पर्यावरण की रक्षा और वैश्विक संस्थाएं

पर्यावरण की रक्षा के लिए पूरे विश्व में विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं कार्यरत हैं। यह एक तरह से जनता का संयुक्त अभियान है। इसलिए कि आने वाली भयावह स्थिति से निपटने के लिए अभी से सार्थक कदम उठाना जरूरी है।

भारत सरकार के पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने 10 दिसम्बर, 2019 को स्पेन की राजधानी मेड्रिड में आयोजित यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑफ क्लाइमेट चेंज में अपने उद्बोधन की शुरुआत महात्मा गांधी के उस कथन से की जिसमें उन्होंने कहा था,  आज हम जो कुछ करते हैं, उस पर हमारा भविष्य टिका होता है। श्री जावड़ेकर ने भारत सरकार के द्वारा पर्यावरण की रक्षा के लिए किए जा रहे विभिन्न कार्यों और योजनाओं का उल्लेख भी अपने संबोधन में किया।  उन्होंने दुनिया भर के देशों से आए प्रतिनिधियों और पर्यावरण की रक्षा के क्षेत्र में काम कर रही संस्थाओं से आग्रह किया कि वे सब एकजुट होकर पृथ्वी को बचाने का काम करें। सम्मलेन में ’बेसिक’ अर्थात ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन के पर्यावरण मंत्रियों, क्रमशः श्री रिकार्डो सेल्स, सुश्री बारबरा क्रीसी, श्री प्रकाश जावड़ेकर और श्री झाओ ईन्गमिन ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें चार बिंदुओं पर ध्यानाकर्षण किया। पहला बिंदु है, पर्यावरण से सम्बंधित पेरिस समझौते की धारा -06 पर वार्ता सीमित की जाए। पेरिस समझौते की यह धारा कहती है कि सभी सदस्य देश पर्यावरण की रक्षा के लिए कृतसंकल्प हों और इसके लिए आवश्यक धनराशि की व्यवस्था करें। साथ ही निजी क्षेत्र के सहयोग और दायित्व को भी सुनिश्चित करें। इस विषय पर सभी चारों देश सहमत हुए हैं। दूसरा बिंदु यह कि आगामी दो वर्षों के लिए एक कार्य योजना तय की जाए, जिसमें वर्ष 2020 से पूर्व तय कार्यों की प्रगति की समीक्षा की जाए और जो पूरे होने से रह गए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए व्यवस्था की जाए। तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु विकसित देशों के संदर्भ में है, जिसमें उन देशों से उनकी जिम्मेदारी को पूरा करने का आग्रह करना और संसाधन, तकनीक विकास में सहयोग करना और विकासशील देशों को सहयोग देना है ताकि ये देश भी पर्यावरण की रक्षा में अपनी भूमिका निभा सकें।  चौथा बिंदु है पेरिस समझौते को पूरी आस्था और पवित्र भाव से लागू करना। ’बेसिक’ के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने दुनिया के सामने पर्यावरण परिवर्तन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों, आगे की कार्यनीतियों और वैश्विक सहयोग को विशेष रूप से प्रस्तुत किया। देशों ने यह भी बताया कि इन्होंने अब तक हुए पर्यावरण सम्बंधी समझौतों को कितना और किस तरह से अपने देश में लागू किया है।

वस्तुतः भारत ने ग्रामीण और नगरीय स्वच्छता, सौर ऊर्जा, भूजल और वर्षा जल संरक्षण, वन संरक्षण, कार्बन उत्सर्जन में कमीं इत्यादि के क्षेत्र में जो उल्लेखनीय कार्य विगत वर्षों में किया है, उससे पूरा विश्व प्रभावित हुआ है। सौर ऊर्जा की वृद्धि में तो भारत पूरी दुनिया का ब्रांड एम्बेसडर बन गया है, इसी तरह ग्रामीण और शहरी स्वच्छता में शौचालयों के निर्माण में एक आदर्श प्रस्तुत किया है। स्वच्छता को लेकर पूरे देश में जैसा सकारात्मक वातावरण बना हैं, ऐसा कभी नहीं बना था। जल संरक्षण में अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिनका अच्छा परिणाम भी दिखाई देने लगा है। ये सब बातें विश्व बिरादरी में भारत को प्रतिष्ठा दिलाते हैं।

पर्यावरण अपघटन आज वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुका है। इसलिए यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं पर्यावरण की रक्षा के लिए स्थापित हुई हैं। इन संस्थाओं में वर्ल्डवाइड फण्ड फॉर नेचर (डब्लूएफएन), इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी), वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गेनाईजेशन, ग्रीनपीस, अर्थडे, फ्रेंड्स आफ अर्थ इत्यादि संस्थाएं अच्छा काम कर रही हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहीं भारत की प्रमुख संस्थाओं में सेंटर फार एनवायर्नमेंटल एजुकेशन, सेंटर फार इकोलॉजी एंड रूरल डेवलपमेंट, सेंटर फार पीपुल्स फारेस्ट्री, सेंटर फॉर सायंस एंड एनवायरनमेंट, सिटीज फॉर फॉरेस्ट हैं। ये संस्थाएं सरकार के पर्यावरण मंत्रालय या किसी अन्य मंत्रालय से सम्बद्ध हैं और शासन की नीतियों और अंतरराष्ट्रीय निर्णयों में अनुरूप काम करती हैं। इनके साथ ही इंडियन एनवायर्नमेंटल सोसाइटी जैसे गैर सरकारी संगठन भी हैं जो इस क्षेत्र में सरकार के सहयोग से काम कर रहे हैं।

आज जिस तरह से पर्यावरण में अपघटन हो रहा है, उससे पृथ्वी का वायुमंडलीय स्वरूप ही बदलता जा रहा है। मौसम चक्र भी तेजी से प्रभावित हो रहा है। जल्दी – जल्दी आने वाली भयंकर बाढ़, सूखा, तूफ़ान, ब़र्फबारी, वातावरण में बड़ा बदलाव पूरी दुनिया की चिंता का कारण बन रहा है। समुद्री जीवन और थलीय जीव-जंतुओं का तेजी से विलुप्त होना, वनस्पतियों का नष्ट होना एक गंभीर का संकेत है। यह सब अकस्मात् नहीं हो रहा है। इसके पीछे दुनिया के विकसित और धनी देशों का विकास मॉडल और प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन अधिक जिम्मेदार है। इसलिए दुनिया के विकासशील और गरीब देशों की यह सदैव मांग रही है कि पर्यावरण को बिगाड़ने जिस तरह से धनी देशों की भूमिका रही है, उसी तरह से पर्यावरण की रक्षा के लिए किए जा रहे वैश्विक प्रयासों में उनकी जिम्मेदारी भी अधिक होनी चाहिए। भारत इस बात का हमेशा से समर्थन करता रहा है और विकासशील देशों के नेतृत्व की भूमिका में रहा है। भारत की वर्तमान सरकार ने दुनिया के सभी देशों से अपनी जिम्मेदारी निभाने और गरीब देशों की तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में मदद की अपील की है। इसका अच्छा असर भी हुआ है।

इसी तरह वर्ल्डवाइड फण्ड फॉर नेचर नमक संस्था है, जो एक गैर सरकारी संस्था है। इसकी स्थापना सन 1961 ई. में हुई थी। यह संस्था पर्यावरण को बिगड़ने में मनुष्यों की भूमिका को कम करने और भूमण्डल के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखने के लिए करती है। यह संस्था शोध कार्य और जनसम्पर्क के द्वारा अपना कार्य करती है। यह कनाडा और अमेरिका सहित कई देशों में कार्य करती है। इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज नामक संस्था का मुख्यालय जेनेवा, स्विटरजरलैंड में है। यह वर्ष 1988 से कार्य कर रही है। इसका उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए वैज्ञानिक सूचना और प्रासंगिक सुझाव उपलब्ध कराना है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक अन्य संस्था वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गेनाईजेशन है। दुनिया के 193 देश इसके सदस्य हैं। 23 मार्च 1950 को इसकी स्थापना हुई थी। यह संस्था वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर तापमान, बदलते मौसम, वायुमंडलीय विक्षोभ, ग्रीनहाउस प्रभाव, समुद्र के जल स्तर इत्यादि के विषय में जानकारी एकत्र करके सदस्य देशों को उपलब्ध कराती है। वर्ष 1971 में स्थापित संस्था ग्रीनपीस एक गैर सरकारी संस्था है। 39 देश इसके सदस्य हैं। नीदरलैंड की राजधानी एमस्टरडम में इसका मुख्यालय है। इसकी शाखा भारत में भी काम करती है। 74 देशों की सदस्यता वाला संगठन फ्रेंड्स ऑफ अर्थ है। इसकी स्थापना वर्ष 1969 में हुई।  यह एक सलाहकार परिषद् की तरह काम करती है। इसी तरह की अन्य अनेक संस्थाएं हैं जो सीमित दायरे में रहकर पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही हैं।

भारत के अहमदाबाद में स्थित संस्था सेण्टर फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन की स्थापना पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1984 में की गई। पर्यावरण के बारे में जनजागरण करने के लिए यह संस्था काम करती है। इससे सम्बंधित सामग्री भी यह स्वयं तैयार करती है। विषेशतः वनों और जलवायु परिवर्तन के बारे में यह अध्ययन कराती है। सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड रूरल डेवलपमेंट नामक संस्था स्वास्थ्य, स्वच्छता, ऊर्जा, जल संसाधन के लिए कार्य करती है। इंडियन एनवायर्नमेंटल सोसाइटी नमक एक गैर सरकारी संस्था है जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। इसकी स्थापना वर्ष 1970 में की गई थी। यह संस्था स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कार्य करती है।

भारत ही नहीं विश्व के प्रायः सभी विकासशील और गरीब देश पर्यावरण के दुष्परिणाम सहने के लिए बाध्य हैं। जबकि इसे बिगाड़ने में धनी और विकसित देशों की भूमिका अधिक है। इसलिए भारत समेत सभी प्रभावित देश विकसित देशों से अपनी तकनीक और वैज्ञानिक अनुसंधानों का लाभ उपलब्ध कराने के लिए दबाव बनाते रहते हैं। यद्यपि प्रमुख देश अपनी जिम्मेदारियों से भागने का प्रयास करते दिखाई देते हैं और जब उनसे पर्यावरण के अपघटन को रोकने की कार्रवाई करने की बात की जाती है तो वे कन्नी काटने  लगते हैं।

जो भी हो इतना तो सभी जानते हैं कि यदि अब समय रहते पर्यावरण की रक्षा के लिए सार्थक कदम नहीं उठाये जाते हैं तो आने वाले समय में स्थिति अधिक भयावह हो सकती है। इसलिए हमें अपने साथ अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए आज से ही पर्यावरण की रक्षा के लिए सभी समुचित कर देने चाहिए। यही सम्पूर्ण विश्व के लिए हितकारी होगा।

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