 कारुलकर प्रतिष्ठान ह संस्था गत 50 से भी जादा वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में काम कर रही है। मेरी दादी कमलाबाई कारूलकर ने तलासरी के गाव झरी में 1969 में पहला स्कूल बना। दादी के बाद मेरे पिताजी अरविंद कारुलकर और अब मैं यह काम आगे बढा रहा हूं। हमारे परिवार ने संस्था के काम के लिए आज तक एक पैसा भी दान नहीं लिया । शुरू से पूरा कार्य परिवार के संसाधन और धन से चल रहा है। श्री प्रशांत कारुलकर इस ट्रस्ट को चेरमैन और श्रीमती शीतल कारुलकर सेक्रेटरी के रूप में   योगदान दे रहे हैं ।
कारुलकर प्रतिष्ठान ह संस्था गत 50 से भी जादा वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में काम कर रही है। मेरी दादी कमलाबाई कारूलकर ने तलासरी के गाव झरी में 1969 में पहला स्कूल बना। दादी के बाद मेरे पिताजी अरविंद कारुलकर और अब मैं यह काम आगे बढा रहा हूं। हमारे परिवार ने संस्था के काम के लिए आज तक एक पैसा भी दान नहीं लिया । शुरू से पूरा कार्य परिवार के संसाधन और धन से चल रहा है। श्री प्रशांत कारुलकर इस ट्रस्ट को चेरमैन और श्रीमती शीतल कारुलकर सेक्रेटरी के रूप में   योगदान दे रहे हैं ।
कारुलकर प्रतिष्ठान का गुलबर्गा के अनुसंधानकर्ता डॉ. विनोद बडगू के साथ एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में संयुक्त परियोजना है। डॉ.विनोद मानवी प्लाज्मा पर अनुसंधान करते हैं। गुलबर्गा मेडिकल हॉस्पिटल में करोना पर मात करने वाले एक पेशंट का प्लाज्मा हमने एंटी बॉडी मैपिंग के लिए इराक में भेजा है। हम जिस दिशा में काम कर रहे हैं, उससे हम टेस्टिंग किट तो बना ही लेंगे, चीजें सही दिशा में रहीं तो भविष्य में कोरोना पर वैक्सिन बनाने में इसका उपोग हों सकता है।
कोरोना महामारी से निपटने के लिए मा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन घोषित किा। 25 मार्च से हमारी संस्था से जुड़े तीन हजार कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर मदद कार्य में जुट गए। बड़ी संख्या में मजदूर पैदल
अपने राज्य में वापस जा रहे थे। भूख और प्यास के मारे उनके बुरे हाल थे। हमने तलासरी से दहिसर हायवे तक ऐसे लोगों को भोजन बांटा। लॉकडाउन के समाप्ति तक यह कार्य जारी रहेगा।
तलासरी, डहाणू में ऐसी कई आदिवासी बस्तियां हैं जहां यातायात के साधनों के अभाव में सरकार को भी पहुंचना असंभव है। ऐसी बस्तियों में ग्राम पंचायत, तहसीलदार और अन्य सरकारी कर्मचारियों की मदद से हमने सहायता पहुचाई। हम गत पांच दशकों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, हर गाव में कारुलकर प्रतिष्ठान से जुड़ा कम से कम एक परिवार तो निश्चित रूप से है। यह परिवार इस मुश्किल घड़ी में हमारे प्रतिनिधि और कार्यकर्ता बनकर कमजोर और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए खड़े हो गए।

केवल घर घर में अनाज बांटने तक सिमित न रहते हुए लॉकडाउन के समय में लोगों तक स्वास्थ् सुविधाएं पहुंचे ऐसा प्रयास हमने किया । कठोर नियमों की वजह से आवागमन पर पाबंदी थी, ऐसे में जिनकी स्थिति बेहद गंभीर है ऐसे रुग्णों और अन्य जरूरतमंद लोगों को अधिकारियों से अनुमति लेकर इच्छित स्थल पर पहुंचाने का काम हमने किया।
कोरोना से लड़ाई लड़ने वाले पुलिस एवं स्वास्थ्य कर्मियों, सरकारी कर्मचारियों आदि कोरोना योंद्धाओं को रोज चाय, नाश्ता, भोजन देने का काम हम लॉकडाउन के पहले दिन से कर रहे हैं। लॉकडाउन समाप्त होने तक हम उनके लिए डटकर खड़े रहेंगे। उनकी मदद का हमने बीड़ा उठाा है।
आप सबको पालघर की नृशंस घटना तो द होगी ही। दो भगवाधारी साधुओं- कल्पवृक्ष गिरी जी महाराज, सुशील गिरी जी महाराज और उनके वाहन चालक नीलेश तेलगडे को रात के अंधेरे में गांव में एक भीड़ ने बड़ी बेरहमी से पीट पीट कर मार डाला। नीलेश तेलगडे एक गरीब परिवार का कमाने वाला इकलौता सदस्य था। घर में उसकी बूढी मां, पत्नी पूजा और दो बेटियां हैं। कारुलकर प्रतिष्ठान के सदस्य तेलगडे परिवार के कांदिवली स्थित घर पर गए। उन्हें नकद 51 हजार रुपे की सहाता प्रदान की। नीलेश की दोनों बेटियों- सानिका और शालिनी की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाई। मेरी पत्नी शीतल कारुलकर ने नीलेश की पत्नी पूजा को मोन कर के सांत्वना दी।
माना अंधेरा है घना, चिराग जलाना कहा है मना।कारुलकर प्रतिष्ठान लगातार चिराग जला कर अंधेरा दूर करने का कार्य कर रहा है।
 
			

 
													
Great work sir