सत्य बोलने का अपराध

मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी को दारूल उलूम देवबन्द मिुस्लम विश्वविद्यालय के मोहतमीम (उप कुलपति) के पद से शूरा कमेटी द्वारा हटा दिया गया है। किसी भी विश्वविद्यालय के उप कुलपति को कभी न कभी सेवानिवृत्त होना होता है। इसी तरह मौलाना वस्तानवी को भी सेवामुक्त होना पड़ा हैं। किन्तु उनका पद से हटाया जाना विवाद का विषय बन गया है। उन्हें अपमानजनक तरीके से पद छोड़ना पड़ा। उसके पीछे का कारण ऐसा है कि पिछली 11जनवरी,2011 ई. को गुलाम मोहम्मद वस्तानवी ने गुजरात और वहां के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विषय में वक्तव्य दिया, ’’नरेंद्र मोदी के गुजरात में सभी वर्गों का विकास हो रहा है। विकास के प्रश्न पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। अल्पसंख्यकों (मुसलमानों) के विरुध्द भेदभाव का बर्ताव नहीं किया जाता। गुजरात का दंगा आठ वर्ष पुराना विषय हो गया है। अब हमें आगे का कार्य करना चाहिए। दंगा किसी भी कारण से होता हो, वह मानवजाति के लिए बहुत बुरा होता है। गुजरात का दंगा भारत पर कलंक है और
अपराधियों को इसकी सजा मिलनी चाहिए। मुसलमानों को पिछली बातें भूलकर गुजरात की प्रगति में सक्रिय होना चाहिए।’’

विकास के मुद्दे पर देश के सभी राज्यों में गुजरात सबसे आगे है। इस बात से भारतीय ही नहीं पूरी दुनिया अवगत है। जो तथ्य सर्वविदित है, उसे कहने का साहस किया और सबके सामने सही तथ्य रखा, तो देवबन्द के ’अल्ला के बन्दों’ ने उन्हें मोहतमीम के पद से ही बर्खास्त कर दिया। बर्खास्त करने वाले मण्डल को मजलिस-ए-शूरा कहा जाता है। रविवार, दि.24 जुलाई, 2011ई. को मजलिस-ए-शूरा की बैठक हुई। उसमें वस्तानवी के त्यागपत्र की मांग की गयी। वस्तानवी ने त्यागपत्र देने से मना कर दिया। उन्होंने कह दिया कि जिन्हें जो करना है करें। मजलिस-ए-शूरा ने उन्हें पदमुक्त करने का निर्णय लिया। उनके स्थान पर मौलाना नुमानी को नया मोहततीम बनाया गया है।

सही कारण

मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी को देवबन्द के मोहतमीम पद से हटाने के कई कारण हैं। नरेन्द्र मोदी का प्रकरण केवल दिखाने का कारण है। वास्तविक कारण कुछ और ही है। वस्तुत: मौलाना वस्तानवी कट्टरपंथी मौलाना नहीं हैं। गुजरात उनकी जन्मभूमि है। आज तक देवबन्द धर्मपीठ का प्रमुख उत्तर प्रदेश का ही मुसलमान होता था। वस्तानवी इसके अपवाद थे। वे गुजरात के होने के कारण अधिकांश लोगों की आंख में चुभते थे। जमात-ए-उलेमा-हिन्द के प्रमुख मोहम्मद मदनी ने देवबन्द मुस्लिम विश्वविद्यालय पर धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व जमा लिया है। वे राज्यसभा के सदस्य हैं। सन् 1980 ई. सें देवबन्द
पर उनका प्रभाव है। वस्तानवी के मोहतमीम बनने से मदनी परिवार नाराज हो गया था। वे वस्तानवी को हटाने का कारण ढूंढ रहे थे। वह कारण उन्हें मिल गया।

भारत के तथाकथित सेकुलर वर्ग ने नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने की अथक मुहिम चला रखी है। मुस्लिम विश्वविद्यालय का कुलपति नरेन्द्र मोदी के विषय में अच्छी बात कहे, यह बात कांगे्रस के गले नहीं उतरी। प्रश्न मुस्लिम वोट और मुस्लिम समाज को साथ बोलने का इशारा देने का है। वस्तानवी को उनके पद से बर्खास्त करने के पीछे कांगे्रस के षड्यंत्र से इनकार नहीं किया जा सकता। देवबन्द मुस्लिम विश्वविद्यालय और कांगे्रस के बीच पहले से ही मधुर सम्बन्ध हैं। नवम्बर सन् 2009 ई. में जमात-ए-उलेमा-ए-हिन्द ने एक परिषद बुलाई थी। देवबन्द की उस परिषद में मुस्लिम उलेमाओं ने राष्ट्रगान वन्दे मातरम् के विरोध का प्रस्ताव पारित किया था। प्रस्ताव में कहा गया था कि मुसलमान वन्दे मातरम् का गायन न करें, क्योंकि यह इस्लाम की शिक्षा के विरुध्द है। उसमें मूर्तिपूजा की बात की गयी है। वन्दे मातरम् के विरुध्द यह उनका फतवा है। उस परिषद में केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् भी उपस्थित थे। वे मुंह में मीठी गोली डालकर बैठे रहे। उन्होंने प्रस्ताव का विरोध नहीं किया और न बैठक छोड़कर गये ही। उन्होंने वोट पाने के लिए मुसलमानों के पांव चाटने की रीति का पूरी तरह से पालन किया। इस पृष्ठभूमि में वस्तानवी को हटाने में कांगे्रस की भूमिका स्पष्ट झलकती है।

देवबन्द का इतिहास

अब थोड़ा देवबन्द के इतिहास पर भी नजर डालते हैं। सन् 1866 ई. में मौलाना मुहम्मद कासिम नानोटी ने इसकी स्थापना की। उनके साथ कुछ अन्य मुस्लिम विद्वान थे। उनमें से कइयों ने 1857  के प्रथम स्वतंत्रता संठााम में देश में मुस्लिम शासन स्थापित करने के लिए भाग लिया था। धीरे-धीरे देवबन्द का विस्तार होने लगा, क्योंकि उसका मत था कि अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए सम्पूर्ण भारत वर्ष में इस्लाम ही होना चाहिए। प्रारम्भ में यह संस्था स्वतंत्र एवं स्वायत्तशासी रही। सरकारी सहायता पर अवलम्बन न हो, इसका ध्यान रखा गया। इस संस्था में शिक्षित पन्द्रह हजार स्नातक दक्षिण एशिया के मदरसों में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। इस संस्था की स्थापना के 146 वर्ष हो गये हैं। इस संस्था ने इस्लाम की जो व्याख्या की है, उसे ’देवबन्दी’ विचारधारा कहते हैं। बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान ही नहीं, बल्कि इंग्लैण्ड और अमेरिका में भी देवबन्दी मदरसे खोले गये हैं। देवबन्द में इस्लामी धर्मशास्त्र की शिक्षा लेकर निकले मौलवी मुसलमानों को कट्टरता का पाठ पढाते हैं। पोशाक और रीति-रिवाज में अलग पध्दति अपनाने के लिए उनका आठाह रहता है। देवबन्दी विचारधारा में स्त्रियों की समानता व स्वतंत्रता का विरोध है। शाहबानो प्रकरण में देवबन्द की भूमिका शाहबानो पर अन्याय करने की थी। मुस्लिम स्त्री का हिन्दू पुरुष से विवाह करने और परिवार नियोजन के साधनों का प्रयोग करने का यह विरोध करता है। 6जून, सन् 2005 ई. को छत्तरवाल (मुजफ्फरनगर का एक गांव) में 28वर्षीया महिला के साथ उसके 69 वर्षीय ससुर ने दुराचार किया। यह प्रकरण गांव के पंचायत के पास गया। फिर उसे इस्लामिक धार्मिक व्याख्या के लिए मुल्ला-मौलवियों के पास ले जाया गया। उन्होंने निर्णय दिया कि वह महिला अपने पति इमरान से अलग रहे। ससुर द्वारा दुराचार करने के कारण उसका पति अब बेटे जैसा है। इमरान का विवाह इस्लाम के नियम से वैध नहीं है। देवबन्द ने फतवा देकर इमरान का विवाह रद्द कर दिया।

थियोलाजिकल टेरर

इस तरह के शिक्षण संस्थान से गुलाम मोहम्मद वस्तानवी को हटा दिया गया। वस्तानवी एम.बी.ए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बहुत कार्य किया है। स्न 1979 ई. में महाराष्ट्र के नन्दुरबार जिले के अक्कलकुवा गांव में मुसलमानों के लिए उन्होंने विद्यालय शुरू किया। केवल तीस वर्षों में ही उस विद्यालय की शाखाओं का विस्तार पूरे भारतवर्ष में हो गया। उसमें इस समय दो लाख विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अक्कलकुवा में उनके पन्द्रह कालेज हैं जिसमें इस्लामिक तत्वज्ञान के साथ ही आधुनिक विषयों की शिक्षा दी जाती है। उनकी संस्था का नाम जामिया इस्लामिया इशातूल उलूम है। इन्टरनेट पर प्राप्त सूचना के अनुसार उसमें इंजीनिरिंग, मेडिकल, फार्मेसी, इन्फारमेशन टेक्नालाजी इत्यादि में डिठाी व डिप्लोमा कोर्स चलाने जा रहे हैं। इस समय मुस्लिम समाज में शिक्षा की कमी है। इस दृष्टि से आधुनिक विषयों की शिक्षा देने का उनका कार्य महत्वपूर्ण है। यह कार्य वस्तानवी कर रहे हैं। शायद इसीलिए उन्हें देवबन्द में उप कुलपति के पद पर नियुक्त किया गया। परन्तु उत्तर प्रदेश के बाहर का होने और कट्टरपंर्थी न होने के कारण उन्हें पद पर रहने नहीं दिया गया।

देवबन्द की शूरा द्वारा हटाये जाने के उपरांत वस्तानवी ने इसके पीछे मदानी परिवार का हाथ होने का आरोप लगाया है। क्योंकि वे प्रोफेसर अरसद मदानी को पराजित करके उप कुलपति बने थे। देवबन्द के निवासी बदर काजमी कहते हैं, ’’उनको पद से हटाना थियोलाजिकल टेरर है।’’ देवबन्द रूढिवादी विचार को छोड़ना नहीं चाहती। इसीलिए वस्तानवी उनको पसन्द नहीं आये।

गुलाम मोहम्मद वस्तानवी को हटाने के पीछे नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करना होने के कारण प्रचार माध्यमों में इसकी पर्याप्त चर्चा नहीं हुयी क्योेंकि वस्तानवी ने सत्य का बखान किया है। बुद्धिवादी सेकुलरों के लिए सत्य का मूल्य शून्य है।

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