पालघर में संतों की पीट-पीट कर की गई हत्या ईसाइयों और वामपंथियों के गठजोड़ का ही परिणाम है। इस गहरी साजिश का पता लगाकर उन पर अंकुश के लिए सरकार को त्वरित कदम उठाने चाहिए।
महाराष्ट्र के पालघर जिला में दो साधुओं सहित ड्राइवर की हुई निर्मम ह्रदयविदारक घटना ने ईसाई मिशनरियों व वामपंथी नक्सलियों के खतरनाक गठजोड़ को भी उजागर कर दिया है और इसके साथ ही इनके राष्ट्रविरोधी चेहरों को भी देश के सामने ला दिया है। जिससे मिशनरियों व वामपंथियों की पोल परत-दर-परत खुलती जा रही है। देशवासी स्तब्ध हैं कि कैसे सेवा की आड़ में विदेशी शक्तियों के इशारों पर अंतरराष्ट्रीय ईसाई मिशनरी गैंग अपने अमानवीय होने का परिचय देते हुए अपने नापाक मंसूबों को पूरा कर रही है। आइए जानते हैं ईसाई मिशनरी एवं वामपंथी नक्सलियों के राष्ट्र विरोधी, संविधान विरोधी, मानवता विरोधी और सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) विचारधारा विरोधी गतिविधियों के बारे में…
भारत की सांस्कृतिक जड़ों पर हमला
दुनिया की सबसे शक्तिशाली संस्थाओं में से एक है ईसाई मिशनरी संस्थाएं, जिन्हें दुनिया के लगभग सभी ईसाई देशों का समर्थन व सहयोग प्राप्त है। आजादी के पूर्व से ही अंग्रेजों के राज में ही मिशनरियों के धर्मांतरण का नंगा नाच बेरोकटोक जारी है। मिशनरियों के दल, बल, प्रभाव के आगे हमारी भारतीय राज्य सत्ता भी बौनी नजर आती है। यह एक कड़वी सच्चाई है। इसलिए राज्य सत्ता मिशनरियों के आगे अपने घुटने टेक देती है।
पूरी दुनिया को ईसाई साम्राज्य के अधीन करने के लिए मिशनरियों का कार्य अनवरत जारी है। हजारों युद्धों का सामना करने के बाद भी भारत अजेय रहा है। हारने के बाद भी जीतने की प्रबल इच्छाशक्ति के बलबूते भारत हमेशा विजयी होता रहा है। हमारी सांस्कृतिक जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे तोड़ा नहीं जा सकता। भारत के विजयी होने में सांस्कृतिक चेतना का अहम योगदान है। इसी के मद्देनजर रखते हुए मिशनरियों ने भारतीय सांस्कृतिक जड़ों पर प्रहार करना शुरू किया है और वह धर्मांतरण के द्वारा भारतीयों के सांस्कृतिक जड़ों को काट रहे हैं।
राम के देश में रावण की पूजा क्यों?
भारत के दूरदराज दुर्गम जंगलों, आदिवासी – वनवासी क्षेत्रों में आज भी राम को पूजा जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने वनवास के दौरान वन – वन भटक कर अपना गुजर बसर किया और वनवासियों सहित पशु पक्षियों, बंदर – भालुओं एवं अन्य वन्य प्राणियों से मधुर आत्मीय संबंध स्थापित किए। इसलिए आदिवासी राम को अपना पूर्वज व भगवान मानते हैं। उनकी राम में अटूट आस्था है और वह सभी उनकी पूजा करते हैं। राम में आदिवासियों की अटूट आस्था होने के कारण मिशनरियों के धर्मांतरण के कार्य में सबसे अधिक बाधा आती है। इस बाधा को दूर करने के लिए मिशनरियों ने राम की जगह रावण का प्रचार प्रसार शुरू किया और धर्मांतरित लोगों के माध्यम से रावण की पूजा व शोभायात्रा निकालनी शुरू की। एक षड्यंत्र के तहत रावण दहन का विरोध किया जाने लगा और रावण का महिमा मंडन किया जाने लगा। पालघर के दुर्गम भागों में इस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं।
मानव के भेष में दानव है ईसाई मिशनरियां
देश में अनेक आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों के इशारों पर साधु संतों की हत्या कराई गई है। खास कर उन संतों की जो घरवापसी (परावर्तन) के कार्यों से जुड़े हुए हैं और मिशनरियों के धर्मांतरण के कार्य में बाधा बनते आए हैं। पालघर में हुई संतों की हत्या को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है और बताया जा रहा है कि इस जघन्य हत्याकांड में मिशनरियों व वामपंथियों का हाथ हो सकता है। सर्वविदित है कि मानव सेवा एवं समाजसेवा की आड़ में धर्मांतरण का कार्य मिशनरियों द्वारा सदियों से किया जाता रहा है, जो सीधे राष्ट्रद्रोह के श्रेणी में आता है। बहला फुसलाकर, भय व लालच देकर गुमराह करते हुए धर्मांतरण करना गैरकानूनी है और इन्हीं माध्यमों से वह धर्मांतरण का कार्य करते आ रहे हैं। सरकार व कानून का उन्हें कोई भय नहीं है।
संतों की हत्या मामले में पीटर कनेक्शन?
पालघर में पूज्य संतों एवं सारथी की हत्या के संदर्भ में जो नए – नए तथ्य आ रहे हैं उनमें हत्या आरोपियों को बचाने के लिए जिस पीटर डिमेलो उर्फ प्रभुदास क्रिप्टो क्रिश्चयन का नाम सामने आ रहा है। वह सोनिया गांधी के शासनकाल में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का सदस्य भी रह चुका है। अतः अब ये सुई गहरे षड्यंत्र की तरफ बढ़ती चली जा रही है। – जितेन्द्रानंद सरस्वती, अखिल भारतीय संत समिति
विदेशी फंडों पर लगाई जाए रोक
अहिंसा परमो धर्म की तर्ज पर सेवा को भी परम् धर्म माना गया है लेकिन सेवा निःस्वार्थ होनी चाहिए। किंतु मिशनरियों की सेवा निःस्वार्थ न होकर धर्मांतरण के स्वार्थ से प्रेरित है। इसलिए सेवा के नाम पर विदेशों से मिलने वाले हजारों करोड़ रुपयों के अनुदान (फंड) पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जानी चाहिए ताकि राष्ट्रविरोधी व
समाजविरोधी गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जा सके।
क्या सरकार का कानून यहां लागू नहीं होता पालघर स्थित डहाणू के स्थानीय निवासी अजित (परिवर्तित नाम) ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आजादी के पूर्व से ही यह इलाका मिशनरियों व वामपंथियों का गढ़ रहा है। यहां पर राष्ट्रविरोधी एवं समाज विरोधी गतिविधियां चलती ही रहती हैं। विश्व हिंदू परिषद के तलासरी स्थित सेवा केंद्र में कार्यरत लोगों पर कई बार हमले किए गए हैं। संघ के कार्यवाह आप्पा जोशी एवं उनकी पत्नी पर भी जानलेवा हमला किया गया था। हालांकि उनकी जान बच गई थी। कुछ वर्षों से किसी षड्यंत्र के तहत वामपंथी व मिशनरी आदिवासियों को अपने मूल समाज से तोड़ने के लिए एक मुहिम चला रहे हैं। अशिक्षित आदिवासियों को गुमराह कर उनके मन में यह भावना निर्माण करने का प्रयास किया जा रहा है कि वे आदिवासी नहीं बल्कि उनकी असली पहचान मूलनिवासी की है। उनका संबंध राम से नहीं रावण से है। इसलिए रावण दहन के बजाए रावण की पूजा करनी चाहिए। जहां पर संतों की बर्बरता से हत्या की गई उस गड़चिंचले गांव में छुपे रूप से दर्जनों चर्च हैं और उस गांव में मिशनरियों व वामपंथियों सहित माफियाओं के दबदबा है।
संतों की प्रधानमंत्री से पांच मांगें
संत समिति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेज कर उनसे पांच मांगें की हैं। पहली मांग – मामले की जांच सीबीआई से हो। दूसरी – दोषी पुलिसवालों पर कार्रवाई हो। तीसरी – नक्सली और मिशनरी गठजोड़ की जांच हो। चौथी – षड्यंत्र करने वाले बेनकाब हो। और पांचवीं – मामले की निष्पक्ष जांच हो।
अंधविश्वास एवं अफवाह फैलाने में मिशनरी – नक्सली सबसे आगे
आजादी के बाद भी विकास का लाभ पालघर के इन कुपोषित क्षेत्रों को नहीं मिला, जिसके चलते मिशनरियों व नक्सलियों ने इसे अपनी प्रयोगशाला बना दी। जब कोई आदिवासी बीमार पड़ता है तो मिशनरियों के लोग उन्हें हॉस्पिटल जाने के बजाए प्रभु यीशू की शरण में जाने को कहते हैं। हर समस्या का समाधान केवल यीशू है। क्रॉस की एक माला उन्हें गले में धारण करने को कहते हैं। मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों में धर्मांतरित बच्चों को ही सर्वप्रथम एडमिशन दिया जाता है। अंधविश्वास व अफवाह फैलाने में इनका कोई सानी नहीं है। नित नए हथकंडे अपना कर वे ग्रामीणों में भय का वातावरण बनाए रखने के लिए अंधविश्वास व अफवाह फैलाते रहते है। – विवेक करमोडा, अध्यक्ष – स्नेह समाज उत्थान संस्था, तलासरी, पालघर
कुछ माह पूर्व यहां की ग्राम पंचायत ने एक प्रस्ताव पास कर चिखले और वाकी गांव में चेतावनी भरे होर्डिंग लगाए थे। जिस तरह छत्तीसगढ़ व झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार का कानून लागू नहीं होता, ठीक उसी तरह के चेतावनी भरे संदेश उक्त होर्डिंग में दर्शाए गए थे। उसमें लिखा था कि ‘सावधान, आप अनुसूचित क्षेत्र में हैं। इस क्षेत्र में भारतीय संसद व राज्य सरकार के सामान्य कानून लागू नहीं हैं। यहां पर बाहरी लोगों के घूमने, रहने, नौकरी-व्यवसाय करने की मनाही है। यह प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया गया है।’ इस संदर्भ में इंडियन एक्सप्रेस में खबर प्रकाशित हुई थी। बताते चले कि पिछले वर्ष पालघर के हिन्दू बहुल गांवों में मिशनरियों ने घर – घर जाकर बीमारी ठीक करने के नाम पर प्रार्थना कार्यक्रम शुरू किया था और धर्मांतरण की कोशिश की थी। इससे आक्रोशित होकर गांव वालों ने इन्हें पीट-पीट कर पुलिस के हवाले कर दिया था। तब मिशनरियों ने पुलिस के समक्ष माफीनामा लिख कर यह वादा किया था कि वह फिर कभी इस गांव में नहीं आएंगे।
विदेशी शक्तियों का भारत पर आक्रमण
भारत को अंग्रेजों की दासता से आजादी मिल गई और अंग्रेज देश छोड़कर चले गए लेकिन भारत पर फिर से हुकूमत करने की उनकी साम्राज्यवादी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। बस उन्होंने युध्द करने का अपना तरीका बदला है। अब उन्होंने धर्म को अपना हथियार बनाया है। धर्म परिवर्तन से राष्ट्र परिवर्तन का वह सपना संजोए हुए है। वह केवल सपना ही नहीं देख रहे बल्कि अपने मंसूबों में कामयाब भी हो रहे हैं। धर्मांतरण के बलबूते अल्पसंख्यक माने जाने वाले ईसाइयों ने पूर्वोत्तर भारत के 4 राज्यों में बहुसंख्यक का दर्जा प्राप्त कर लिया है। इनमें क्रिप्टो क्रिश्चयनों की संख्या सर्वाधिक है। गोवा और केरल में भी वह तेजी से बहुसंख्यक होते जा रहे हैं और राजनीति में भी अपना हस्तक्षेप करने लगे हैं। उनकी मर्जी बिना सत्ता में आना असंभव सा हो गया है। कांग्रेस के शासन काल में अलग नगालैंड की मांग और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में हिंसक गतिविधियां उनकी सफलता का ही परिचायक है। बावजूद इसके राज्य सरकार गफलत में है।
मौके पर मौजूद स्थानीय नेता जांच के घेरे में
बताया जाता है कि मौजूद पुलिस के साथ स्थानीय नेताओं के इशारों पर उनके पाले हुए गुंड़ों ने बेरहमी से पीट-पीट कर साधुओं की हत्या कर दी। इसलिए मौके पर उपस्थित नेताओं की भूमिका की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। इसके साथ ही एनसीपी, सीपीएम, कष्टकारी संगठन, मिशनरियों सहित अन्य सहयोगियों की सांठगांठ की जांच होनी चाहिए। – संतोष जनाथे, मनोर, पालघर
सावरकर और गांधी ने भी किया धर्मांतरण का विरोध
एक ओर पूरा देश अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा था, वहीं दूसरी ओर मिशनरी भोलेभाले गरीब अशिक्षित लोगों को बहला फुसला कर डर या लालच दिखला कर तेजी से धर्मांतरण कर रहे थे। जिसका प्रखर विरोध महात्मा गांधी और वीर सावरकर ने किया। दोनों ने ही धर्मांतरण पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
नियोगी समिति के सुझाव को लागू करें सरकार
ईसाई मिशनरियों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को देखते हुए तत्कालीन कांग्रेस के शासनकाल में नियोगी समिति का गठन किया गया था, जिसने इस संदर्भ में विस्तार से अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। केंद्र सरकार से मांग है कि समिति के सुझावों पर अमल किया जाए।