पर्यावरण चेतना की समझ, नागरिकों को उनके कर्तव्यों का बोध कराती है तथा मार्गदर्शन करती है। पर्यावरण चेतना, इतिहास और पर्यावरण के लिए अनेक महानुभावों ने स्वयं को समर्पित कर दिया।
पर्यावरण के विभिन्न पक्षों तथा उनके प्रभावों की गहरी समझ ही पर्यावरण चेतना है। वह, स्वस्थ्य शरीर में बुद्धि या समुद्र में लाईट-हाउस की तरह होती है। पर्यावरण चेतना की समझ, नागरिकों को उनके कर्तव्यों का बोध कराती है तथा मार्गदर्शन करती है। यह आधुनिक युग की अनिवार्य आवश्यकता है।
इतिहास
सदियों पहले से विश्व के विभिन्न भागों में पर्यावरण संरक्षण के उल्लेख मिलते हैं। अरब देशों के चिकित्सा शास्त्रों में वायु, जल, मृदा प्रदूषण तथा ठोस अपशिष्ट के व्यवस्थापन का उल्लेख है। इसी प्रकार, जब लंदन में धुंयें के कारण प्रदूषण बढ़ गया तो सन 1272 में, ब्रिटेन के शासक किंग एडर्वड प्रथम ने कोयला जलाना प्रतिबंधित किया। औद्योगिक इकाइयों द्वारा जब वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ा तो ब्रिटेन ने सन 1863 में ब्रिटिश एल्कली एक्ट (पर्यावरण कानून) पारित किया। इस कानून की मदद से हानिकारक गैसों द्वारा होने वाले वायु प्रदूषण को रोका गया। महारानी विक्टोरिया के शासन काल में चलो प्रकृति की ओर लौटें ठर्शीीींप ीें छर्रीीींश आंदोलन हुआ, जनचेतना बढ़ी तथा प्राकृतिक संरक्षण के लिए अनेक सोसायटियों का गठन हुआ। सन 1739 में बैंजामिन फ्रेंकलिन तथा अन्य बुद्धिजीवियों ने चमड़ा उद्योग को हटाने तथा कचरे के विरूद्ध, अमेरिका की पेन्सिलवानिया एसेम्बली में, पिटीशन दायर की। 20वीं शताब्दी में, पर्यावरण आंदोलन का विस्तार हुआ तथा वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में प्रयास हुए। सन 1962 में, अमेरिकी जीवशास्त्री रचेल कार्सन की पुस्तक (साइलेन्ट स्प्रिंग) प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में जहरीले रसायनों के कुप्रभावों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई थी जिससे ज्ञात हुआ कि डी.डी.टी. तथा अन्य कीटनाशियों के उपयोग से लोगों में कैन्सर पनप रहा है तथा पक्षियों की संख्या में कमी आ रही है। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद, अमेरिका में पर्यावरण के प्रति जन चेतना बढ़ी तथा 1970 में एन्वायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेन्सी का गठन हुआ। सन 1972 में डी.डी.टी. के कृषि में उपयोग पर रोक लगी। इसी दौरान, अनेक नये पर्यावरण समूह जैसे ग्रीनपीस तथा पृथ्वी के मित्र ऋीळशपवी ेष ींहश एरीींह अस्तित्व में आये।
पर्यावरण के लिए काम करने वाले महत्वपूर्ण व्यक्ति
- अन्ना हजारे
महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानन्द से प्रभावित, अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित रालेगण सिद्धि में आकर समाज को संगठित किया और पानी की कमी, सूखा, गरीबी, कुरीतियों और पलायन के विरुद्ध काम करने को अपने जीवन का मिशन बनाया। उनके काम के कारण, रालेगण का चट्टानी इलाका, जहां लगभग 400 मिलीमीटर पानी बरसता है, जलग्रहण विकास के आत्मनिर्भर टिकाऊ माडल के रूप में सारे देश में स्थापित हुआ। उनका काम, देश विदेश से आने लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। आज रालेगण में खेती, फायदे का सौदा है। अन्ना हजारे को भारत सरकार का पद्म विभूषण तथा World Banks 2008 Jit Gill memorial Award for outstanding public service मिल चुका है।
- सुन्दरलाल बहुगुणा
सुन्दरलाल बहुगुणा का कार्यक्षेत्र पानी, मिट्टी और जंगल है। चिपको आंदोलन के कारण उन्हें प्रसिद्धि मिली। चिपको आंदोलन के माध्यम से सारी दुनिया को प्रकृति संरक्षण का संदेश दिया। टिहरी बांध के विरोध ने, उन्हें, गरीबों के सच्चे हितैषी के रूप में स्थापित किया। सुन्दरलाल बहुगुणा को भारत सरकार का पद्म विभूषण तथा राइट लाइवलीहुड अवार्ड मिल चुका है।
- राजेन्द्र सिंह
राजेन्द्र सिंह ने अलवर, राजस्थान में हजारों की संख्या में जोहड़, एनीकट और छोटे छोटे बांध बनवाकर अल्प वर्षा वाले इलाके में पानी के संकट से मुक्ति का रास्ता दिखाया। उन्होंने भारत के परम्परागत जलप्रबंध के जरिये सामुदायिक सम्पत्तियों के संरक्षण एवं प्रबंधन की नई दृष्टि विकसित की। अरवरी जल संसद का गठन कर पानी के उपयोग की ऐसी प्रजातांत्रिक प्रणाली विकसित की जो विकास और पर्यावरण संरक्षण का पर्याय है, आजीविका का साधन है और ऐसी मिसाल है जिसे अपनाने से गरीबी के उन्मूलन और पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। अरवारी सहित सात नदियों को जिंदा किया। अनुकरणीय काम करने के कारण उन्हें वर्ष 2001 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला है।
- चन्डी प्रसाद भट्ट
चन्डी प्रसाद भट्ट ने पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं को जोड़ने और उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने में अहम भूमिका का निर्वाह किया है। उन्होंने, सन् 1973 में चमोली के मंडल ग्राम में, ग्रामवासियों की सहायता से वृक्षों को कटने से बचाया था। उनके नेतृत्व में पौधरोपण, शिविरों का आयोजन, पंचायत स्तर पर ग्राम मंगल दलों की गतिविधियां चल रही हैं। सन् 1983 में उन्हें पद्मश्री तथा सन् 2005 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनका अति महत्वपूर्ण पर्यावर्णीय योगदान हिमनदियों के पिघलने और उनके पिघलने के कारण हिमालयीन नदियों पर मंडराते आसन्न संकट पर सरकार और समाज का ध्यान आकर्षित करना है। वे इस विषय पर अत्यन्त सक्रिय पर्यावरणविद के रुप में पूरी दुनिया में जाने जाते हैं।
- रवि चोपड़ा
डॉ. रवि चोपड़ा का कार्यक्षेत्र पर्यावरण, विज्ञान, तकनालाजी और पानी है। वे पीपुल्स साईंस इंस्टीट्यूट देहरादून तथा हिमालयन फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रबंध न्यासी हैं। इन दोनों संस्थानों की प्रतिवद्धता जल संसाधनों का प्रबंध, पर्यावरण की रक्षा, आपदाओं की रोकथाम और नदियों के संरक्षण के क्षेत्र में नई पद्धति से किए जा रहे अनुसंधान तथा विकास में है। रवि चोपड़ा ने सन् 1982 में 21 वीं सदी में भारत में जल संकट की प्रकृति, पानी की सकल आवश्यकता और संकट के समाधान पर नागरिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था। उनका मिशन गरीबों को शक्तिसम्पन्न बनाकर तथा प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादक, जीवनक्षम एवं भेदभावरहित उपयोग की मदद से गरीबी उन्मूलन के प्रयासों को मदद देना है।
- राजेन्द्र कुमार पचैरी
राजेन्द्र कुमार पचैरी का कार्यक्षेत्र जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नीतियां हैं। उनकी मान्यता है कि पर्यावरण के बढ़ते असंतुलन के कारण आम आदमी को भोजन और पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है। वे विश्व भर के विभिन्न मंचों से अमीर देश और गरीब देशों के बीच बढ़ती खाई, छीजते संसाधनों और उनसे जुड़ी समस्याओं, प्रदूषित जल, फसलों के प्रदूषण के कारण संभावित स्वास्थ्य जनित समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करते रहते हैं।
- गुरुदास अग्रवाल
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव के रूप में डॉ. गुरूदास अग्रवाल ने देश में प्रदूषण नियंत्रण के बुनियादी ढांचे और उसके युक्तिकरण की प्रक्रिया को प्रभावी स्वरूप प्रदान किया था। उनके जीवन का मकसद प्रकृति की रक्षा, समृद्ध एवं प्रगतिशील भारत का नवनिर्माण और पारम्परिक भारतीय वैभव की पुनःस्थापना है। वे, विचारों से गांधीवादी हैं। कुछ समय पहले उनका निधन हो चुका है।
- महेश चन्द्र मेहता
एडवोकेट मेहता ने ताजमहल को वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बचाने की कानूनी लड़ाई के अलावा वाहन प्रदूषण, जल संकट, भूजल का अवैज्ञानिक अंधाधुंध दोहन, गंगा और यमुना नदी के प्रदूषण पर अनेक कानूनी लड़ाइयां लड़ीं और जीती हैं। उनका मानना है कि यदि हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए सही एवं समुचित कदम उठावेंगे तो ही अपने बच्चों के लिए बेहतर कल दे पावेंगे। वे रेमन मैगसेसे सहित अनेक पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं।
- बलबीर सिंह सीचेवाला
बलबीर सिंह सीचेवाला का कार्यक्षेत्र नदी, जल और वृक्षारोपण है। उन्होंने अपने शिष्यों के साथ सतलज की सहायक काली बेई नदी की सफाई का बीड़ा उठाया और मन वचन कर्म से उस काम में जुट गए। उन्होंने, गंदे नाले में तब्दील बेई नदी को लगभग छः साल के अथक परिश्रम के बाद सदानीरा और शुद्ध पानी की नदी में बदल दिया। उनके अनुसार प्रकृति की सेवा ही सच्चा धर्म है। उनकी मान्यता है कि काली बेई नदी की सफाई से बढ़कर ज्यादा पवित्र काम कुछ नहीं हो सकता है। जागो और नरक बनती, सड़ती नदियों को बचाने के लिए उठ खड़े हो। गुरूबानी भी कहती है कि ईश्वर की रचना को संजोना बेहतर है।
पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की भूमिका
- सुनिता नारायण
पद्मश्री के सम्मान से सम्मानित सुनिता नारायण का कार्यक्षेत्र पर्यावरण से जुड़ा हर विषय है। वे डाउन टू अर्थ पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। शीतल पेयों में खतरनाक कीटनाशकों की उपस्थिति, शेरों की वर्तमान चिंताजनक स्थिति, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, औद्योगिक कचरे के निपटान और खतरों, खनन के पर्यावर्णीय पक्ष तथा वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरों से समाज और देश को अवगत कराने के कारण, देश विदेश में उनकी पहचान बनी। दिल्ली में सीएनजी गैस को लाने में उनकी अहम भूमिका है।
- वन्दना शिवा
वन्दना शिवा, पर्यावरणविद के रूप में देश विदेश में पहचानी जाती हैं। उन्होंने नवधान्य नामक स्वयं सेवी संस्था के माध्यम से समाज सुधार और पर्यावरण से जुड़ेे़ बिन्दुओं और मुद्दों पर गहन कार्य प्रारंभ किया है। उनकी मान्यता है कि भारत को ऐसी अभिनव नीति की आवश्यकता है जो आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक तंत्रों को ऐसे सजीव तंत्रों में परिवर्तित करे जो वनस्पतियों और समाज की सेवा करें। वन्दना शिवा को राइट लाइवलीहुड अवार्ड सहित अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।