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आप गुनगुना दें वही सब से बड़ा अवार्डः शंकर महादेवन

आप गुनगुना दें वही सब से बड़ा अवार्डः शंकर महादेवन

by pallavi anwekar
in नवम्बर २०१४, साक्षात्कार, साहित्य
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आपके लिए संगीत क्या है?
सबकुछ। संगीत मेरा ही एक हिस्सा है, मेरा ही एक अंग है, मेरा साथी है। जिस तरह हमारे हाथ पैर हमारे शरीर के अंग हैं उसी तरह संगीत भी मेरा एक हिस्सा है।

आपने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की है। कुछ समय तक बतौर इंजीनियर काम भी किया। फिर आप इस क्षेत्र में आए। क्यों?
मैं एक दक्षिण भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार से हूं, जहां आर्थिक सुरक्षा बहुत मायने रखती है। जब मैं पढ़ाई कर रहा था, उस समय की मानसिकता यही थी कि या तो डॉक्टर बनो या इंजीनियर। पढ़ाई में ठीक होने की वजह से मैंने इंजीनियरिंग चुना। एक सफल इंजीनियर बना। कुछ समय तक नौकरी भी की। परंतु संगीत के प्रति मेरे अंदर जो भावना थी, जो मैं दिल से करना चाह रहा था वो नहीं हो पा रहा था। हो सकता है इंजीनियर बनकर मैं दिन में ७-८ घंटे काम कर लेता परंतु आज एक संगीतकार के रूप में मैं लगभग १८ घंटेे काम कर सकता हूं। ये तभी होता है जब आप अपने काम से प्यार करते हैं। जिस काम को इंसान पसंद करता है अगर वही काम उसे करने मिल जाए तो ये किसी जैकपॉट के मिलने जैसा ही है।

आपने बहुत सारी भाषाओं में गीत गाए हैं। हर भाषा बोलने का एक विशिष्ट अंदाज होता है। आप कैसे उसे अपनी आवाज में ढालते हैं?

ये बिलकुल सही है। हर भाषा बोलने का अपना एक अलग अंदाज होता है। शुरुआत में उसके लिए सतत अभ्यास करना पड़ता है। एक ही भाषा के बोलने का अंदाज भी जगह के अनुसार अलग-अलग हो जाता है। जैसे हम यहां मुंबई में जो मराठी बोलते हैं वह सोलापुर-कोल्हापुर की मराठी से अलग है। इसी तरह तमिल में भी मदुरै की तमिल, पालघाट की तमिल और चैन्नई की तमिल अलग-अलग है। यह विविधता ही हमारे देश की खासियत है और सांस्कृतिक संपत्ति भी है।

अलग-अलग भाषाओं में गाने के लिए मुख्यत: नकल उतारने की कला (मिमिक्री) होना जरूरी है। जिस भाषा में आपको गाना गाना है उस भाषा की नकल उतारते आना चाहिए। फिर कुछ सालों के बाद जैसे-जैसे आप गाने लगते हैं उसकी प्रैक्टिस हो जाती है, जानकारी मिलने लगती हैै। आपके कैरिअर में कई सारे शब्द बार-बार आते हैं। फिर धीरे-धीरे आपको उसकी आदत हो जाती है। कई भाषाओं में गाना एक चैलेंज जरूर है और सचमुच मुझे इस बात की खुशी है और गर्व भी है कि मैं इतनी भाषाओं में गाने गा सकता हूं। मेरे जितने गाने हिंदी में लोकप्रिय हुए हैं उतने ही मराठी में, तमिल में, तेलगू में, मलयालम में, कन्नड में भी हुए हैं। मैं भगवान का इसके लिए शुक्रगुजार हूं कि मुझे ये मौके मिले।

इनमें से कितनी भाषाओं में आप रोज बात करते हैं?
मुंबई का एक यही फायदा है और नुकसान भी है कि यहां आपको बहुत सारी भाषाएं बोलनेवाले लोग मिलते हैं परंतु आज कोई भी व्यक्ति पूरी भाषा सही नहीं बोल पाता। यहां सब मिक्स है चाट या भेलपुरी की तरह।
दूसरी ओर आप अगर किसी भी प्रदेश के गावों में जाएंगे तो आपको शुद्ध भाषा बोलनेवाले लोग मिल जाएंगे। फिर चाहे वह मराठी हों या दक्षिण भारतीय भाषाएं।

पुराने संगीत और आज के संगीत में क्या अंतर है?
मेरे हिसाब से तो कोई अंतर नहीं है। पहले भी अच्छा और बुरा दोनों तरह का संगीत होता था और आज भी होता है। फर्क यह है कि पहले खराब चीज आप तक पहुंचने के लिए माध्यम नहीं होते थे। केवल एक ही चैनल होता था या चैनल भी नहीं थे। केवल रेडियो होता था। आज आपके पास एक गाना पहुंचाने के लिए ५०० माध्यम हैं। हर किसी के हाथ में म्यूजिक प्लेयर है। अत: आपके पास अच्छा-बुरा दोनों तरह का संगीत साथ ही पहुंचता है। बाकी मुझे नहीं लगता कोई अंतर है। संगीत संगीत ही है।

क्या आज कुछ बदलाव या एडवांस महसूस होता है?
जी हां। टेक्नॉलाजी में बहुत बदलाव आया है। रेकॉर्डिंग ज्यादा साफ तरीके से होती है। हमारा संगीत अंतरराष्ट्रीय हो रहा है। आप जमाने के साथ चल रहे हैं। पूरी दुनिया में जो नए-नए ट्रेंड्स आ रहे हैं आप उनके साथ चल रहे हैं। कुछ नकारात्क बातें भी हो रही हैं, मगर मैं यहां उनकी चर्चा करना नहीं चाहता।

आपने कई रियेलिटी शो किए हैं। इनके बारे में आपकी क्या राय है?
मेरे हिसाब से यह किसी भी प्रतिभाशाली गायक-गायिका को लोगों के सामने परफॉर्म करने का सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म है। उनके सामने तात्कालिक लक्ष्य रहता है कि मुझे कम से कम यहां तक तो पहुंचना ही है। इस प्लेटफॉर्म तक पहुंचने के कारण वे लोगों के घरों तक पहुंच जाते हैं। कई लोग उन्हें पहचानने लगते हैं। वे पूरे देश में मशहूर हो जाते हैं। हमारा देश ़बहुत बड़ा है। यहां कई तरह के म्यूजिकल ऑकेजन होते हैं। उनमें अपनी प्रतिभा दिखाने का इन लोगों को मौका मिलता है। वे कई म्युजिक शो, कांसर्ट करते रहते हैं। केवल एक सपना हर किसी का पूरा नहीं होता। वहे है फिल्मों के लिए पार्श्वगायन करने का। मेरे हिसाब से तो पार्श्वगायन एकमात्र मायने रखनेवाली बात नहीं है। आज सभी के पास अपना-अपना काम है और वे लोग काम कर भी रहे हैं। परंतु लोगों को यह लगता है कि अगर वह पार्श्वगायक नहीं बन पाया तो उसका कैरिअर समाप्त हो गया।

लोगों को रियेलिटी शो की ताकत समझ में नहीं आती। मैं कुछ दिनों पहले केरला टीवी के एक रियेलिटी शो में जज के रुप में गया था। उस शो को १ करोड़ लोगों ने देखा। अगर आपको १ करोड़ लोगों के सामने गाने का मौका मिल रहा है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?

आज हम देखते हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत पर दूसरे संगीत का असर हो रहा है। इसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
मुझे नहीं लगता ऐसा कुछ है। भारतीय शास्त्रीय संगीत हमेशा से महान था, है और रहेगा। हमें अपना नजरिया बदलना होगा। शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत या लाइट म्यूजिक को अलग-अलग स्वरूप में देखना होगा। शास्त्रीय संगीत एक अलग वर्ग के लिए है। केवल भारतीय ही नहीं विदेशों में भी यही बात है। वेस्टर्न क्लासिकल संगीत का ऑर्कैस्ट्रा सुनने शायद ५०० लोग ही जाएंगे परंतु माइकल जैक्सन या मेडोना को सुनने ५००० लोग जाएंगे। वैसे भी शास्त्रीय संगीत सुनकर उसका आनंद उठाना हर किसी के बस की बात नहीं है। लेकिन लाइट म्यूजिक या फिल्मी म्यूजिक कई लोग गाते हैं, उनकी धुनों पर नाचते हैं और उसका आनंद उठाते हैं। आपको एक उदाहरण दूं – ‘ऐ मेरे दिल कहीं और चल…’ कोई भी बड़ेे आराम से गा सकता है। लेकिन क्या कोई ख्याल इतनी आसानी से गा सकेगा? नहीं! अत: शास्त्रीय संगीत अलग वर्ग के लिए है। जिनको उसमें रुचि है वे सीखते हैं। अत: हमें किसी को किसी में मिलाना नहीं चाहिए। आज भी आप सवाई गंधर्व महोत्सव पुणे में देखिए। १५ से २० हजार लोग उसे सुनते हैं; क्योंकि जिनमें शास्त्रीय संगीत की समझ है, वे उसे पसंद करते हैं।

आपको अपने कैरिअर में बहुत सारे अवार्ड मिले हैं, परंतु आपको सब से ज्यादा खुशी किस अवार्ड के लिए हुई?

मैं जब एयरपोर्ट पर सामान लेने आता हूं और वो सामान देने वाला व्यक्ति जो ट्राली धकेलता है और कहता है कि शंकर जी आपका मां वाला गाना सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए….। गाड़ी का इंतजार करते समय जब रिक्शावाले आकर पूछते हैं कि क्या हम आपके साथ एक फोटो ले सकते हैं आपका वो वाला गाना बहुत अच्छा लगा….। या जब मैं किसी बिल्डिंग में जाता हूं तो वहां के सफाईवाले लोग, गार्ड या लिफ्टमैन कहता है कि मुझे आपका गाना अच्छा लगा…। बस मेरे लिए यही सबसे बड़ा अवार्ड होता है। जब कोई ऐसा इंसान जिसे मेरी तारीफ करके कुछ नहीं मिलेगा, जिसका मेरे कारण कोई फायदा नहीं होगा वो मुझसे कहता है कि आपका गाना बहुत अच्छा लगा वही मेरा अवार्ड होता है। बाकी तो जीवन में सब आता-जाता रहता है।

आप, एहसान और लॉय तीनों १८ साल से साथ में काम कर रहे हैं। आप तीनों का समन्वय कैसा है?
जाहिर है १८ साल से काम कर रहे हैं तो ट्यूनिंग जबरदस्त है। पर हां हम तीनों का अलग व्यक्तित्व है, पहचान है। संगीत को लेकर तीनों की सोच और पसंद भी अलग है। पर मेरे खयाल से ये अलग है इसलिए ही मजा है। अगर एक जैसे तीन लोग आएंगे तो झगड़ा होगा। एक चीज को देखने का सबका अपना अलग नजरिया होता है। जब हम तीनों एक दूसरे का नजरिया सुनते हैं तो सोचते हैं कि हां हमने इन दोनों तरीकों के बारे में तो सोचा ही नहीं था, यह भी हो सकता है। एक बात बहुत अच्छी है कि हमारे अहम कभी एक दूसरे से नहीं टकराए।

आप खुद संगीतकार हैं और दूसरे संगीतकारों के लिए भी गाते हैं। दोनों में क्या फर्क महसूस होता है? ज्यादा आसान क्या है?

देखिए, काम तो हर कोई मुश्किल ही है। कुछ भी आसान नहीं है। अच्छा करने के लिए कठिन मेहनत करनी ही होती है। मैं जब किसी दूसरे संगीतकार के पास जाता हूं तो अपने अंदर के संगीतकार से कहता हूं कि ‘आप जरा शांत रहें।’ क्योंकि तब संगीतकार होने के नाते एक लाइन सुनने के बाद मेरे मन में आ सकता है कि इसे ऐसे क्यों कंपोज किया वैसे क्यों नहीं किया। पर मैं सोचता हूं कि नहीं ये उनकी सोच है, उनकी रचना है। फिर मैं वैसे ही गाता हूं जैसा उन्होंने कहा है। परंतु कुछ ऐसे संगीतकार हैं जिनके साथ मेरी अच्छी ट्यूनिंग है जैसे रहमान या विशाल-शेखर आदि। इन लोगों को अगर मैं संगीतकार होने के नाते कुछ सुझाव देता हूं तो वैसे उसे खुशी-खुशी अपनाते हैं क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि मेरी क्षमता क्या है।

अपनी इतनी व्यस्त दिनचर्या के बीच रियाज के लिए कितना वक्त देते हैं?

ईमानदारी से कहूं तो बिल्कुल नहीं। समय नहीं मिलता यह तो नहीं कहूंगा, आलस कह सकता हूं। यह जानते हुए भी कि रियाज करना ही चाहिए, उसे प्राथमिकता नहीं दे पाता। अगर मैं रियाज करता तो अधिक उंचाई तक जा सकता था। परंतु वैसा रियाज मैंने कभी किया नहीं। हालांकि सतत इसी क्षेत्र में काम करने के कारण दिमाग में संगीत चलता ही रहता है। यही मेरा रियाज है और एक्सक्यूज भी। परंतु मानता हूं कि करना चाहिए। मैं नए लोगों से कहूंगा कि रोज रियाज जरूर करें।

क्या पुराने गानों का रीमिक्स या रीरेकॉर्डिंग करना सही है?
मेरे हिसाब से मेलोडी को ज्यादा नहीं बदलना चाहिए। कुछ थोड़े बदलाव किए जा सकते हैं। जैसे म्यूजिक अरेंजमेंट्स, डायनामिक्स, हार्मनी बदलने में मजा आता है। रीमिक्स ऐसा होना चाहिए जिसे सुनकर मौलिक संगीतकार के मुंह से भी वाह निकल जाए। रीमिक्स भी एक कला है जो अभी लोगों को अच्छे से समझ में नहीं आई है।

इस क्षेत्र में प्रतियोगिता बहुत है। आजकल कई पाकिस्तानी गायक यहां आकर गा रहे हैं, क्या आपको इस पर कोई आपत्ति है?
प्रतियोगिता हमेशा ही रही है और मुझे पाकिस्तानी गायकों के यहां आकर गाने में कोई परेशानी नहीं है। मुझे दुखइस बात का होता है कि जब हमारे कलाकार वहां जाते हैं तो उनकी कद्र नहीं की जाती। मैं खुद गुलाम अली खां साहब को सुनकर बड़ा हुआ हूं। इसलिए मेरे देश में बाहर के लोग आकर गायें इससे मुझे कोई परेशानी नहीं है पर मेरी अपेक्षा केवल यही है कि हमारे कलाकारों का भी वहां उतना ही सम्मान हो, उनकी भी उतनी कद्र हो।

संगीत में आईे नई तकनीकों का क्या फायदा हुआ है?
सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको कोई बेसुरा गायक नहीं मिलेगा। हर गाने में हर नोट को तकनीकी रूप से सही किया जा सकता है अत: किसी गायक की आवाज बेसुरी नहीं होती। परंतु गायक की दृष्टि से तो ये सही नहीं है। ये तो उसकी कमजोरी है।अंतत: आपको क्या देखना है? आपको गायक की प्रतिभा देखनी है या आउटपुट देखना है। यह आपको सोचना है। आज गायक रात को शांति से सो सकता है कि भले ही मैंने थोडा बेसुरा गाया परंतु उसे ठीक कर लिया गया।

आप एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। इस क्षेत्र में आने के लिए आपको क्या प्रयत्न करने पड़े?
मुझे बहुत जूझना पड़ा ऐसा नहीं कहूंगा। अगर आप दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ते हैं तो आपको सफलता जरूर मिलती है।

क्या कभी कुछ समय के लिए भी ऐसा नकारात्मक भाव मन में आया कि क्यों मैंने यह क्षेत्र चुना?
नहीं ऐसा तो कभी हुआ नहीं। मेरे ऊपर हमेशा भगवान की कृपा रही। रिस्क लेने की तैयारी के साथ ही मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। और एक सकारात्मक बात यह थी कि मेरी दाल-रोटी का खर्चा मेरे एडवरटाइजमेंट के पैसों से चल जाता था। जब आदमी को अपने बिल चुकाने की चिंता नहीं रहती तो उसका दिमाग अपने आप रचनात्मकता की ओर जाने लगता है। मेरी अन्य गायकों के लिए भी यही दुआ होगी कि उन्हें भी ऐसे मौके मिलें क्योंकि जब महीना भर काम करने के बाद भी पैसा नहीं मिलता तो ध्यान उस ओर केंद्रित हो जाता है और आप रचनात्मक काम नहीं के पाते।

आप विदेशों में भी कई कार्यक्रम करते हैं। बाहर के श्रोताओं और यहां के श्रोताओं में क्या फर्क है?
यहां के लोग प्रसिद्ध और लोकप्रिय गाने सुनना पसंद करते हैं परंतु बाहर के लोग अच्छा संगीत चाहे वह फिल्मी हो या गैर फिल्मी सुनना पसंद करते हैं।

आपके बेटे ने भी इस क्षेत्र में पदार्पण किया है। यह उनकी पसंद है या आपकी?
यह पूरी तरह से उसकी पसंद है। मैंने मेरे दोनों बेटों को कभी किसी बात के लिए फोर्स नहीं किया। और अपने परिवार के लोगों से भी कहा कि उनकी और मेरी कभी तुलना मत कीजिए। उसने खुद संगीत की खूबसूरती को जाना, समझा। आज वह खुद गाता है, धुन बनाता है। अगर मुझसे कुछ पूछता है तो मैं एक मार्गदर्शक के रूप में उसे सलाह अवश्य देता हूं परंतु किसी बात के लिए जबरजस्ती नहीं करता।
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