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लोकपाल – अण्णा हजारे की आंधी

लोकपाल – अण्णा हजारे की आंधी

by रमेश पतंगे
in मई २०११, व्यक्तित्व, सामाजिक
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भारतीय जनता का वर्णन कुछ लोग ’इनक्रेडिबल’ के रूप में करते हैं। इसका अर्थ है: आश्चर्यनजक मानसिकता वाला देश। 3 और 4 अप्रैल को पूरा देश क्रिकेट विश्वकप में निमग्न था। सात वर्ष के बच्चे से लेकर 70 वर्ष के बुजुर्ग तक के मस्तिष्क में फाइनल मैच घूम रहा थ। इन तीन-चार दिनों में देश की जनता
महंगाई भूल गयी थी। उसे भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी, लूट विस्मृत हो गयी थी। वह विभिन्न राज्यों में  हो रहे चुनाव  को भी भूल गयी थी। और 5 अप्रैल को चमत्कार हो गया।

प्रसिद्ध समाज सेवक अन्ना हजारे दिल्ली में जंतर-मंतर पर आमरण अनशन पर बैठ गये और पूरे देश में जादू की छड़ी घुमाने जैसा चमत्कार हो गया। एक बार फिर सात वर्ष के बच्चे से लेकर सत्तर वर्ष के बुजुर्ग तक सभी लोग अण्णा हजारे के साथ उठ खड़े हुए। क्रिकेट मैच की विजय का सभी लोग जश्न मनाने के लिए सड़क पर उतरी जनसेना अण्णा हजारे के समर्थन में रास्तों पर उतर आयी।

इनक्रेडिबल इंडिया

यह है ’इनक्रेडिबल इंडिया ’ अर्थात आश्चर्यजनक मानसिकता वाला देश। भारत में एक दिन में ऐसा बदलाव हो सकता है, इसकी कल्पना विश्व समुदाय को नहीं थी। पाश्चात्य देशों में ऐसा कभी नहीं होता; परंतु भारत ’भारत’ है।

अण्णा हजारे कौन हैं? उनके पास कितनी बड़ी शक्ति है? क्या उनके पीछे कोई राजनैतिक दल खड़ा है? क्या उनके हाथ में राजसत्ता है? धनबल उनके पैरों के नीचे लोट रहा है क्या? क्या आज के युग की महासत्ता मीडिया उनकी दासी ह? इन सबमें एक भी अण्णा हजारे के पास नहीं है। वे एक निर्धन व्यक्ति ह। उनके पास अपना घर भी नहीं है। राज सत्ता नहीं है। वे किसी भी टीवी चैनल के मालिक नहीं हैं। वे लक्ष्मी के उपासक नहीं हैं। अधिक सरल भाषा में कहें तो, वे एक सरल साधु और ठाामीण व्यक्ति हैं।

हां, उनके पास अथाह बल जरूर है। यह वह शक्ति है, भारत के मन में जिसका आकर्षण युगों-युगों से है। इस शक्ति ने भारतीय मन कोे मोहित कर रखा है। यह शक्ति त्याग, तपस्या, निस्वार्थ-सेवा की कामना, निर्भयता और मूल्यों से निर्माण होती है। ऐसे उच्च मूल्यों को जगानेवाले लोग जनता के मन में व्यापक और गहरे प्रभाव डालते हैं। अपनी शाश्वत परंपरा में ऐसे व्यक्ति को संत, महात्मा, ऋषि जैसे शब्दों द्वारा संबोधित किया जाता है। अण्णा हजारे इसी कोटि के संबोधक व्यक्ति हैं। आज वे देश की जिस नैतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उसके पीछे सात वर्ष के बच्चे से सत्तर वर्ष के बुजुर्ग तक खड़े हैं।

अण्णा हजारे किस जाति के हैं?  लोग इस पर विचार नहीं करते। अण्णा हजारे का धर्म क्या है? लोग यह भी नहीं पूछते। अण्णा हजारे की भाषा क्या है? कोई जानना नहीं चाहता। अण्णा हजारे ने जाति-पंथ-भाषा की सीमाएं बहुत पहले ही पार कर ली थीं। आज वे सभी भारतीयोंकी नैतिक आवाज बन गये हैं।

भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज

अण्णा हजारे का अनिश्चितकालीन अनशन अपने लिए नहीं था। उनकी अपनी कोई व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं ह। उन्होंने भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज उठाई ह। एक समय की स्वर्ण-भूमि का यह देश, धर्म भूमि वाला यह देश, शील-चरित्र की उपासना करनेवाला यह देश आज विश्व-पटल पर महाभ्रष्ट देशों की सूची में शामिल हो गया है। अण्णा हजारे को इस बात का दुख है।

इस देश को किसने भ्रष्ट बनाया ह? हमारे सत्ताधारी और राजनेताओं के प्रचंड भ्रष्टाचार ने इस देश की छवि को धूल में मिला दिया । विकीपीडिया वेबसाइट पर जाने पर भारत के विषय में मिलनेवाली जानकारी इस प्रकार है :-

1) वर्ष 1948 से 2008 तक 20 लाख करोड़ रुपये काले धन के रूप में विदेश ले जाये गये है। यह धनराशि भारत के सकल घरेलू उत्पादन का 40 प्रतिशत है।

2) स्विस बैंक में भारत का 1.4 ट्रिलियन डालर जमा है। स्विस बैंक एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार अन्य सभी देशों का काला धन इकट्ठा किया जाये तो भी वह भारत के काले धन से कम होगा ।

3) राष्ट्रीय कर्ज का 13 गुना रकम स्विस बैंक में जमा ह।

4) वर्ष 2002 से 2006 के बीच प्रति वर्ष एक लाख 20 हजार करोड़ रुपये की राशि भारत से विदेश गयी।

5) भारत के गांधी राजघराने के पास 42,345 करोड़ से 83,900 करोड़ रुपये की संपत्ति है।

6) 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का है।

7) सामान्य आदमी की प्रति दिन की औसत आय केवल 20 रुपये है।

देश की यह लूट मुहम्मद बिन कासिम, नादिर शाह और अंठोजों द्वारा की गयी लूट की अपेक्षा बहुत ज्यादा है। यह लूट अपने ही लोगों द्वारा की गयी है। अण्णा हजारे का यह संघर्ष इसी लूट के विरुद्ध है। किसी को भी इस लूट के विरोध में खड़ा होना ही था। ’’ हम सर्वशक्तिमान हैं, हमारे हाथ में कानून का निर्माण करने, उसे लागू करने और कानून में परिवर्तन करने, रक्षा करने वाली माशीनरी को उपयोग करने की शक्ति ह।’’ ऐसे धुंध में चूर सत्ताधारियों को अण्णा हजारे  ने धराशायी कर दिया है। अण्णा हजारे जी ने एक बार फिर दिखा दिया है कि धर्मदंड अर्थात नीति-शील दंड, राजसत्ता की अपेक्षा श्रेष्ठ है।

लोकपाल विधेयक

प्रत्येक भारतवासी के मन में यह आकांक्षा थी कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन होना चाहिए । लेकिन इस लड़ाई में कौन खड़ा हो ? किस प्रश्न को लेकर खड़ा हो ? केवल यहा प्रश्न था । अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक को लिया । यद्यपि लोकपाल विधेयक का विषय नया नहीं था । सन् 1969 ई0 में लोकसभा में लोकपाल विधेयक पारित किया गया था । वहां से उसे राज्यसभा में भेजा गया; किंतु वह वहां अटक गया । 42 वर्षों तक वह अंधेरे में पड़ा रहा । सामान्य लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं थी । अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक को पुनर्जीवित कर दिया ।

लोकपाल विधेयक प्रधानमंत्री,उनके मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों, सांसदों तथा केंद्र सरकार के अधिकारियों ,कर्मचारियों के भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की सुनवाई का कानून है । सरकारी विधेयक के अनुसार लोकपाल की भूमिका केवल सलाहकार की है । जिसकी शिकायत की गयी हो,उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार लोकपाल को नहीं है । लोकपाल के पास शिकायत को पंजीकृत करने का अधिकार भी नहीं है । सीबीआई द्वारा जांच किये जा रहे मामलों को लोकपाल  के पास देने का प्रस्ताव भी नहीं है । सरकारी विधेयक के अनुसार किसी शिकायतकर्ता की शिकायत यदि गलत पायी जाती है,तो शिकायतकर्ता पर 50 हजार रुपये दंड तथा तथा कारावास की सजा हो सकती है । प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच का अधिकार लोकपाल को नहीं दिया गया है । ऐसे लोकपाल का स्वरूप दांत और नखहीन शेर जैसी है । ऐसे जीवित शेर और शेर के पुतले में कोई अंतर नहीं होता ।

प्रश्न यह उठता है कि कोई राजनेता क्या अपने खिलाफ जांच करने का अधिकार अन्य व्यक्ति को देगा ? इस दृष्टि से सरकारी विधेयक नामक यह लोकपाल विधेयक वस्तुत: ए.राजा, सुरेश कलमाणी जैसे भ्रष्ट राजनेताओं को संरक्षण देनेवाला विधेयक है ।

सरकार झुक गई

यह लेख लिखने का काम पूरा ही हुआ था कि खबर आयी कि सरकार ने लोकपाल विधेयक के बारे में अण्णा हजारे की सभी मांगों को मान लिया है। दस सदस्यों की संयुक्त समिति के गठन की अधिसूचना जारी कर दी है। अण्णा हजारे की आयु 73 वर्ष है। इस आयु में उन्होंने अपने नैतिक कार्य के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दा। सत्ता के मद में चूर राजनेताओं को झुका दिया ।

42 वर्षों से लंबित पड़े लोकपाल विधेयक को संसद के मानसून-सत्र में पेश करने की मांग मनवा ली। अहिंसक आंदोलन और सत्याठाह की विजय हुई है। किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ ह। युद्ध के केवल एक मोर्चे पर विजय मिली है। विधेयक तैयार करते सम् सरकार जिन हथकंडों का इस्तेमाल करेगी, वह सामने आयेगा और उन सभी मोर्चो पर लड़ाई जीतना है। ऐसे अवसर पर हमें अण्णा  हजारे से यही कहना है, अण्णा आप संघर्ष का नेतृत्व कीज्।ि हम संपूर्ण शक्ति के साथ आपके साथ खड़े हैं। जेल भी जाना पड़े, तो जायेंगे और समय आने पर हम सबसे बड़ा बलिदान भी देंगे।’’

अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों ने जन-लोकपाल विधेयक सरकार के सम्मुख पेश किया है । इस विधेयक को वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण, किरण बेदी,न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े, अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह ने तैयार किया है । 10 सदस्यों की लोकपाल समिति है । यह विधेयक लोकसभा में पारित होने के छह महीने के भीतर इस समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति की जायेगी । इस समिति में भारतरत्न और मैग्सेस पुरस्कार प्राप्त लोग होंगे । सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश चुनाव समिति के अध्यक्ष होंगे । लोकपाल समिति में जो सदस्य होगे उनका चुनाव पूरी तरह पारदर्शी होगा । वेबसाइट पर उनके नाम लगातार आते रहेंगे । लोकपाल के पास शिकायत पंजीकृत करने,जांच करने,जांच का निष्कर्ष निकालने और उस पर कार्रवाई करने का अधिकार होगा ।

ज्वलंत समस्या

अण्णा हजारे ने देश की एक ज्वलंत समस्या को उठाया है। इसलिए देवेगौड़ा, जयललिता, नरेंद्र मोदी, नितिन गड़करी से लेकर श्री श्री रविशंकर, स्वामी रामदेव और सिनेमा जगत के अनेक कलाकार और सैकड़ों सामाजिक संस्थाओं ने समर्थन दिया है। भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए देशभर में अभूतपूर्व एकजुटता हुई है। जयललिता तो भ्रष्टाचारियों की महारानी है। उन्होंने ने भी यदि अण्णा हजारे को समर्थन दिया है, तो इस पर टिप्पणी करने की आवश्यकता है। उनकी राजनीतिक मंडली बड़ी चतुर है। जनता के खिलाफ जाने की हिम्मत किसी में नहीं ह। आपातकाल लागू होने से पूर्व जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल बजाया थ। उनके आंदोलन के प्रारंभ में आज की ही तरह युवा और साफ-सुथरी छवि वाले लोग शामिल हुए थे। आगे चलकर आपातकाल लागू कर दिया गया। भ्रष्ट इंदिरा गांधी की सत्ता चली गयी। और उस समय के ए. राजा के पूर्वज चिमन भाई पटेल पुन: गुजरात के मुख्यमंत्री बन गये।

इस बात का ध्यान रखना होगा कि इस समय आपातकाल के बाद की परिस्थिति की पुनरावृत्ति नहीं होगी। किंतु प्रश्न यह है कि इसका ध्यान कौन रखेगा। इसका कोई ठोस उत्तर मेरे पास नहीं है। अण्णा हजारे का भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन सामान्य जनता के सामने पहुंच गया है। यह उनका ’मास्टर-स्ट्रोक’  है – इसे तो मानना ही होगा। एक बात और है कि अण्णा हजारे अपना लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करेंगे। परिस्थिति में बदलाव होगा और लोकपाल की नियुक्ति होगी। किंतु क्या इससे भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा? इससे भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा, ऐसा उत्तर देना बालबोध जैसा होगा। जिन्हें राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र और मनोविज्ञान का थोड़ा-सा भी ज्ञान होगा, वे ऐसा बालबोध उत्तर नहीं दे सकते।

तीन प्रमुख कारण

भ्रष्टाचार के तीन प्रमुख कारण हैं: पहला कारण अपने देश में चुनाव की पद्धति है। संसदीय लोकतंत्र और इसकी चुनाव पद्धति भ्रष्टाचार की जड़ है। चुनाव लड़ने के लिए पैसा चाहिए। चुनाव जीतने के लिए पैसा पानी की तरह बहाना पड़ता है। विभिन्न तरीके से वोट खरीदे जाते हैं। वोट के लिए लोगों को मतदान केंद्र तक लाने के लिए कार्यकर्ताओं का पोषण करना पड़ता है। इन सबके लिए पैसे की जरूरत होती है। जन लोकपाल की नियुक्ति होने पर चुनावी भ्रष्टाचार किस तरह से समाप्त होगा?

इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था भयंकर भ्रष्टाचार की जननी है। जिसके पास सत्ता होती है, वह पैसा इकट्ठा करने के लिए उसका दुरुपयोग करता है। रजिस्ट्रार कार्यालय में घर की रजिस्ट्री करने के एवज में रिश्वत की राशि तय होती है। इस प्रशासकीय भ्रष्टाचार पर किस तरह से रोक लगेगी?

भ्रष्टाचार का तीसरा कारण मनुष्य की स्वयं की प्रवृत्ति है। यह सैकड़ों वर्षों के अनुभव से सिद्ध है कि सत्ता प्राप्त होने पर व्यक्ति भ्रष्ट हो जाता है। सुविधा मिलते ही अपना फायदा करने की भी प्रवृत्ति होती है।  कभी-कभी अवसर मिलने पर इस तरह की चतुराई की जाती है। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान तैयारी में जान-बूझकर विलंब किया गया और समय निकट आने पर जरूरत से ज्यादा पैसा खर्च करके तैयारी पूरी ली गयी। लोकपाल इस प्रवृत्ति को किस तरह से बदलेंगे?

गारंटी किसकी?

दस लोगों की लोकपाल समिति का कोई सदस्य कभी भ्रष्ट नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है? कितनी भी अच्छी व्यवस्था की जाये और उसे कितना भी सुरक्षित बनाया जाये, किंतु व्यवस्था में शामिल लोग इतने होशियार होते हैं कि भ्रष्टाचार में लिप्त ही हो जाते । एक किस्सा है: एक सरकारी अधिकारी महाभ्रष्ट था। जहां भ्रष्टाचार के अवसर नहीं होते, वहां भी इसका रास्ता खोज लेता था। आजिज आकर राजा ने उसे समुद्र के किनारे बैठकर लहरों को गिनने का कार्य दे दिया। कुछ दिनों के उपरांत राजा के पास शिकायत आने लगी कि वह व्यक्ति लहरों की गिनती के कार्य में भी भ्रष्टाचार करने लगा है। राजा को आश्चर्य हुआ कि लहरों की गिनती में भी भ्रष्टाचार कैसे किया जा सकता है? पता करने पर ज्ञात हुआ कि लहरों की गिनती करते समय उसने जहाज के मालिकों से कहा कि किनारे पर जहाज लाकर वे सरकारी काम में बाधा डाल रहे हैं। क्योंकि जहाज से कृत्रिम लहरें उत्पन्न होती हैं। इसलिए वे जहाज को दूर खड़ा करके ही सामान लादें और उतारें। यदि उन्हें किनारे पर जहाज लाना है, तो इसके लिए पैसे देनें होंगे। जन लोकपाल समिति के लोग इस तरह काम नहीं करेंगे, इसकी क्या गारंटी है?

इस सबके बावजूद अण्णा हजारे द्वारा शुरू किये गये आंदोलन का महत्व कम नहीं हो जाता। क्योंकि इस आंदोलन के नैतिक मूल्य बहुत बड़े हैं। पाप करना जितना बुरा है, उतना ही बुरा उसे सहन करना भी है। भ्रष्टाचार करना और भ्रष्टाचारी को उच्च पद पर बने रहने देना उससे भी ज्यादा बुरा ह। अण्णा हजारे के आंदोलन ने भ्रष्टाचारियों के मन में दो तरह से भय का निर्माण किया है: एक नियम-कानून का भय तथा दूसरा नैतिकता का भय। कानून के भय की अपेक्षा नैतिकता का भय अधिक कारगर और दूरगामी है। अण्णा हजारे ने आमरण अनशन करके एक बार फिर यह मार्ग भारतीयों को दिखा दिया है ।

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Tags: bharatiyaindian politicspolitical newssamajik

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