मा नव पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली घटक है। पर्यावरण से परे उसका अस्तित्व नहीं है। पर्यावरण के अनेक घटकों के कारण वह निर्मित हुआ तथा अनेक कारणों से उसकी क्रियाएं प्रभावित होती रहती हैं। वह पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण उपभोक्ता है।
मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही मानव प्रकृति पर आधारित रहा है। उसीसे वस्त्र, आवास, भोजन की प्राथमिक आवश्यकताएं उसकी पूरी होती रही हैं। भारत में पर्यावरण से जुड़ाव वैदिक काल से रहा है। ऋषि – मुनियों द्वारा किए जाने वाले यज्ञ का प्रधान कारण वायुमंडल को स्वच्छ रखना ही था। हड़प्पा संस्कृति पर्यावरण से ओतप्रोत थी। भारतीय जनमानस सदा से ही क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा में दिव्य शक्ति की अनुभूति करके इन प्राकृतिक तत्वों को देवतुल्य मानता रहा है। इसीलिए प्राचीन संस्कृतियां नदियों के किनारे ही उत्पन्न हुईं और पुष्पित – पल्लवित भी हुईं।
भारत में ब्रिटिश राज्य से पूर्व तक पर्यावरण प्रेम और संरक्षण देखा जाता रहा है। किंतु अंग्रेजों ने आर्थिक लाभ एवं वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर पर्यावरण को नष्ट करना प्रारंभ किया। विनाशकारी दोहन नीति के कारण पिछले १०० – १५० सालों में पारिस्थितिकी असंतुलन दिखने लगा। स्वतंत्रता बाद भी पाश्चात्य प्रभाव के कारण औद्योगिकीकरण तथा जनसंख्या विस्फोट के कारण भारत में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण उत्पन्न हुए। वर्तमान समय में पूरी पृथ्वी पर जीवन के बुनियादी आधार हवा, पानी और मिट्टी पर खतरा मंडरा रहा है।
आज से ३०० साल पहले रूसो ने भी प्रकृति की ओर लौटने का आवाहन किया था। पर्यावरण एवं प्रकृति की रक्षा हेतु खेजड़ली ने आत्मोत्सर्ग किया। पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिपको आंदोलन एवं एप्पिको आंदोलन प्रसिद्ध रहा है। पर्यावरण संरक्षण हेतु सन १९७२ में स्टॉकहोम सम्मेलन ने भारत सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। फलत : भारत ने सन १९७६ में अपने संविधान में संशोधन कर दो महत्वपूर्ण अनुच्छेद ४८ ए तथा ५१ ए ( जी ) जोड़ें। अनुच्छेद ४८ ए राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार सुनिश्चित करें तथा देश के वन तथा वन्य जीवन की रक्षा करें। अनुच्छेद ५१ ए ( जी ) नागरिकों को कर्तव्य प्रदान करता है कि वे प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें तथा उसका संवर्धन करें और सभी जीवधारियों के प्रति दयालु रहें।
पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने व प्रदूषण को नियंत्रित बनाए रखने के लिए सरकार ने समय – समय पर अनेक कानून व नियम बनाए हैं। इस समय देश में पर्यावरण की सुरक्षा हेतु २०० से भी ज्यादा छोटे – बड़े कानून हैं। पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण हेतु कानूनी उपाय किए जा रहे हैं तथापि इसे सुरक्षित, संरक्षित एवं संवर्धित करने के लिए समाज के सभी अंगों के मध्य आवश्यक समझ एवं सामंजस्य के द्वारा सामूहिक प्रयास किया जाना जरूरी है। भारत संसार के उन प्रमुख देशों में से एक है जिनके संविधानों में पर्यावरण का विशेष उल्लेख है। इन पर्यावरणीय कानून एवं नियमों के नाम इस प्रकार है –
जल प्रदूषण संबंधी कानून
१ . रीवर बॉर्ड्स एक्ट १९५६ जल ( प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण ) अधिनियम १९७४ जल उपकर ( प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण ) अधिनियम १९७७, पर्यावरण ( संरक्षण ) अधिनियम १९८६।
२ . भूमि प्रदूषण संबंधी कानून फैक्ट्रीज एक्ट १९४८ इंडस्ट्रीज ( डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन ) अधिनियम १९५१।
३ . इंसेक्टिसाइड्स एक्ट १९६८।
४ . अर्बन लैंड ( सीलिंग एंड रेगुलेशन ) एक्ट १९७६।
५ . वायु प्रदूषण संबंधी कानून।
६ . फैक्ट्री एक्ट १९४८।
७ . प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम १९८१।
८ . पर्यावरण संरक्षण अधिनियम १९८६।
वन तथा वन्य जीव संबंधी कानून –
१ . फारेस्टस कंजर्वेशन एक्ट १९६०।
२ . वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट १९७२।
३ . फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट १९८०।
४ . वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट १९९५।
५ . जैव विविधता अधिनियम २००२।
पर्यावरण पर कानून होने पर भी भारत में पर्यावरण की स्थिति काफी गंभीर है। नाले, नदियां, झीलें औद्योगिक कचरे से भरी हैं। गंगा सहित सहायक नदियां नाला बनी हैं। वन क्षेत्रों में कटाव बढ़ने से देश के कई भागों में बाढ़ एक राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है।
१२हवीं पंचवर्षीय योजना २०१२ – १७ में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को १७, ८७४ करोड़ रुपए आवंटित किए गए। इस योजना में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन हेतु निम्न लक्ष्य रखे गए थे। यथा –
१ . वर्ष २०१७ तक भूजल संदूषण की संभावना व १२ अभिज्ञात संदूषित स्थलों ( खतरनाक रसायन एवं अपशिष्ट ) का आकलन एवं उपचार।
२ . वर्ष २०१७ तक नदियों के ८० % अधिक दूषित भागों और वर्ष २०२० तक १०० प्रदूषित भागों की सफाई।
३ . सभी राज्य वर्ष २०१७ तक शहरी क्षेत्रों में राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों ( एनएएक्स ) को पूरा करें।
४ . वर्ष २०२० तक वर्ष २००५ के स्तर पर २० से २५ % कटौती लक्ष्य के अनुरूप सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) का उत्सर्जन तीव्रता को कम करना।
५ . वर्ष २०१७ तक ० . १ मिलियन हेक्टेयर नम भूमि देशी झीलों जल निकायों को पुनर्जीवित करना।
६ . पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी के बेहतर प्रबंधन के कारण स्वास्थ्य स्थिति में सुधार, नीति निर्माण और पर्यावरणीय शासन हेतु प्रवर्तन संस्थाओं में सुधार प्रारंभ करना।
७ . स्वच्छ प्रौद्योगिकी का प्रसार और अंगीकरण नियम विनियम का सुदृढ़ीकरण और सुधार, नीति निर्माण और पर्यावरणीय शासन हेतु प्रवर्तन संस्थानों में सुधार करना।
८ . सिंचाई और सामरिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन ( ईआईए ) की ओर बढ़ना।
९ . अवरोधों के विनिमय द्वारा सभी नदियों में पारिस्थितिकीय बहाव सुनिश्चित करना ताकि नदी बेसिनों के संरक्षण हेतु विधिक ढांचा और प्रबंधन कार्य नीति बनाकर नदीय पारी प्रणालियों का संरक्षण।
१० . शहरी परियोजनाओं जैसे स्वच्छता, लैंड स्कैपिंग, केंद्रीय वातानुकूलन आदि में उपचारित सीरीज के पुनर्चक्रण और पुनः प्रयोग को बढ़ावा देना।
वर्तमान केंद्रीय सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु २ अक्टूबर वर्ष २०१४ को स्वच्छता अभियान पूरे भारतवर्ष में शुरू किया गया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट का निष्कर्ष है कि मोदी सरकार ग्रीन क्लीयरेंस, वनारोपण, स्वछता अभियान एवं गंगा सफाई पर पिछली सरकारों से काफी बेहतर काम कर रही है। इसके साथ ही औद्योगिकी प्रदूषण का मानकीकरण व उसकी निगरानी पहले से बेहतर हुई है। वर्तमान सरकार ने वर्ष २०१९ तक हर गांव, शहर कस्बे को साफ रखना, टॉयलेट बनवाना, पीने के पानी की व्यवस्था तथा कचरा निस्तारण की व्यवस्था करना आदि का लक्ष्य रखा है।
इस योजना हेतु १ . ९६ लाख करोड़ खर्च का अनुमान है। इसके साथ ही वर्ष २०१७ में भी उत्तर प्रदेश में नवगठित सरकार भी पर्यावरण संरक्षण हेतु कृतसंकल्पित है। इसके तहत निम्न कार्य प्रस्तावित हैं यथा –
१ . गंगा तट पर बसे बड़े शहरों – वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर में जल गुणवत्ता का मूल्यांकन।
२ . उत्तर प्रदेश में स्वच्छता एवं पर्यावरण रक्षा हेतु शौचालय निर्माण के लिए ३२ . ५५ करोड़ रुपए मंजूर।
३ . उत्तर प्रदेश के शहरों में स्वच्छ भारत मिशन के लिए रु . १००० करोड़ की घोषणा की गई है।
४ . उत्तर प्रदेश में वन क्षेत्र में वृद्धि हेतु किसानों की भूमिका में वृद्धि की गई है।
केंद्रीय एवं उत्तर प्रदेश बजट में पर्यावरण के मुद्दों पर चिंता व्यक्त की गई है – जिनमें गंगा को प्रदूषण मुक्त करने से लेकर नमामि गंगे मिशन, भारत को स्वच्छ बनाने की दिशा में स्वच्छ भारत कोष की स्थापना, कार्बन उत्सर्जन को रोकना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करना आदि सम्मिलित है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में राजनीतिक विश्लेषक प्रो . कौशल किशोर मिश्रा का कहना है कि स्वतंत्र भारत में पहली बार केंद्र व राज्य में संस्कृतिवादी सरकार आई है जो भारतीय परंपरा में संस्कृति और पर्यावरण के अंतर्संबंधों को खूब समझती हैं। भारतीय संस्कृति पूर्ण रुप से पर्यावरणवादी है। यज्ञ हो या चींटी को आटा खिलाना पर्यावरण को एकसाथ जोड़ने से भारतीय संस्कृति में पर्यावरण की सुरक्षा हो पाई थी। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ है तो केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार है। उपर्युक्त दोनों महापुरुषों ने पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन का बीड़ा उठाया है जिन्होंने जल, जंगल एवं परिवार को संरक्षित करने के लिए कमर कसी है। स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे अभियान, वृक्षारोपण जैसे विषय व्यापक कार्यकर्मों द्वारा भारत में पर्यावरण को सुधारने का प्रयास किया है। यद्यपि संतुलित पर्यावरण स्वच्छता लाने में समय लगेगा लेकिन संकल्प द्वारा पर्यावरण को सुधारा जा सकता है।
पिछले ३ वर्षों के कालखंड में नरेंद्र मोदी सरकार ने पर्यावरण जागरूकता रूपी कार्य संस्कृति को बढ़ावा दिया है जिसका परिणाम भी दिखाई दे रहा है। यह नरेंद्र मोदी युग का सकारात्मक संदेश है। यह भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन हेतु किए जाने वाली कार्य – संस्कृति का सकारात्मक संदेश है। पिछले वर्ष की तुलना में अभी – अभी नरेंद्र मोदी सरकार ने जो सकारात्मक कदम उठाए हैं उससे यही संकेत जा रहा है कि भारत भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में पर्यावरण को लेकर नेतृत्व करते हुए दिखाई दे रहा है। आज नरेंद्र मोदी सरकार पर्यावरण के एक – एक पक्षों को आगे बढ़ा रही है। प्रधान मंत्री नरेंद्र भाई मोदी के भाषणों व सोशल मीडिया में यह सब देखा जा सकता है। सचमुच भारत, भारतीय संस्कृति का पर्यावरणवादी विश्व संचार हो रहा है। आज भारत में जो नेतृत्व हैं उससे भारत विश्व गुरु की ओर बढ़ने का संकेत देता दिखाई दे रहा है।
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