरा गुफाओं का पुरातात्विक महत्व है। कहा जाता है कि सीताजी वनवास के दौरान इसी गुफा में रहीं थीं। जोगिमिरा गुफाओं के अंदर भी अनेक शिला-चित्र मिलते हैं। इसमें मानव, पशु, पक्षी और फूलों के चित्र हैं।
वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान:
प्रकृति ने छत्तीसगढ़ पर दिल खोल के अपनी कृपा बरसाई है। राज्य का ४४% क्षेत्र वनों से आच्छादित है। छत्तीसगढ़ को देश में तीसरा सब से अधिक वन-क्षेत्र वाला राज्य होने का सम्मान मिला है। वन छत्तीसगढ़ की शान हैं। छत्तीसगढ़ में ३ राष्ट्रीय उद्यान और १२ वन्यजीव अभयारण्य हैं।
कांगेर राष्ट्रीय उद्यान २०० वर्ग किमी में फैला हुआ है। इस पर्णपाती वन में कई प्रकार के वन्य-जीव और पशुपक्षी पाए जाते हैं। सागौन, साल और बांस के पेड़ों से भरपूर इस वन में बाघ, हिरन, चीतल, तेंदुए, सांबर, चिंकारा, काले हिरन आदि अनेक पशु हैं। नारंगी चोंच वाली बस्तर मैना इस वन का मुख्य आकर्षण है। यह वन कई स्तनधारी और सरीसृपों का घर है।
साथ ही सब से बड़ा आकर्षण का केंद्र है अचानकमार बाघ अभयारण्य। यहां पर बंगाल बाघ अच्छी संख्या में हैं। यहां पर भरपूर जैव-विविधता देखने को मिलती है। अन्य प्राणियों के साथ यहां फ्लाइंग स्क्वीरल, इंडियन जायंट स्क्वीरल, सांबर, चीतल, जंगली कुत्ते और चिंकारा भी देखने को मिलते हैं। लगभग १५० प्रजातियों के प्राणी हम यहां देख सकते हैं।
इसी प्रकार भोरमदेव, बारनवापारा, भैरमगढ़ आदि अनेक सुंदर वन्य-जीव अभयारण्य हैं। हर अभयारण्य की कुछ न कुछ विशेषता है।
बारनवापारा वन्य-जीव अभयारण्य लगभग २४५ वर्ग किमी में फैला हुआ है। यह छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित है। १९७६ में उसे संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया। यहां पर अनेक वनस्पतियां, पेड़-पौधे देखने को मिलते हैं। सागौन, साल और शीशम के वृक्ष यहां बहुतायत में हैं। वन्य-जीवों में चिंकारा, हिरन, लोमड़, चौसिंगा, नीलगाय, चीते और बाघ पाए जाते हैं। बाघ निरंतर अपना स्थलांतर करते रहते हैं। जिसके कारण चीते और तेंदुए अब इस जंगल में अधिक देखने को मिलते हैं। अधिकतर पर्यटक यहां चीते को देखने के लिए आते हैं; क्योंकि आम तौर पर चीते का दर्शन होना, बाघ के दर्शन से भी अधिक कठिन होता है। ऊंचे-ऊंचे बांस के पेड़, हवा के साथ लहराते दरख्त, छोटे-छोटे कीड़े मकोड़ों की आवाज, मेंढकों का टर्राना और साथ में पक्षियों का चहचहाना, छोटे-बड़े जलाशय, गोल-गोल छोटे पत्थर, जगह-जगह देखने को मिलते हैं। प्रकृति की चित्रकारी अगर देखना हो तो यहां के तोता को देख रंगों में इतनी विविधता भी हो सकती है, हम कभी सोच भी नहीं सकते। तोता की लम्बाई देख कर ही हम अवाक रह जाते हैं। साथ में मोर, चील, कठफोड़वा भी हैं।
इन अभयारण्यों की सैर एक अविस्मरणीय अनुभव दे जाती है। लगभग सभी अभयारण्य में ठहरने के लिए बहुत ही अच्छी व्यवस्थाएं हैं। प्रकृति के सुंदर नजारों के बीच कॉटेजेस बनाए गए हैं। इन कॉटेजेस में रहना और यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना बहुत ही अद्भुत अनुभव है।
छत्तीसगढ़ एक अनोखा राज्य है। हमारे देश में हर राज्य की विशेषता है। छत्तीसगढ़ की विशेषता है यहां का अपनापन, यहां का आदर-आतिथ्य, यहां की संस्कृति, यहां का भोजन, यहां के वन, यहां के वनवासी, यहां का मौन, यहां का शांत जीवन, यहां के व्रत और यहां के उत्सव। यहां के निवासी प्रेमी तो हैं ही… इसलिए हर कोई यहां यही कहता प्रतीत होता है ….पधारो हमर छत्तीसगढ़ !!

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