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गृहस्थी

by हेमा 'अंजुलि '
in कहानी, स्वच्छ भारत अभियान पर्यावरण विशेषांक -२०१८
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मेरा पति तनुज आज बिना नाश्ता किए ही घर से चला गया … कुछ अनमना सा रहता है वो मुझसे। कहता है कि मैं बहुत बदल गई हूं, पहले जैसी नहीं रही अब मैं, … और आज तो नाराज होकर गया था मुझसे। लेकिन आज उसके नाराज होने की वजह कुछ और थी … तनुज जब नहा रहा था तो उसके फोन पर लगातार किसी के मेसेज आ रहे थे, तो मुझे लगा कि कोई जरूरी मेसेज होगा। मैंने उसका फोन उठा कर मेसेज पढ़ा ही था कि तभी तनुज बाथरूम से बाहर आ गया और अपना फोन मेरे हाथ में देख कर गुस्सा हो गया कि, ‘ अब मैं उस पर शक करने लगी हूं, एकदम गंवार बीवियों कि तरह।’ मैंने सफाई देनी चाही, पर तनुज ने मुझे बोलने ही नहीं दिया कुछ … बस चिल्लाता रहा मुझ पर और फिर और गुस्से में ही ऑफिस निकल गया …. वो कहते हैं ना कि चोर कि दाढ़ी में तिनका। बस ऐसा ही कुछ हाल तनुज का भी हो गया था।

कल हमारी शादी की आठवीं सालगिरह थी। पर तनुज ने मीटिंग का बहाना कर मुझे डिनर पर ले जाने का प्लान केंसिल कर दिया था। सुबह उसकी ऑफिस की सेक्रेटरी का ही मेसेज़ था। कल रात के डिनर के लिए थैंक्स लिखा था उसने। मैं एक पढ़ी – और समझदार बीवी थी। मुझे समझ आ रहा था कि अब तनुज भी दुनिया के दूसरे पतियों कि तरह बाहर खुशियां ढूंढने लगा है। उसे लगता है कि मैं बदल गई हूं। वैसे सच ही तो कहता है तनुज। सचमुच बहुत बदल गई हूं। शादी के आठ साल पहले वाली कोमल नही रही अब मैं। अब ना वो छरहरा बदन रहा, ना वो गालों को चूमती बिखरी जुल्फें। अब ना ही नैल पालिश से चमकते लम्बे खूबसूरत नाखून बचे हैं और ना ही गालों पे वो गुलाबों सी लाली। अब तो होठों के तब्बसुम भी रूठे से रहने लगे थे मुझसे। वो भी सिर्फ तनुज कि वजह से।

लेकिन तुम ही बताओ तनुज कि मैं हमेशा पहले जैसी कैसे रह सकती हूं ? शादी के इन आठ सालों में अपने छरहरे जिस्म से दो और जिस्मों को जनम दे चुकी थी मैं। उन दो शरीरों को आकार देते – देते मेरे अपने शरीर का आकार बिगड़ गया था। उन दो जिस्मों के चेहरे पे मुस्कुराहटों को सजाने की कोशिश में, अपनी सारी मुस्कुराहटें कुर्बान कर दी थीं मैंने। घर के झाडू – चूल्हे – में उलझी मेरी ज़िंदगी को अब जुल्फें सुलझाने का वक्त ही कहां मिलता था ? अब तो समझदारी की चोटी और परिपक्वता के जूड़े में कैद रहने लगी थी मेरी जुल्फें। नेलपालिश भी अब नहीं सजना चाहता था मेरे नाखूनों पे। क्योंकि उसे तो पसंद थे लम्बे चमकदार नाखून। पर मेरे नाखून तो गृहस्थी के बर्तनों और कपड़ों के साथ घिस गए थे। धुंधला गई थी उनकी चमक। ससुर, बच्चे, सब को सब कुछ नियत समय पर देते – देते अपने लिए वो समय ही नहीं बचा पाती थी मैं, जो तनुज मुझसे चाहता था। पर इसमें मेरी क्या गलती है तनुज ?

मुझ में जो भी कुछ बदला वो सब हमारी गृहस्थी को खुशियां देने के लिए ही बदला था ना ! तुम्हारे माता – पिता, तुम्हारे रिश्तेदार, हमारे बच्चे सब तो खुश थे मुझसे तो फिर तुम क्यों नहीं तनुज ? शायद तुम पुरुष थे इसलिए ! अगर तुमने भी कभी स्त्री की तरह अपने जिस्म से किसी दूसरे जिस्म को जनम दिया होता और अपने माता – पिता का घर त्याग कर किसी दूसरे के माता – पिता की सेवा में अपना जीवन व्यतीत किया होता, तो समझ पाते ना मुझे और मेरे प्यार को, मेरे मन के दर्द को, माना कि मेरे शरीर का आकार और चेहरे का रूप रंग बदल गया है पर मेरा दिल नहीं बदला तनुज ! दिल आज भी तुम्हें उतना ही प्यार करता है जितना पहले करता था और हमेशा करता रहेगा पर तुम शायद कभी नहीं समझ पाओगे मुझे। क्योंकि तुम तो पुरुष हो ना … तुम्हें तो सदा से ही शौक रहा है बिखरी जुल्फों से खेलने का, अगर बीवी नहीं तो परायी स्त्री ही सही। लेकिन जीवन की रंगीनियों में कमी नहीं आनी चाहिए। मुझे घर की चारदीवारी के आंगन की धूल साफ़ कराने में झोंक कर खुद बाहर के चमकते पैबन्दों को अपने कपड़ों पर लगाके घूमने में अपनी शान समझने लगे हो तुम . और उस पर इलज़ाम फिर मुझ पर कि मैं बदल गई हूं। बदल तो तुम गए हो तनुज … मेरा तो सिर्फ रूप – बदला है लेकिन तुम्हारा तो पूरा चरित्र ही बदल गया है। सर्वस्व अर्पित कर दिया था मैंने तनुज की गृहस्थी को संवारने के लिए, जिसका ये सिला मिला मुझे।

आज मेरा पति ही मुझसे अजनबी होने लगा है। आंखें भीग गईं मेरी दर्द से। मन में कुछ नकारात्मक से ख्याल सिर उठाने लगे कि क्या फायदा ऐसे रिश्ते में बंधे रहने का जिसमें प्यार ही ना हो। छोड़ के चली जाऊंगी ना तब तनुज को मेरी महत्ता समझ में आएगी। मन एकदम उचाट सा होने लगा। तभी सासू मां ने पुकार लिया मुझे। कोमल बहू क्या कर रही है ? जल्दी आ ना। मैं जल्दी से अपने आंसूं पौंछ सासू मां के कमरे की ओर दौड़ पड़ी। मां मालिश करने वाली बाई पर गुस्सा हो रही थी कि तुझ से अच्छी मालिश तो मेरी बहू कर लेती है। फिर सासू मां ने उसे चलता कर दिया और मुझ से कहने लगीं कि बहू जो आराम तुझ से मालिश करवाने मैं मिलता है ना, वो और किसी से नहीं मिलता। ऐसा लगता है जैसे बहू नहीं, बल्कि मेरी बेटी मेरी सेवा कर रही हो। मैं अवाक सी देखती रह गई उन्हें। एक बार फिर मेरी आंखें भीग गईं ; लेकिन इस बार दर्द से नहीं, बल्कि उनकी ममता और उनका मुझ पर विश्वास देख कर। फिर मैं अपने दिल का सारा दर्द भूल कर उनके शरीर का दर्द दूर करने में जुट गई।

आज से तीन साल पहले सासू मां को लकवे का हल्का सा अटैक आया था तब से ठीक से चल नहीं पाती हैं वह। मेरे हाथ सासू मां के पैरों का दर्द मिटाने में जुटे थे। अचानक से सासू मां ने अपना ममता भरा हाथ मेरे सिर पर रख दिया और कहा कि ईश्वर सब को तेरे जैसी बहू दे। कितना सुकून भरा पल था वो। उनकी यह बात सुन कर तो मेरे दिल का सारा दर्द जैसे उड़न छू हो गया और फिर मैं और भी जोश के साथ उनकी सेवा में जुट गई, तभी मुन्नी और बबलू स्कूल से आ गए। बबलू आते ही मुझ से लिपट गया और बोला, ‘‘ मां .. आप दुनिया की सब से बेस्ट मम्मी हो।’’ उसकी बात पा हंस दी मैं। ‘‘ अच्छा ? लेकिन आज मां को इतना मस्का क्यों ?’’ बब्लू ने चहक कर बताया, ‘‘ मां, आज मुझे ड्राइंग कॉम्पिटिशन में फर्स्ट प्राइज मिला है और वह भी सिर्फ आपकी वजह से, क्योंकि आपने ही तो मेरी हेल्प की थी ना ड्राइंग बनाने में ’’

तभी ससुर जी भी कमरे में आ गए और बबलू से बोले, ‘‘ अरे, फर्स्ट प्राइज कैसे नहीं मिलता तुझे … तेरी मां इतनी अच्छी चित्रकार जो है, तो उसके कुछ तो गुण आएंगे ही न तुझ में।’’ इस बात पर फिर से आंखें भर आईं मेरी, और बबलू को गले लगा कर रो पड़ी मैं। लगा कि तनुज न सही लेकिन घर के बाकी लोगों को तो कदर हैं मेरी। मेरी आठ साल कि निस्वार्थ सेवा – आज सार्थक होती दिख रही थी मुझे। सारी व्यथा, खुशी और ममता के बरसते सावन में धुल चुकी थी। मेरे आंसुओं के झरने को रोकने के लिए सासू मां ने तुरंत ही एक प्यार भरा आदेश दे डाला, ‘‘ अरे, बहू तू भी कमाल है। ये तो मुंह मीठा करने वाली बात है और तू रो रही है। मुझ पर गई है तू।’’ आखिरी लाइन सासू मां ने कुछ इस अंदाज़ में कही कि मैं हंस दी और बोली, ‘‘ मैं अभी मिठाई लाती हूं मॉं … पर रसोई में जा कर मैं फिर से रोने लगी। लेकिन इस बार ये गम के नहीं बल्कि ख़ुशी के आसूं थे। इस छोटे से, प्यारे से, मीठे से पल ने मेरी ज़िन्दगी की सारी कड़वाहटें धो डाली थीं। आज तनुज की बेरुखी हार गई थी और घरवालों का प्यार जीत गया था। मैं जल्दी – मिठाई की प्लेट सजाने लगी और सोचने लगी कि जैसे ही तनुज आएगा उसे ये खुशखबरी दूंगी कि हमारे बेटे ने फर्स्ट प्राइज जीता है तो तनुज का मूड भी ठीक हो जाएगा। आखिर जैसा भी है लेकिन मेरे बच्चों का पिता है वो, और गृहस्थी में तो छोटे – मोटे झगड़े चलते ही रहते हैं। इसका मतलब ये तो नहीं न कि हम रिश्तों से पलायन ही कर जाए …

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