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बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता

बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता

by देवराज सिंह
in अध्यात्म, ट्रेंडींग, संस्कृति
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विश्व के प्राचीन इतिहास का अगर हम अध्ययन करे तो हम पाएंगे कि सभी जगह समाज के अंदर समाजिक,आर्थिक वराजनीतिक कुछ न कुछ समस्याएँ थी I मानवता, मूल्यों, आदर्शो वनैतिकता का स्तर दिन प्रति गिर रहा था I उस काल, समय, परिस्थिति एवं वातावरण की मांग के अनुरूप एशिया महादीप में 563 ई० पू० भारत में तथागत महात्मा भगवान्बुद्ध काजन्म हुआ, उन्होंने विश्व की समस्याओं का बारीकी से अध्ययन किया तथा उनके समाधान के नियम या रास्ते बताये, जिनको आदर्श मानकर विश्व के अनेकदेशों ने उन्हें अपना लिया, इसी आधार पर डॉ. बी आर अम्बेडकर ने तथागत बुद्ध को दुनिया का प्रथम समाज सुधारक कहा है Iबुद्ध के समय में भारतीय समाज के अंदर बहुत सारी सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिकसमस्याएं थी, उन समस्याओं ने बुद्ध का ध्यान अपनी और आकर्षित कियाI आगे चलकर इन्हींसमस्याओं के समाधान के रूप में महात्मा बुद्ध के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दर्शन का विकास हुआ Iउन्होंने आधुनिक विचारक अरविन्द घोष, विवेकानंदने भी सेनफ्रांसिस्को में उन्हें भगवान बुद्ध एवं प्रथम हिन्दू धर्म सुधारक कहा है , उसीतरह से  महात्मा गाँधी ने भी श्रीलंका में अंतर्राष्ट्रीय बोद्ध सम्मेलन में उन्हें हिन्हू धर्म सुधारक माना, और यह बात सही है कि बुद्ध से प्रभावित होकर हिन्दू धर्म में बहुत से सुधार हुएI गुरु रविन्द्रनाथ टेगोर भी उनके अध्यात्मिक,भोतिकता एवं प्रक्रति प्रेम का प्रभाव उनके विचारो पर पड़ा,डॉ. आंबेडकर एवं अनेक ऐसे विचारकों के लिए मार्ग प्रशस्त किया जिससे उन्होंने अपने विचारों में आध्यात्मिकता एवं भौतिकता को एक साथ जोड़कर विश्व के कल्याण की बात कही है I जब तक इन दोनों विचारो में तालमेल नहीं होगा तब तक कोई भी समाज अपना सम्पूर्ण विकास नही कर सकता है I

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व महात्मा बुद्ध के जीवन की तीन महत्व पूर्ण घटनाओ के साथ जुड़ा हुआ हे, पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध के जन्म का होना, उनकाज्ञान प्राप्त करना और उनकीम्रत्यु का होना I बुद्ध कोएक ही दिन जन्म ,ज्ञानऔर म्रत्यु का होना बुद्ध पूर्णिमा के साथ जुडी हुई महत्व पूर्ण घटनाये है I

महात्माबुद्ध का जन्म वैशाखी पूर्णिमा को कौशल जनपद के प्रधान नगर कपिलवस्तु (गणराज्य) के शाक्य वंश के राज परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम शुदोधन था तथा माता का नाम महामाया था, जन्म देने के 7 वे दिन बाद ही आप की माँ की म्रत्यु हो गयी थी, आप का लालन पालन विमाता रानी प्रजावती ने किया तथा आप का बचपन का नाम शिदार्थ रखा गया I बुद्ध बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे तथा विभिन्न विषयों की  शिक्षा ग्रहण करने के बाद 19 वर्ष की आयु में आप का विवाह देवदह की राजकुमारी यशोदरा के साथ किया गया I बुद्ध प्रारम्भ से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे Iबुद्ध के जीवन में जब वे राजमहल में रह रहे थे तब अपने भ्रमण के समय चार व्यक्तियों को देखा बुड्डा, बीमार, शव एवं सन्यासी, इनघटनाओं  ने बुद्ध के जीवन पर गहरा प्रभाव डालाIबुद्ध का मन भौतिकवाद जिन्दगी से विचलित होने लगा था तथा उन के मन में सामाजिक जीवन के बहुत से प्रश्न उत्त्पन्न होने लगे थे, उन प्रश्नों के उत्तरों की तलाश में उन्होंने 29 वर्ष की आयु में राज्य एवं परिवार का त्याग कर दिया, अपने जीवन के अंतिम समय तक वे लोटकर घर वापिस नही देखा I बुद्ध के द्वारा जो उपदेश या विचार व्यक्त किये गये वे आम जनता की भाषा पाली में दिए गये क्योकि पाली भाषा आम जनों में बोली जाने वाली भाषा थी बुद्ध अच्छी तरह से जानते थे कि अपने विचारों को किस माध्यम से जनता के बीच लाया जाये और उनकी उपयोगिता बढ़ायी जायेविचारों का संकलन त्रिपटक में किया गया है जो तीन भागो में बटे हुए हैविनयपिटक, सुत्तपिटक एवं अभिधम्मपिटक I कबीर की तरह से ही बुद्ध ने आम जन की जो भाषा थी उसी के माध्यम से लोगो के बीच सम्वाद किया I किसी भी विचार की सफलता उस विचार की ज्यादा से ज्यादा लोगो के बीच पहुँचे इस पर निर्भर करता है I मध्यम मार्ग की बात महात्मा बुद्ध ने कही इस के आधार पर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है I

बुद्ध के समय की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिकपरिस्थितियाँ कैसी थी उनका अध्ययन करना भी अनिवार्य है, समाज में भयंकर असमानता व्याप्त थी लोग स्वार्थी,जाति, पंथ, हिंसा,महिलाओं की दशा भी दयनीय थी धार्मिक आडम्बर, कर्मकांड, उंच-नीच,छुआ-छूत ,चोरी  नैतिकता आदर्श मूल्य मानवता का स्तर गिर चुका था, अमीर गरीब के बीच अंतर तथा राजनितिक वैमनस्यता व्याप्त थी I बुद्ध के मष्तिस्क में ऐसे बहुत सारे प्रश्न थे I ऐसा भी नही है किबुद्ध से पहले इन विषयों पर किसी ने विचार न किया हो क्योंकि भारतीय परंपरा में सम्वाद का स्थान हमेशा से रहा है श्रमण स्कूल के विचारक इसी श्रेणी में आते है, बुद्ध के समकालीन 6 तीर्थकरों के नाम बुद्ध तथा जैन ग्रंथो में मिलते है पूर्णकाश्यप, अजित केशकम्बल, प्रकुन्ध कात्यायन, मक्खलि गोसाल, संजय येलतिपुट एवं निगंठ नाथपुत्तIबुद्ध ने उस समय समाज में व्याप्त भेद भाव असमानता व वैर-भाव के खिलाफ समानता, स्वतंत्रता एवं बन्धुता के विचार को उस समय के समाज में जन्म दिया और समानता, स्वतन्त्रता वबंधुत्व की बात प्राचीन समय में कर दी थी, इसी लिए डॉ. आंबेडकर ने भी कहा था की मैंने समानता, स्वतन्त्रता एवं बंधुत्व का विचार आधुनिक यूरोप की क्रांति के विचार से नहीं लिया है मैंने ये प्राचीन भारतीय इतिहास में बुद्ध के विचारों से लिया हैI लेकिन बुद्ध ने इन सभी प्रश्नों का बारीकी से तार्किक एवं मानव मूल्यों के आधार पर अध्ययन किया और उनका समाधान खोजने की कोशिश की, अंधविश्वास के अंधकार ने वैराग्य तथा निव्रती की सुन्दरता को ढक लिया था उसे पुन: स्थापित किया बुद्ध के धर्म का आधार आचार है शील,समाधि एवं प्रज्ञा, ये बुद्ध धर्म के तीन तत्व है शील से काया की शुधि समाधी से चित्त की शुधि तथा प्रज्ञा से अज्ञानता का नाश होता हैI बुद्ध ने एक ऐसे धर्म को प्रतिष्ठित किया जो युक्ति व तर्क पर आधारित था, जिसमें व्यक्ति बिना प्रोहित व देवता के अपना मोक्ष स्वयं प्राप्त करने में सक्षम होता है I बुद्धने अपने विचारों को तीन स्तरों में बांटा है,

1 विचार की उत्त्पति, 2.वर्तमान स्थति 3. समाधान ये विचार बुद्ध के दर्शन में देखने को मिलते है, डॉ.आंबेडकर ने भी अपने विचारों को इसी तरह से तीन स्तरों में बांटकर अध्ययन किया है I बुद्ध ने उस समय के समाज का अध्ययन करके पाया की इस संसार में चार सत्य है इन्हें बुद्ध के चार आर्य सत्य के नाम से जाना जाता हे I बुद्ध ने सबसे पहले इन्ही  चार आर्य सत्यों की खोज की  1.संसार दुखमय है, 2. दुख उत्पन्न होने का कारण है, 3. दुख का निवारण संभव है, 4. दुःख निवारण का मार्ग है I

बुद्ध धर्म के तीन रत्न हैबुद्ध ,धर्म एवं संघ , बुद्ध ने अपने कार्यों को स्थाई बनाने के लिए संघ की स्थापना की क्यों की शाक्य लोग गणतन्त्र में विश्वास करते थे जो लोकतंत्र का मूल आधार है बुद्ध ने भी अपने पंथ या अनुयायियों को व्यवस्थित र\खने के लिए संघ की स्थापना लोकतान्त्रिक तरीके से की थी, संघ के द्वारा जो भी निर्णय लिए जाते थे वे सभी को मान्य थे, इसलिए हम कह सकते हैं कि संघ निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था थी इसी की वजह से बोध धर्म लम्बे समय तक चला I

बुद्धम शरणम गच्छामि I

धम्मम शरणम गच्छामि I

संघं शरणम गच्छामि I

बुद्ध ने अष्टांग मार्ग के द्वारा सभी दुखों से छुटकारा पाना तथा निर्माण या मोक्ष को प्राप्ति की बात कही है – अष्टांग मार्ग को बुद्ध ने तीन भागो में विभक्त किया है

1-प्रज्ञा- द्रष्टि,संकल्प एवं वाणी|

2- शील – कार्य एवं आजीविका I

3- समाधि – व्यायाम,स्म्रति एवं समाधि I

          

  • 1.सम्यक द्रष्टि – चार आर्य सत्य है I
  • सम्यकसंकल्प – मानसिक एवं नैतिक विकास की प्रतिज्ञा I
  • सम्यक वाणी –अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखना I
  • सम्यक कार्य – गलत कार्यो को न करना I
  • सम्यक आजीविका – कोई गलत व्यवसाय न करना I
  • सम्यक व्यायाम – स्वस्थ रहना I
  • सम्यकस्म्रति – स्पष्ट ज्ञान को परखने की मानसिक योग्यता I
  • सम्यक समाधि – समाधि के माध्यम से निर्माण प्राप्ति I

 व्यक्ति के आचार की शुद्धता के  लिए बुद्ध ने पंचशील के सिद्धान्त दिए ये पांच नियम थे I महत्मा गाँधी के विचारों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा उन्होंने अपने जीवन में उनको अंगीकार किया और वर्तमान समय में उसकी प्रासंगिकता को पहचाना , डॉ अम्बेडकर भी उनके पंचशील सिधांत में विश्वास करते थे I

बुद्ध द्वारा अपने अनुयायिओं को दिया गया पंचशील सिद्धांत आज समाज के लिए बहुत जरूरी है। देश में लगातार बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को रोकने सरकारों ने कई कानून बनाए लेकिन वह समाज में बढ रही आपराधिक घटनाओं पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रही है। यदि समाज में भगवान बुद्ध के पंचशील सिद्धांत का प्रचार प्रसार किया जाए तो देश और समाज में हो रही आपराधी घटनाओं में कमी आएगी। महात्मा बुद्ध ने समाज में बढ़ती अपराधिक प्रवृत्ति को रोकने के लिए ही पंचशील सिद्धांत की स्थापना की थी।

अस्तेय; -अहिंसा, -ब्रह्मचर्य, -सत्य, -मादक द्रव्य विरति –

भगवान बुद्ध ने दुनिया के लोगों को अहिंसा, दया, करुणा का संदेश दिया है।

बाबा साहब डॉ बी आर आंबेडकर ने बुद्ध के विक्षरों को स्पष्ट करते हुए कहा  था “सभी मानव प्राणी समान हैं। मनुष्य का मापदंड उसका गुण होता है, जन्म नहीं। जो चीज महत्त्वपूर्ण है, वह है उच्च आदर्श, न कि उच्च कुल में जन्म। सबके प्रति मैत्री का साहचर्य व भाईचारे का कभी भी परित्याग नहीं करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विद्या प्राप्त करने का अधिकार है। मनुष्य को जीवित रहने के लिए ज्ञान विद्या की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी भोजन की। अच्छा आचारणविहीन ज्ञान खतरनाक होता है। युद्ध यदि सत्य तथा न्याय के लिए न हो, तो वह अनुचित है। पराजित के प्रति विजेता के कर्तव्य होते हैं।

किसी भी व्यक्ति के विचार उस काल के वातावरण, समय एवं परिस्थितियों की उपज होते है

बाबासाहब ने दुःख के निराकरण के लिए पंचशील के आचरण को महत्वपूर्ण बताया। भगवान बुद्ध के पंचशील में निम्नलिखित बातें आती हैं :- 1. किसी जीवित वस्तु को न ही नष्ट करना और न ही कष्ट पहुंचाना। 2. चोरी अर्थात दूसरे की संपत्ति की धोखाधड़ी या हिंसा द्वारा न हथियाना और न उस पर कब्जा करना। 3. झूठ न बोलना। 4. तृष्णा न करना। 5. मादक पदार्थों का सेवन न करना।

डॉ.आम्बेडकर“मानवता के लिए केवल आर्थिक मूल्यों की ही आवश्यकता नहीं होती, उसके लिए आध्यात्मिक मूल्यों को बनाए रखने की आवश्यकता भी होती है। स्थाई तानाशाही ने आध्यात्मिक मूल्यों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और वह उनकी ओर ध्यान देने की इच्छुक भी नहीं है। मनुष्य का विकास भौतिक रूप के साथ-साथ आध्यात्मिक रूप से भी होना चाहिए।”

वर्तमान में चाइना वाइरस का प्रकोप पूरे विश्व में महामारी के रूप में फेला हुआ है, कुछ समाचार पत्रो में खबरे भी छप रही है कि ये वायरस प्राक्रतिक नही है चीन के द्वारा लैब में तैयार किया गया वायरस है जिससे आज सारी दुनिया जूझ रही है I चीन एक बुद्धिस्ट देश है ,बोद्ध धर्मका मानने वाला देश है I क्या चीन ने बुद्ध के सिदान्तो का पालन किया है या फिर वह अपने आर्थिक हितो के सामने वह बुद्ध के मानवता, मूल्यों, नेतिकता आदर्शो विचारो को भूल गया है ? हम कैसे माने चीन एक बुद्धिस्ट देश हैI

आज विश्व में अशांति, आतंक, हिंषा, भय एवयुद्ध का वातावरण, महामारी, असमानता, गरीबी, मानवीय मूल्यों का हास, अनैतिकता ,लालच, वैमनस्यता एवं चोरी इत्यादि समस्याएँ है I बुद्ध के समय में भी ये समस्याएँ थी बुद्ध ने उस समय उन समस्याओं के समाधान के लिए कार्य किये, समाज के सामने नये सिद्धान्त दिए थे आज भी ये समस्याएँ है,बुद्ध के विचारो को अपने आचरण में लाकर हम एक बार फिर से शांति पूर्ण मानवता, नैतिकता एवं मूल्यों  पर आधरित समाज की कल्पना कर सकते है तथा अहिसा पर आधारित  विश्व में शांति,सद्भ्वना एवं कल्याण की कल्पना कर सकते है I

लेखक – देवराज सिंह

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