मानव सेवा ही ईश सेवा

ईश्वर की उपासना करने के लिए कहीं बाहर जाने कीआवश्यकता नहीं है। मानव की सेवा करना ही सच्ची ईश्वर भक्ति है। इस सूत्र को अपनी कार्यपद्धति में अपनानेवाली श्रीमती सुमन तुलसियानी का जन्म जैसे समाजसेवा के लिए ही हुआ है। लक्ष्मी व सरस्वती का वरदहस्त प्राप्त करने वाली यह महिला समाज के उन लोगों को आर्थिक सहयोग प्रदान करती है जो बीमार हैं या शैक्षणिक क्षेत्र में प्रगति करना चाहते हैं, परंतु आगे बढ़ने के लिए आर्थिक रूप से अक्षम हैं। श्रीमती सुमन तुलसियानी जीवन में स्वास्थ्य और शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण मानती हैं। उनका कहना है कि देश की प्रगति तभी हो सकती है, जब लोग स्वस्थ और शिक्षित होंगे। अपने धन को किसी ऐसे व्यक्ति को देना जिसे उसकी आवश्यकता है, यह प्रवृत्ति ही मनुष्य को समाज में आदरणीय बनाती है।
अपने परिवार की संपूर्ण जिम्मेदारियां को निभाने के साथ-साथ समाज के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर जब श्रीमती तुलसियानी ने अपने काम की शुरूआत की तब से लेकर आज तक उनका यह सफर निरंतर चला रहा है। उनके पास मदद की गुहार लेकर आनेवाले लोगों को यह विश्वास होता है कि वे खाली हाथ नहीं लौटेंगे। सुमनजी का व्यवहार इन लोगों के साथ वैसा ही होता है जैसा कि एक मां का अपने बच्चों के साथ। जिस तरह बच्चे के बीमार होने पर मां व्याकुल होती है और सफलता पर खुश होती है, उसी तरह सुमनजी भी इन लोगों के साथ व्यवहार करती हैं। अपनेपन की भावना के साथ कहे गए उनके शब्द लोगों को धैर्य देते हैं और उनमें जीवन की कठिनाइयों से लड़ने का साहस जागृत करते हैं। सुमनजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कई युवाओं ने अपने शैक्षणिक जीवन में ऐसी बुलंदियों को हासिल किया है जिस पर उन्हें गर्व महसूस होता है। ये युवा भी अपनी उन्नति को श्रीमती तुलसियानी को अर्पित करते हुए उन्हें ग्रीटिंग कार्ड, पत्र भेजते हैं, जिन्हें वे सहेजकर रखती हैं। लोगों से बनाए हुए इस आत्मिक रिश्ते को ही वे अपनी जमापूंजी मानती हैं।
जन्म, शिक्षा व मुंबई आगमन
श्रीमती तुलसियानी का जन्म ९ अक्टूबर, १९३७ को गोवा में हुआ। स्व. श्री मुकुंद कुवेलकर और श्रीमती द्वारका कुवेलकर की इस सबसे छोटी कन्या ने अपनी विद्यालयीन शिक्षा न्यू ईरा हाईस्कूल, मारगांव (गोवा) से पूर्ण की और सन् १९५२ में उनका मुंबई आगमन हुआ। मुंबई के गिरगांव स्थित उपनगर में चिकित्सक समूह हाईस्कूल में उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई की और एस. एस. सी. परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने सोफिया कॉलेज में प्रवेश लिया। यहां उन्होंने मनोविज्ञान और फ्रेंच का प्रमुख रूप में अध्ययन किया। कला संकाय की स्नातक उपाधि उन्हें फ्रेंच में प्राप्त हुई जिसमें उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उन्हें पेरिस के सर्बोन विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षावृत्ति भी दी गई; परंतु कुछ निजी कारणों के कारण उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
विवाह एवं पारिवारिक जीवन
सन् १९५९ में श्रीमती सुमन का विवाह रमेश तुलसियानी से हुआ। सुमनजी बताती हैं कि उनका वैवाहिक जीवन अत्यंत आनंदपूर्वक रहा। उन्होंने परिवार की सभी जिम्मेदारियों को संभाला। नई भाषा सीखने की ललक होने के कारण एक साल के भीतर ही वे उत्तम सिंधी वक्ता बन गईं। सुमनजी की दो बेटियां हैं। दोनों ने ही विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त की है, परंतु मां के संस्कार दोनों के मन पर इस तरह अंकित हैं कि उन्होंने विदेश में बसने की बजाय भारत लौटना स्वीकारा और अब भारत में ही अपनी सेवाएं दे रहीं हैं। बेटियों के विवाह और अपनी नवासियों को संभालने की जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद सुमनजी ने अपना समय पूर्ण रूप से समाजकार्य को देने का निश्चय किया, हालांकि पहले भी पारिवारिक व्यस्तता के साथ ही वे समाजसेवा भी करती थीं।

एस. आर. टी. सी. टी. की स्थापना
सन १९८९ में उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर सुमन रमेश तुलसियानी चैरिटेबल ट्रस्ट (एस. आर. टी. सी. टी.) की स्थापना की। रोगियों और विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित होनेवाली इस संस्था के माध्यम से सुमनजी दिनभर में लगभग पचास से सत्तर हजार रुपये दान करती हैं। मुंबई के जे. जे. हॉस्पिटल, सायन हॉस्पिटल, नायर हॉस्पिटल आदि में भर्ती होने वाले मरीजों को मदद करने का कार्य यह ट्रस्ट करता है। इन तीनों अस्पतालों में ट्रस्ट के कर्मचारी रहते हैं जो लोगों को सुमनजी के पास भेजते हैं। सुमनजी उन मरीजों की रिपोर्ट पढ़कर और मरीजों के परिवारवालों से बात करके यह तय करती हैं कि उन्हें कितनी आर्थिक मदद दी जाए। वे मरीजों के परिवारवालों से एक फार्म भरवाती हैं जिस पर बीमारी के डिटेल्स, डॉक्टर के हस्ताक्षर और ट्रस्ट से संबंधित कर्मचारी के हस्ताक्षर होते हैं। इससे किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी की गुंजाइश नहीं होती और लोगों को दो-तीन दिन में राशि चेक के रूप में मिल जाती है।
सुमनजी मरीजों को केवल तात्कालिक सहायता ही प्रदान नहीं करतीं; बल्कि कुछ गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए कई वर्षों तक उनकी सहायता चलती रहती है। इसका एक उत्तम उदाहरण है प्रियंका शेडगे। लाखों में से किसी एक व्यक्ति को होने वाली बिल्सन डिजीज से पीड़ित इस रोगी का इलाज सन् २००८ तक वाडिया हॉस्पिटल, परेल में हुआ। यह बच्चों का अस्पताल है। यहां से प्रियंका के इलाज के लिए आर्थिक मदद मिलती थी, परंतु जब प्रियंका सोलह वर्ष की हुई तब अस्पताल के नियमों के अनुसार उसे मदद मिलनी बंद हो गई। प्रियंका की बीमारी पर होने वाला खर्च इतना अधिक है कि उसके पिता को अपनी जमीनें तक बेचनी पड़ीं और वे मदद की गुहार लेकर सुमनजी के पास आए थे। अब अपने ट्रस्ट के माध्यम से प्रियंका की मदद कर रही है।
श्रीमती तुलसियानी अपने ट्रस्ट के माध्यम से निम्न कार्य करती है।
* महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले मे रा. स्व. संघ के विचारधारा से चलने वाले डॉ. हेडगेवार रुग्णालय मे सहयोग।
* गरीब और जरूरतमंद बच्चों को छात्रवृत्ति।
* सोफिया कॉलेज के विज्ञान विभाग को आर्थिक सहायता।
* सूचना तकनीकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक विद्यार्थियों को ऋण के रूप में सहायता।
* केशव सृष्टि में राम रत्न विद्या मंदिर के लिए होस्टल निर्माण।
* गोवा में स्नेह मंदिर नामक वृद्धाश्रम में आर्थिक सहायता आदि।
इसके अलावा एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट, रमाकांत पांडा कार्डियोलॉजी सेंटर और नर्मदा किडनी असोसिएशन से भी संबद्ध सुमनजी एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं और सृष्टि की रचना करने वाले ईश्वर में उनकी गहरी आस्था है। घर पर गणपति पूजन और नवरात्रि के साथ-साथ वे ब्रह्मकुमारी संस्थान और इस्कान संस्थान से जुड़ी हैं। पंढरपुर की यात्रा पर पैदल जाने वाले श्रद्धालुओं को भी सुमनजी भोजन की आपूर्ति करवाती हैं।
अपने इन सारे कामों को करने का उत्साह और स्फूर्ति का स्रोत पूछे जाने पर वे कहती हैं कि उन्हें अपने कार्यों की प्रेरणा अपने बड़े भाई व गुरु डॉ. सदाशिव कुवेलकर से मिली। वे प्रख्यात चिकित्सक हैं और पिछले ६५ वर्षों से भी अधिक समय से इस पेशे में कार्यरत हैं। अपनी दिनचर्या में शामिल संतुलित आहार और रोज सुबह एक घंटे टहलने को वे अपने अच्छे स्वास्थ्य का कारक मानती हैं।
इसी नियमितता के कारण उन्होंने जनवरी २०१५ में मुंबई में हुई मेराथॉन रेस में हिस्सा लिया। अपनी आयु के सात दशक पूर्ण होने के बाद भी उस आयु वर्ग के लिए मर्यादित दूरी को उन्होंने पूर्ण किया। घर-परिवार के लोगों को चिंता होने के बााद भी उन्होंने इस रेस में हिस्सा लिया, क्योंकि वे एक विशेष उद्देश्य से यहां आई थीं। वह विशेष उद्देश्य था रा. स्व. संघ द्वारा संचालित डॉ. हेडगेवार रुग्णालय द्वारा समाज के लिए किए जा रहे विविध कार्यों को लोगों तक पहुंचाना, जिससे अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें। पूरी मेराथॉन में उन्होंने डॉ. हेडगेवार रुग्णालय के बैनर को अपने हाथों में उठाए रखा, जिससे हर किसी को इसकी जानकारी प्राप्त हो सके।
समाज के प्रति अपनी इसी कर्तव्य भावना और सेवा के लिए उन्हें सन २०१५ का ‘ग्लोबल अवार्ड’ भी मिला। ‘ग्लोबल सिंधी काउंसिल‘ की ओर से प्रति वर्ष चिकित्सा, समाजसेवा, व्यवसाय इत्यादि क्षेत्रों में ये अवार्ड दिए जाते हैं। इस वर्ष समाजसेवा एवं मानवप्रेम के क्षेत्र में इस अवार्ड के लिए श्रीमती सुमन तुलसियानी को चुना गया। ‘आमी गोयंकर’ संस्था के माध्यम से उन्हे पुरस्कार से सन्मानित किया गया।
श्रीमती तुलसियानी जैसा व्यक्तित्व समाज में एक मिसाल के रूप में देखा जा सकता है। उम्र के इस पडाव पर भी उनका उत्साह कायम है। उनका युवाओं से आग्रह है कि वे उनका साथ देने के लिये आगे आएं।

Leave a Reply