सुप्रीम कोर्ट का मजदूरों पर बड़ा फैसला, किराया,खाना व घर पहुंचाना राज्य सरकार का काम

  • सुप्रीम कोर्ट का मजदूरों पर बड़ा फैसला
  • सुप्रीम कोर्ट ने मजदूरों का जिम्मा राज्य सरकार को सौंपा
  • मजदूरों का किराया,खाना और घर पहुंचाने की व्यवस्था राज्य सरकार करेगी
  • सरकारों की नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया सवाल 
देश में जारी लॉक डाउन के साथ साथ सरकार के लिए प्रवासी मजदूरों का मुद्दा एक बड़ा सवाल है। केंद्र से लेकर राज्य सरकारें सभी प्रवासी मजदूरों की मदद करने में फेल साबित हो रही है। अलग अलग राज्य सरकारों के बीच मजदूरों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी देखने को मिल रहा है। इस दौरान तमाम तरह की संस्थाएं और कुछ निजी व्यक्ति प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहे हैं। राज्य सरकारें एक दूसरे को नसीहत दे रही है लेकिन खुद के कार्यों पर विचार नहीं कर रही है।
 
राज्य सरकार करेगी मजदूरों की देखरेख
देश की सर्वोच्च अदालत में प्रवासी मजदूरों को लेकर एक याचिका पर पिछले कई दिनों से सुनवाई हो रही थी जिस पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा की प्रवासी मजदूरों की पूरी मदद का जिम्मा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों पर होगा मतलब जिस भी राज्य में प्रवासी मजदूर फंसे होंगे वह राज्य उनकी पूरी मदद करेगा और बिना किसी शुल्क के मजदूरों को उनके घरों तक सही सलामत पहुंचायेगा।
 
मजदूरों की परेशानी से दुखी सुप्रीम कोर्ट 
सुप्रीम कोर्ट ने कहां की वह प्रवासी मजदूरों की परेशानियों को देखकर चिंतित है। मजदूरों के लिए राज्य सरकारों की तरफ से मुहैया कराई जाए गई मदद में भी बहुत सारी खामियां हैं जिसे दुरुस्त करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों को मजदूरों की वापसी को लेकर अपने प्रयासों को और दुरुस्त करना होगा और मजदूरों को ट्रेन या बस में सवार होने से पहले उनकी पूरे भोजन और पानी की व्यवस्था राज्य सरकार को करनी होगी।
ट्रेन पर कपिल सिब्बल ने उठाया सवाल
सुप्रीम कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता और जाने-माने वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के बीच काफी बहस भी हुई। इस दौरान मजदूरों की परेशानियों को लेकर दोनों के बीच बहस देखने को मिली। कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार की योजनाओं पर सवाल खड़े करते हुए कहा की जरूरत से बहुत कम ट्रेने चलाई जा रही है जिससे हर राज्य में स्थिति बिगड़ती जा रही है जबकि मजदूरों की संख्या को देखते हुए और अधिक ट्रेन चलाने की जरूरत है। सरकार की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब देते हुए बताया कि सरकार जरुरत के मुताबिक ट्रेन मुहैया करा रही है।
लॉक डाउन ने सब कुछ छीन लिया
लॉक डाउन के दौरान अपना रोजगार और काम गवां चुके मजदूर घर जाने के लिए मजबूर है ऐसे में उन्होंने सबसे पहले पैदल ही अपना रास्ता चुना था लेकिन बाद में सरकार की आंख खुली और धीरे-धीरे इन की सुविधा के लिए ट्रेन और बस का इंतजाम शुरू किया गया लेकिन सरकार की सुविधाओं के बाद भी अभी भी लोगों को तमाम परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। ट्रेन में यात्रा करने वालों के मुताबिक ट्रेन में ना तो पर्याप्त मात्रा में भोजन मिलता है और ना ही पीने के लिए शुद्ध पानी, लोगों को पूरा पूरा दिन बिना खाने और पानी के ही गुजारना पड़ता है वही यात्रा का समय भी करीब दोगुने से ज्यादा लिया जा रहा है और ट्रेन को दूसरे दूसरे इलाकों से होकर गुजारा जा रहा है। इस सभी दावों का सोशल मिडिया भी गवाह है कि किस तरह से लोग ट्रेनों में पानी और खाने के लिए तरस रहे है।

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