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क्या वैश्वीकरण का तिलस्म टूटेगा?

क्या वैश्वीकरण का तिलस्म टूटेगा?

by डॉ. अजय खेमरिया
in जुलाई - सप्ताह एक, ट्रेंडींग
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2021 से दुनियाभर में मौजूदा अवधारणाएं ध्वस्त होंगी और एक नई आर्थिकी, सामाजिकी का जन्म होगा। तकनीकी और लोकजीवन के नए आयाम भारतीय मूल्यों से सराबोर होकर सुस्थापित होंगे।

कोरोना की वैश्विक महामारी के बाद क्या दुनिया नई शक्ल ले रही है?यह सवाल इसलिए प्रासंगिक हो उठा है क्योंकि जिस वैश्वीकरण के ज़रिए दुनिया की भाषाई, सांस्कृतिक, औऱ आर्थिक विषमताओं को भुलाकर पारस्परिक सहयोग और सहअस्तित्व की कल्पना की गई थी वह धराशायी हो चुकी है। विश्वग्राम की जगह सीमाई राष्ट्रीयता का ज्वार न केवल मजबूत हो रहा है बल्कि यह पूरी दुनिया पर छा रहा है। यूएस फर्स्ट, इंडिया फर्स्ट के निहितार्थ समझने की जरूरत है। कोरोना के चीनी चेहरे ने पूंजीवाद का जो घिनौना औऱ कुत्सित चेहरा विश्व के सामने रखा है उसके द़ृष्टिगत सीमाई राष्ट्रवाद वैश्विक व्यवस्था में औऱ प्रबल होना अवश्यंभावी है। कोरोना ने वैश्विक व्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की विवशता को भी उजागर कर दिया। डब्लू एचओ से लेकर यूएन सिक्योरिटी काउंसिल सभी ने अपने मूल मंतव्य औऱ चरित्र के अनुरूप भूमिका से किनारा किया। सवाल यह है कि क्या कोरोना के बाद जिस नई विश्व व्यवस्था की ओर दुनिया बढ़ रही उसका स्वरूप कैसा होगा? क्या जिन मूल्यों के आधार पर वैश्वीकरण को दुनिया ने स्वीकृति दी थी उनके मूल्यांकन का प्रयास भी नहीं होना चाहिए?

अगर वैश्विक व्यवस्था चीन की कारोबारी निर्ममता औऱ शोषणवादी रवैये पर एकजुटता नहीं दिखा पाती तो यह सुनिश्चित है कि नई व्यवस्था में उग्र राष्ट्रवाद मुख्य विमर्श औऱ व्यवहार का विषय होगा। हैश टैग- ‘डीग्लोबलाइजेशन’ (गैर-वैश्वीकरण) का दौर भी जमीन पर आने वाला है और इसकी सशक्त आधारभूमि वुहान से निकले एक अदृश्य वाइरस ने रख दी है।

जापान ने 2.2 अरब डॉलर का पैकेज अपनी उन कम्पनियों के लिए घोषित किया है जो चीन में काम करते हुए खुद को समेट रही है। यह समझने के लिए पर्याप्त है कि डीग्लोबलाइजेशन आने वाले वक्त में वैश्विक व्यवस्था के केंद्र में होगा।
भारत भी आत्मनिर्भर अभियान की बुनियादी अवधारणा पर जिस तेजी से काम शुरू हुआ है वह इसी डीग्लोबलाइजेशन की ओर बढ़ती हुई व्यवस्था का संकेत है।भारत के बाजार की ताकत को समझा जा सकता है।

दूसरी तरफ चीन के बेईमान रवैये ने भी कारोबारी जगत को आत्मनिर्भरता की ओर उन्मुख किया है क्योंकि यह तथ्य है कि
मैन्युफैक्चरिंग समेत अन्य मामलों में विश्व की निर्भरता चीन पर है लेकिन इस निर्भरता का बेजा फायदा उठाने में भी उसने बेशर्मी की सभी हदे पार की। नकली कोरोना टेस्टिंग किट औऱ घटिया वेंटीलेटर सप्लाई के ताजा उदाहरण चीन की घटिया मानसिकता को प्रदर्शित कर गए हैं। जाहिर है आने वाले समय मे चीन विश्व व्यवस्था में एक तरह से अलग-थलग पड़ने की तरफ जा सकता है।

कोरोना ने दुनियाभर में राष्ट्रीय अस्मिता औऱ उग्र राष्ट्रवाद का एक ताजा आवरण ओढ़ने पर मजबूर किया है। जिस तरह अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने चीन की तरफदारी करने की बेशर्मी ओढ़ी उसने भी दुनिया में यह संदेश सुस्थापित करने का काम किया। साधन संपन्न मुल्क हमेशा गरीबों के शोषण से ऊपर नहीं उठ सकते है। ग्लोबलाइजेशन के पीछे छिपे गंदे चरित्र ने उग्र राष्ट्रवाद की तरफ लोगों को मोड़ा है।

भारत में करोड़ों लोग एक मजबूत और आक्रामक मुल्क के रूप में खुद की पहचान चाहते हैं। विविधताओं, बहुलता, विश्व बंधुत्व की बातें केवल गरीब या विकासशील मुल्क के दायरे को तोड़ रही हैं और अब इंडिया फर्स्ट का नया दौर आकार ले रहा है।
यह समझना ही होगा कि कोरोना के बाद नई विश्वव्यवस्था में राष्ट्रवाद ही बुनियाद होगा लोकतंत्र के नाम पर दुनिया के धनीमानी देशों की मनमानी पर उग्र प्रतिक्रिया संभव होंगी और एक नई विश्व व्यवस्था जन्म लेगी।

कोरोना ने भारतीय विचार को फिर विश्व पटल पर अधिमान्यता दी है- खासकर गांधी, लोहिया, दीनदयाल की वैचारकी मजबूत विकल्प के रूप में दुनिया के सामने खड़ी हुई है। तकनीकी और लोकजीवन के नए आयाम भारतीय मूल्यों से सराबोर होकर सुस्थापित होंगे। कुल मिलाकर 2021 से दुनियाभर में मौजूदा अवधारणाएं ध्वस्त होंगी और एक नई आर्थिकी, सामाजिकी का जन्म होगा।
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डॉ. अजय खेमरिया

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