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प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना की सफलता

by सायली साटम
in पर्यावरण, सामाजिक, स्वच्छ भारत अभियान पर्यावरण विशेषांक -२०१८
1
भा रत में घर संभालने तथा खाना पकाने की जिम्मेदारी महिलाएं ही वहन करती हैं। चूंकि आज भी देश की ४० प्रतिशत जनसंख्या को खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध नहीं है इसलिए घर के भीतर के वायु प्रदूषण से अन्य सदस्यों के बनिस्बत उनके स्वास्थ्य पर ज्यादा असर पड़ता है। आधे – अधूरे ढंग से जलने वाले वाले पारंपरिक चूल्हे और मुसीबत पैदा करते हैं। इनसे होने वाला प्रदूषण आसपास के वातावरण को भी दूषित करता है। विश् ‍ व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अस्वच्छ ईंधन से उतना ही धुआं महिलाओं के शरीर के अंदर जाता है, जितना एक घंटे में ४०० सिगरेट जलाने से पैदा होता है। इसी असुविधा के मद्देनजर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘ प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना ’ के तहत २०२० तक लगभग ८ करोड़ एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने का लक्ष्य रखा है तथा गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को स्वच्छ समाधान देने की दिशा में काफी हद तक सफलता भी प्राप्त कर ली है।

मई २०१६ से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से शुरू की गई इस योजना में ५ करोड़ एलपीजी के कनेक्शन ग्रामीण महिलाओं के लिए करने का लक्ष्य भी रखा गया है। साथ ही, २०३० तक सभी के लिए किफायती दाम पर ऊर्जा आपूर्ति कराने के लिए वैश् ‍ विक स्तर पर कुछ उद्देश्यों की पूर्ति के प्रति भी ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की है क्योंकि सभी के लिए ऊर्जा उपलब्ध न हो पाई तो दुनिया की ऊर्जा प्रणाली नाकाम हो सकती है। वे उद्देश्य कुछ इस प्रकार हैं –

१ . वैश् ‍ विक ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा के हिस्से में उल्लेखनीय वृद्धि।

२ . ऊर्जा दक्षता में सुधार की वैश् ‍ विक दर दोगुनी करना।

३ . स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में मदद करने के लिए वैश् ‍ विक सहयोग बढ़ाना।

४ . उन्नत तथा अधिक स्वच्छ जीवाश्म ईंधन प्रौद्योगिकी एवं ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढांचे तथा स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी में निवेश को उपलब्ध कराना।

एलपीजी को खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने से ग्रामीण महिलाओं को बड़ा फायदा हुआ है। स्वास्थ्य सुधार के रूप में और खाना पकाने में लगने वाला समय घटने के कारण अधिक आर्थिक उत्पादकता के रूप में उनकी आजीविका बेहतर हुई है। ‘ प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना ’ के अंतर्गत २०१७ तक ७१२ जिलों में करीब ३ . २ करोड़ एलपीजी कनेक्शन दिए जा चुके हैं। उपभोक्ताओं को आसानी से एलपीजी मिल पाने हेतु मंत्रालय तथा तेल विपणन कंपनियां एक साथ आ गईं हैं। सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिक बैंक खातों, आधार तथा मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सब्सिडी की राशि सीधे उपभोक्ता के बैंक खातों में पहुंचाई गई। उसके बाद मध्यवर्ग के परिवारों के जरूरतमंदों के लिए अपनी सब्सिडी छोड़ने की अपील ‘ गिव – इट अप ’ के रूप में की गई, जिसके तहत १ . ३ करोड़ लोगों ने सब्सिडी छोड़ दी।

पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार एलपीजी की प्रत्यक्ष कीमत कम हो गई है। पहले एलपीजी कनेक्शन के लिए ४५०० से ५००० रुपए खर्च करने पड़ते थे, लेकिन थोक खरीद ने इसे घटा कर ३२०० रुपए पर ला दिया है। ‘ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ’ के अंतर्गत आधी राशि उपभोक्ता को सरकार द्वारा एकबारगी अनुदान के रूप में प्रदान कर दी जाती है। हॉट प्लेट और पहली बार सिलेंडर भरवाने के लिए कुल १६०० रुपए उपभोक्ता को भरने पड़ते हैं, लेकिन तेल विपणन कंपनियां इसके लिए मासिक किस्तों का विकल्प उपलब्ध करा रही हैं। किसी एक परिवार को दिया गया ॠण करीब सात – आठ सिलेंडर भरने में वसूल हो जाता है। यह राशि वसूल होने के बाद सब्सिडी चलती रहती है और ग्राहक के खाते में आती रहती है। राज्य सरकारें भी चूल्हे तथा रेग्युलेटर के लिए धन प्रदान कर रही हैं। यह सहकारी संघवाद का सटीक उदाहरण है, जहां खाना पकाने की समस्या हल करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने हाथ मिलाए हैं।

इस योजना की प्रगति पर नजर डालें तो बैंक खाते जोड़ने और सब्सिडी छोड़े जाने जैसे लाभ भी दिखते हैं। पहले वर्ष में १ . ५ करो़ड़ कनेक्शनों का लक्ष्य था, लेकिन २ . २ करोड़ एलपीजी कनेक्शन बंटे। ऊर्जा एवं पर्यावरण तथा जल परिषद और जीआईजेड, जर्मनी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अभी तक ५८ लाख कनेक्शनों के साथ उत्तर प्रदेश को सब से ज्यादा लाभ हुआ है जबकि ३९ लाख कनेक्शनों के साथ पश् ‍ चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है।

इस योजना के विषय में कई प्रश् ‍ न उठाए गए, जैसे ग्रामीण एलपीजी उपभोक्ता धन की कमी के कारण बार – बार सिलेंडर नहीं भरवाते हैं। कनेक्शनों के बारे में आंकड़े जो भी बताते हैं, उनसे परे देखने के लिए कई विचार समूह अनुसंधान तथा वास्तविक अध्ययन कर रहे हैं, इसीलिए इस योजना के पीछे निर्धारित किए गए व्यापक लक्ष्य को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। जैव ईंधन के अक्षम तरीके से जलने के कारण सेहत को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए लोग दवा पर जितना खर्च करते हैं, उसकी तुलना एलपीजी सिलेंडर भरने पर होने वाले खर्च से नहीं की जा सकती। इसी तरह ग्रामीण महिलाओं द्वारा लकड़ी जुटाने तथा पानी लाने में लगने वाले समय का उपयोग दूसरे उत्पादक कामों में हो सकता है।

यह योजना भारत की ग्रामीण महिलाओं को सशक्त अनुभव कराने और घरेलू वायु प्रदूषण का सेहत पर पड़ने वाला असर कम करने के लिए किया गया गंभीरता भरा प्रयास है। हालांकि यह अपने आप में संपूर्ण नहीं है किंतु व्यवस्थागत नजरिए के साथ यह शुरू हो चुका है और किफायत, सुगमता तथा व्यवहार के पहलुओं पर अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। योजना ग्रामीण महिलाओं की आजीविका का कायाकल्प करने वाली है लेकिन इसके लिए अधिक दूदर्शिता भरे तथा योजनाबद्ध प्रयास की जरूरत है। सुविधासंपन्न लोगों, निजी कंपनियों और समुदायों के प्रयासों से शायद बदलाव आ जाए। इसीलिए जागरुकता की भी इसमें बड़ी भूमिका होगी।

‘ प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना ’ से लगभग एक लाख अतिरिक्त रोजगार सृजित हो सकते हैं और अगले तीन वर्षों में भारतीय उद्योग को कम से कम १००० करोड़ रुपए के कारोबार के मौके भी मिल सकते हैं। इस योजना ने ‘ मेक इन इंडिया ’ अभियान के तहत सिलेंडर, गैस चूल्हे, रेग्युलेटर और गैस हौज बनाने वाले सभी निर्माताओं के लिए असीम अवसर उपलब्ध कराए हैं।

भारत दुनिया का इकलौता देश है जहां लगभग ३०० दिन धूप रहती है। इसलिए आगे चल कर ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने के लिए बिजली के इस्तेमाल के विकल्प की ओर भी ध्यान दिया जा सकता है। इसके लिए इंडक्शन चूल्हों के रूप में बिजली निश् ‍ चित रूप से यथार्थ बन सकती है। प्रौद्योगिकी और नवाचार में बहुत अधिक यकीन करने वाले हमारे प्रधान मंत्री ने तेल एवं गैस के क्षेत्र की अग्रणी कंपनी ओनजीसी से ‘ सक्षम इलेक्ट्रॉनिक चूल्हा ’ बनाने की दिशा में काम करने का निर्देश दिया है, जिससे सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर खाना पकाया जा सकेगा। चूंकि अपने यहां सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की असीम क्षमता है और इस अनूठी पहल के द्वारा खाना पकाने की समस्या को काफी हद तक दूर किया जा सकता है।

पूरे देशभर में खाना पकाने के ईंधनों, सक्षम चूल्हों तथा उससे संबंधित शोध एवं विकास के समन्वयक प्रयासों के लिए एक ‘ नेशनल मिशन ऑन क्लीन कुकिंग ’ चलाए जाने की प्रबल आवश्यकता है, जिसका लक्ष्य २०२२ तक सभी को खाना पकाने का स्वच्छ ईंधन मुहैया कराना होगा। इसका लक्ष्य चूल्हों, खाना पकाने के बिजली से चलने वाले उपकरणों, विभिन्न आकार के एलपीजी सिलिंडरों के लिए बाजार और देश भर में ईंधन वितरण केंद्रों का नेटवर्क तैयार करना है। इससे शहरी क्षेत्रों में पाइप के जरिए प्राकृतिक गैस प्रदान करने हेतु शहरी गैस वितरण नेटवर्क मजबूत होना चाहिए और शहरी लोगों के हिस्से के एलपीजी कनेक्शन ग्रामीण क्षेत्रों में दिए जा सकेंगे, जिसका दोहन होना चाहिए और आर्थिक लाभ उठाने चाहिए।

मोबा . ७०४५९६१३३१

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Tags: biodivercityecofriendlyforestgogreenhindi vivekhindi vivek magazinehomesaveearthtraveltravelblogtravelblogger

सायली साटम

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गृहस्थी

Comments 1

  1. रवीन्द्र शुक्ला says:
    7 years ago

    पढ़ा। अच्छा लेख है। रवीन्द्र शुक्ला, इंदौर/मुंबई।

    Reply

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