मैराथन धावक -संदीप परब

 सिंधुदुर्ग नगरीः महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के सुपुत्र संदीप परब रानबांकुली गांव के निवासी हैं. उन्होंने हाल में ही विश्व में अत्यंत दुर्गम मानी जानेवाली अल्ट्रा मैराथन में से एक अफ्रीका के पर्वतीय इलाके की ८९ किमी की प्रतियोगिता जीत ली है. यह स्पर्धा इसलिए मुश्किल होती है क्योंकि १२ घंटे में उसे पूरा करना होता है और आंतरिक चरण भी विशिष्ट कालावधि में पूर्ण करने होते हैं. इस तरह की सफलता पानेवाले सिंधुदुर्ग के वे पहले व्यक्ति हैं.
परब फिलहाल व्यवसाय के कारण वाशी (नवी मुंबई) में रहते हैं. उनकी कम्पनी मलनिस्सारण के क्षेत्र में कार्यरत है तथा वर्तमान में कम्पनी के देशभर में ५०० प्लांट स्थापित हैं. वे शीघ्र ही सिंधुदुर्ग के वेंगुर्ला और मालवण में भी मलनिस्सारण प्लांट लगानेवाले हैं. सुबह टहलते समय मैराथन में भाग लेने की इच्छा उत्पन्न हुई और उम्र के ५०वें वर्ष में भी उन्होंने ८९ किमी की मैराथन १२ घंटे में पूरी की.
सबसे पुरानी मैराथन
इस प्रतियोगिता के बारे में परब ने बताया कि, कॉमेड्स मैराथन दुनिया की सबसे पुरानी मैराथन है और प्रति वर्ष डरबन से पीटरमईट्सबर्ग के ८९ किमी अंतर के लिए आयोजित की जाती है. डरबन से पीटरमईट्सबर्ग जाते समय चढ़ाई का यह मार्ग समुद्री सतह से १७०० मीटर ऊंचाई तक पहुंचता है. इस तुलना में पीटरमईट्सबर्ग से डरबन आनेवाला मार्ग ढलान का मार्ग है. इन दो मार्गों पर यह स्पर्धा प्रति वर्ष बारी-बारी ली जाती है. २०१७ की मैराथन डरबन से पीटरमईट्सबर्ग के चढ़ाई के मार्ग पर थी.
चुनौती स्वीकार की
उन्होंने बताया कि सन २०१२ से अब तक मैंने २८ पूर्ण मैराथन में भाग लिया है. इनमें विश्व के सातों खंड़ों का समावेश है. अंटार्कटिका खंड में -२० डिग्री सेल्शियस जैसी बेहद कड़ाके की सर्दी में हुई मैराथन भी इनमें शामिल है. इसके अगले चरण के रूप में अल्ट्रा मैराथन का बेहतर विकल्प मौजूद था. इसके लिए कॉमेड्स मैराथन सबसे अच्छा विकल्प था. इसमें मैं ढलान की स्पर्धा का चयन करता लेकिन इस वर्ष वह चढ़ाई की प्रतियोगिता थी. चढ़ाई पर दौड़ने में मैं कमजोरी महसूस करता था, इसलिए इसके पूर्व मैंने ऐसी स्पर्धाएं टाल दी हैं. अन्य लोगों ने भी सलाह दी कि चढ़ाई की मैराथन आरंभ करने की दृष्टि से उचित नहीं है. मुश्किल बातों को करने का मेरा हमेशा प्रयास होता है और इसीलिए मैंने यह चुनौती स्वीकार की.
प्रशिक्षक के बिना प्रशिक्षण पूर्ण
प्रतियोगिता की तैयारी के बारे में परब ने कहा कि इसके पूर्व की मैराथन के लिए मैंने कोई विशेष तैयारी नहीं की थी. इसलिए कि उनमें कोई समय-सीमा नहीं थी. इस मैरेथान में समय के बारे में कड़े नियम हैं और बीच के चरण भी निर्धारित समय-सीमा में ही पार करने होते हैं. इनमें भाग लेनेवाले लगभग २५ फीसदी दौड़ाक चढ़ाई की स्पर्धा शुरू होते ही विफल हो जाते हैं. इसलिए मेरे लिए यह कठिन चुनौती थी. जनवरी २०१७ से किसी प्रशिक्षण के बिना ही मैंने अपना प्रशिक्षण शुरू किया. इसके लिए पारसिक हिल को चुना. यहां मैं कुल समय में से ८०% समय दौड़ लगाते रहा. फरवरी के अंत में कॉमेड्स मैराथन में दौड़ने का सपना लगभग छोड़ ही दिया था. क्योंकि चढ़ाई पर दौड़ना मुश्किल हो रहा था. इसी तरह फरवरी में मैं जिस गति से दौड़ रहा था, उससे स्पर्धा में अपेक्षित गति बढ़ाना संभव नहीं लग रहा था. सौभाग्य से मुंबई कॉमेड्स ग्रुप ने गुजरात के सिल्वासा के पर्वतीय इलाके में ५६ किमी अंतर की प्रतियोगिता आयोजित की थी. इस प्रतियोगिता को मैंने सफलता से पूरा किया. बाद में अधिक अंतर की अन्य स्पर्धाएं भी सहजता पूरी कीं और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. चार माह में लगभग एक हजार किमी अंतर पार किया और इस स्पर्धा को पूरा करने का आत्मविश्वास जागा.
प्रतियोगिता का रोमांचक अनुभव
प्रतियोगिता का प्रत्यक्ष रोमांचक अनुभव विशद करते हुए उन्होंने कहा कि, प्रतियोगिता की शुरुआत अच्छी हुई. ५ घंटे ५० मिनट में आधा अंतर पार कर लिया. यद्यपि मैं पांच मिनट पीछे चल रहा था, फिर भी चढ़ाई की प्रतियोगिता के लिए वह ठीक ही था. किंतु बाद में गरमाहट बढ़कर तापमान ने ३० डिग्री सेल्शियस का स्तर पार कर लिया और सभी दौड़ाकों की गति धीमी पड़ गई. मैंने जब अंतिम चरण में प्रवेश किया, तब मेरे पास केवल ५५ मिनट बचे थे. अतः हर किमी का अंतर सात मिनट में पूरा करना आवश्यक था. पिछले ७९ किमी में हर किमी के लिए औसत ८.१ मिनट की अवधि ली थी. अतः यह कठिन चुनौती थके पांवों के सहारे पूरी करनी थी. फिर भी जितना संभव हो उसनी अधिक गति से दौड़ने का निर्णय किया. इस तरह अगले पांच किमी में हर किमी पर ३० सेकंड बचाए. अंतिम दो किमी अंतर के लिए मेरे पास १८ मिनट बचे थे. इसलिए पैरों में अकड़न से बचने के लिए कुछ धीमी गति से दौड़ना जारी रखा. ११ घंटे ५८ मिनट याने समय-सीमा से केवल दो मिनट पूर्व मैंने यह प्रतियोगिता पूरी की. प्रतियोगिता में शामिल १९ हजार प्रतियोगियों में से १४ हजार प्रतियोगी इस स्पर्धा को पूरा कर सके.
बड़े भाई को पदक समर्पित
मेरे अभिभावकों को इस प्रतियोगिता के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन मेरा छोटा भाई कॉमेड्स एप पर मेरी प्रगति की टोह ले रहा था. इसके अलावा कई लोग प्रतियोगिता पर नजर रखे हुए थे. अंतिम चरण में शायद यह प्रतियोगिता मैं १२ घंटों में पूरी नहीं कर पाऊंगा, यह अनुमान व्यक्त किया जा रहा था इसलिए तनाव बढ़ रहा था. जब प्रतियोगिता पूरी हुई तब सब ने चैन की सांस ली. मैंने अपना पदक अपने बड़े भाई मिलिंद को समर्पित कर दिया है.
दुर्घटनाएं टालने के लिए करेंगे जनप्रबोधन
परब ने बताया कि अब तक सातों खंड़ों की २९ मैराथन पूरी की हैं, जिनमें अंटार्कटिका खंड की मैराथन का भी समावेश है. अगले मैराथन में भाग लेते समय रात में सुरक्षित वाहन यात्रा के बारे में जागरुकता निर्माण करने का मानस है. अगली सभी प्रतियोगिताओं में मैं विशिष्ट उद्देश्य के लिए ही भाग लूंगा. रात में वाहन चलाने के कारण होनेवाली दुर्घटनाओं के बारे में जनप्रबोधन करने की इच्छा है. मेरे परिवार के तीन लोगों को मैं ऐसी क्षणिक नींद के कारण खो चुका हूं. अन्य के बारे में ऐसा न हो ऐसी इच्छा है.

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